नई दिल्ली [मुकेश केजरीवाल]। सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय
सलाहकार समिति [एनएसी] भले ही तमाम सरकारी योजनाओं में गैर सरकारी संगठनों
[एनजीओ] की भूमिका बढ़ाने के रास्ते तलाश रही है। लेकिन, स्वास्थ्य
सुविधाओं को तेजी से गांवों तक पहुंचाने के इरादे से बड़ी तादाद में एनजीओ
की मदद लेने की स्वास्थ्य मंत्रालय की योजना को फिलहाल ब्रेक लग गया है।
ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री सीपी जोशी चाहते हैं कि यह बड़ी
रकम एनजीओ के हाथ में जाने की बजाय पंचायती राज संगठनों के जरिए खर्च होनी
चाहिए। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम] के तहत सालाना 700
करोड़ रुपये की इस योजना को पंचायती राज मंत्री के दखल के बाद फिलहाल ठंडे
बस्ते में डाल देना पड़ा है, जबकि विभिन्न मंत्रालयों के आठ सचिवों की समिति
पहले ही इसे मंजूरी दे चुकी थी।
दरअसल, ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को लेकर कोई भी बड़ा फैसला स्वास्थ्य
मंत्री गुलाम नबी आजाद अकेले नहीं ले सकते। इसके लिए उन्हें मिशन संचालन
समूह [एमएसजी] की मंजूरी लेना जरूरी है जिसमें ग्रामीण विकास, पंचायती राज
और मानव संसाधन विकास मंत्री भी शामिल हैं। पिछले हफ्ते इसकी बैठक के दौरान
मंत्रालय की इस योजना पर सीपी जोशी ने यह कहते हुए एतराज जता दिया कि जो
काम आप एनजीओ को दे रहे हैं वह पंचायती राज संस्थाओं को दिया जाना चाहिए।
बैठक में मौजूद स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद और उनके अधिकारी जोशी को
यह भी बताने की हिम्मत नहीं जुटा सके कि इस योजना को अधिकार प्राप्त
कार्यक्रम समिति [ईपीसी] पहले ही मंजूरी दे चुका है, जिसमें पंचायती राज
सचिव सहित केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के आठ सचिव शामिल हैं।
25 जून को हुई इस बैठक के दौरान एजेंडे में कुल 16 प्रमुख विषय शामिल
थे। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक गांवों में सरकारी
योजना को रफ्तार देने के लिए यह योजना काफी अहम भूमिका निभा सकती है। बैठक
के लिए तैयार किए गए स्वास्थ्य मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक खुद
केंद्रीय कैबिनेट ने ही इस योजना का जो खाका तैयार किया था, उसमें साफ कहा
गया है कि इस योजना के तहत खर्च होने वाली रकम का कम से कम पांच फीसदी गैर
सरकारी संगठनों के जरिए खर्च किया जाएगा। इसी हिसाब से सालाना 700 करोड़
रुपये की यह योजना तैयार की गई थी। अब तक एक भी राज्य इस लक्ष्य को हासिल
नहीं कर सका है। इसलिए भी अलग से यह प्रस्ताव तैयार करना जरूरी हो गया था।
हालांकि, इस योजना के पास नहीं होने के बावजूद विभिन्न योजनाओं के तहत
एनजीओ के साथ जारी साझेदारी जारी रहेगी।
कहां पड़ेगा असर
1. प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और उप केंद्रों का प्रबंधन
2. सुदूर गांवों में एंबुलेंस सेवा
3. जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य कार्यक्रम
4. नेत्र चिकित्सा कार्यक्रम
5. आशा कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण
6. योजनाओं की सामुदायिक निगरानी।