विकास सैनी, रोहतक: सुबह का समय, तीन दर्जन हर आयु के शख्स और वहां गूंजता
क, ख, ग का शोर। यहां जिक्र किसी स्कूल-कालेज की क्लास का नहीं हो रहा है,
बल्कि जेल की चारदीवारी के भीतर लगने वाली पाठशाला का हो रहा है। जेल में
साक्षरता की अलख जगाने वाले शख्स का नाम संजीव है। संजीव पेशे से अधिवक्ता
है और इन दिनों जेल में बंद है। वे भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत
कारावास की सजा काट रहे है। जेल में आने के बाद अधिवक्ता संजीव की
प्रेक्टिस भले ही छूट गई हो, किंतु किताबों से उनका जुड़ाव अभी भी बना हुआ
है। जेल में कैदियों को पढ़ना-लिखना सिखाना उनकी दैनिक दिनचर्या का मुख्य
हिस्सा है। रोज सुबह उठना दैनिक कार्यो से निवृत्त होना और कक्षा में पहुंच
जाना नियमित प्रक्रिया बन गया है। यही दिनचर्या तीन दर्जन कैदियों की भी
है। वे सभी ज्ञानार्जन के लिए रोज सुबह आठ बजते ही हाथों में कायदा, स्लेट व
स्लेटी लेकर मैदान के एक कोने में इकट्ठा हो जाते है। जहां दस बजे तक दो
घंटे की उनकी क्लास लगती है। इसमें कुछ अनपढ़ युवा, अधेड़ व वृद्ध भी शामिल
है। अधिवक्ता संजीव कैदियों को अक्षर ज्ञान दे रहे है। उन्हें क, ख, ग के
अलावा अपना नाम लिखना व कायदा पढ़ना सिखाना उनका आरंभिक प्रयास है। इसके
अलावा भी वे अपना समय किताबों के साथ ही बिताते है। जेल में पढ़ने के
इच्छुक अन्य कैदियों को भी वे किताबें मुहैया करवा रहे है। जेल के
पुस्तकालय से किताबें लेकर कैदियों को देना और उनके पढ़ने के बाद उन्हे
वापस पुस्तकालय जमा करना भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। जेल अधीक्षक
राजेंद्र सिवाच ने बताया कि अधिवक्ता संजीव इन दिनों कैदियों को
पढ़ाने-लिखाने में जुटे हुए है। शिक्षा की अलख जगाने के उनके इस अभियान में
वे भी सहयोग कर रहे हैं। जेल प्रशासन उन्हे पढ़ाई से संबंधित सभी सामग्री
मुहैया करवा रहा है। इसके अलावा कैदियों खासकर युवाओं को पढ़ने के लिए
प्रेरित किया जा रहा है। अधिवक्ता संजय 306 के तहत यहां सजा काट रहे हैं।
अपनी पत्नी को मरने के लिए मजबूर करने के आरोप में अदालत ने उन्हे पांच
वर्ष की कैद सुनाई है।
क, ख, ग का शोर। यहां जिक्र किसी स्कूल-कालेज की क्लास का नहीं हो रहा है,
बल्कि जेल की चारदीवारी के भीतर लगने वाली पाठशाला का हो रहा है। जेल में
साक्षरता की अलख जगाने वाले शख्स का नाम संजीव है। संजीव पेशे से अधिवक्ता
है और इन दिनों जेल में बंद है। वे भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत
कारावास की सजा काट रहे है। जेल में आने के बाद अधिवक्ता संजीव की
प्रेक्टिस भले ही छूट गई हो, किंतु किताबों से उनका जुड़ाव अभी भी बना हुआ
है। जेल में कैदियों को पढ़ना-लिखना सिखाना उनकी दैनिक दिनचर्या का मुख्य
हिस्सा है। रोज सुबह उठना दैनिक कार्यो से निवृत्त होना और कक्षा में पहुंच
जाना नियमित प्रक्रिया बन गया है। यही दिनचर्या तीन दर्जन कैदियों की भी
है। वे सभी ज्ञानार्जन के लिए रोज सुबह आठ बजते ही हाथों में कायदा, स्लेट व
स्लेटी लेकर मैदान के एक कोने में इकट्ठा हो जाते है। जहां दस बजे तक दो
घंटे की उनकी क्लास लगती है। इसमें कुछ अनपढ़ युवा, अधेड़ व वृद्ध भी शामिल
है। अधिवक्ता संजीव कैदियों को अक्षर ज्ञान दे रहे है। उन्हें क, ख, ग के
अलावा अपना नाम लिखना व कायदा पढ़ना सिखाना उनका आरंभिक प्रयास है। इसके
अलावा भी वे अपना समय किताबों के साथ ही बिताते है। जेल में पढ़ने के
इच्छुक अन्य कैदियों को भी वे किताबें मुहैया करवा रहे है। जेल के
पुस्तकालय से किताबें लेकर कैदियों को देना और उनके पढ़ने के बाद उन्हे
वापस पुस्तकालय जमा करना भी उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। जेल अधीक्षक
राजेंद्र सिवाच ने बताया कि अधिवक्ता संजीव इन दिनों कैदियों को
पढ़ाने-लिखाने में जुटे हुए है। शिक्षा की अलख जगाने के उनके इस अभियान में
वे भी सहयोग कर रहे हैं। जेल प्रशासन उन्हे पढ़ाई से संबंधित सभी सामग्री
मुहैया करवा रहा है। इसके अलावा कैदियों खासकर युवाओं को पढ़ने के लिए
प्रेरित किया जा रहा है। अधिवक्ता संजय 306 के तहत यहां सजा काट रहे हैं।
अपनी पत्नी को मरने के लिए मजबूर करने के आरोप में अदालत ने उन्हे पांच
वर्ष की कैद सुनाई है।