बारिश की बेरुखी ने बिहार के किसानों को बेजार कर दिया है। इसकी वजह से
राज्य में अब तक सिर्फ 40 फीसदी खेतों में ही रोपनी हुई है।
बारिश के इंतजार में आसमान की ओर टकटकी लगाए किसान अब मध्यम और छोटी
अवधि वाली फसलों को खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। गया के किसान रामचंद्र
सिंह बताते हैं, ‘आर्द्र नक्षत्र शुरू हो गया है, लेकिन कहीं बारिश का
नामोनिशान तक नहीं है।
अब खेतों में बुआई का काम करीब-करीब हो जाना चाहिए था लेकिन बारिश में
हुई देरी की वजह से हम यह काम शुरू नहीं कर पाए हैं। हम इससे काफी परेशान
हैं।’ वहीं, पटना जिले के बाढ़ इलाके के किसान दीपक लाल बताते हैं, ‘मई के
पहले पखवाड़े में अच्छी-खासी बारिश होने से हम काफी उत्साहित थे। लेकिन इसके
बाद मौसम का मिजाज ही जैसे उलट गया।’
किसानों की मानें तो अब वे लंबी अवधि वाले फसलों को लगाने की अपनी योजना
को छोड़ छोटी और मध्यम अवधि वाले फसलों को अपनाने की तैयारी कर रहे हैं। इस
महीने में खरीफ की फसल के लिए अब तक 105 मिमी बारिश की जरूरत होती है
लेकिन अब तक सिर्फ 33 मिमी बारिश हुई है। नतीजा यह हुआ कि प्रदेश में सिर्फ
11.40 लाख हेक्टेयर में ही धान की बुआई हो सकी है, जबकि सरकारी लक्ष्य
35.5 लाख हेक्टेयर का है।
राज्य के कृषि उत्पादन आयुक्त और कृषि विभाग के प्रधान सचिव अशोक कुमार
सिन्हा ने बताया, ‘अब तक गया, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, सारण और पटना जिले में
मॉनसून नहीं आया है। वहीं, दरभंगा, सहरसा और भागलपुर में यह आंशिक रूप से आ
चुका है। दूसरी तरफ, पूर्णिया, खगड़िया और किशनगंज जैसे सीमांचल के इलाकों
में मॉनसून के बादल अपना पूरा जोर दिखा रहे हैं। उम्मीद है कि अगले एक
हफ्ते में मॉनसून के बादल पूरे राज्य पर छा जाएंगे।’
सिन्हा के मुताबिक इससे प्रदेश के धान और दूसरी खरीफ फसलों के उत्पादन
लक्ष्य पर ज्यादा असर होने की उम्मीद नहीं है। उन्होंने बताया कि, ‘प्रदेश
के ज्यादातर किसान अब पारंपरिक बीजों को छोड़ संकर या हाइब्रिड प्रजाति के
बीजों को अपना रहे हैं। इनमें ज्यादा वक्त की जरूरत भी नहीं होती और इनका
उत्पादन भी काफी अच्छा होता है। इसलिए हमें उम्मीद है कि हम अपने लक्ष्य को
आसानी से हासिल कर लेंगे।’