किस हिंदू ग्रंथ में मना है सगोत्र विवाह?

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो : एक गोत्र में शादी पर रोक लगाने की याचिका
दायर करने आए याची को हाईकोर्ट ने उलटे पांव वापस भेज दिया। याचिका में कोई
तथ्य न पाकर जस्टिस शिव नारायण धींगड़ा और जस्टिस एके पाठक की अवकाशकालीन
बेंच ने चेतावनी दी कि, अगर याचिका वापस न ली तो अदालत का समय बर्बाद करने
के लिए याची पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। इतना सुनते ही याची के वकील ने
याचिका वापस ले ली।

इससे पहले अदालत द्वारा याची के वकील से गोत्र क्या है, यह सवाल पूछे
जाने पर जवाब में वह विकीपीडिया के हवाले से गोत्र के बारे में बताने लगे।
इतना सुनते ही अदालत ने पूछा, किस हिंदू ग्रंथ में एक गोत्र के विवाह को
प्रतिबंधित करने की बात लिखी हुई है? आप अदालत का वक्त बर्बाद क्यों कर रहे
हैं। अपनी बात साबित नहीं कर सकते तो यहां नहीं आना चाहिए था।

शुक्रवार को जस्टिस एसएन धींगड़ा की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने
हरियाणा के सीवान बेरी निवासी नरेश कादियान की ओर से याचिका पेश करते हुए
अधिवक्ता राजेंद्र यादव ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने उनसे हाईकोर्ट जाने
को कहा। जिसके बाद याचिका डाली गई है। अधिवक्ता यादव ने कहा, हिंदू विवाह
अधिनियम की प्रथम अनुसूची में प्रतिबंधित नातेदारी का वर्णन है। एक गोत्र
में शादी नहीं हो सकती, क्योंकि वे भाई बहन माने जाते हैं।

उनका कहना था कि हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन के लिए आयोग का गठन
करते हुए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज को कमिश्नर नियुक्तकरने संबंधी निर्देश
दिया जाए। जिससे वो देख सकें कि हरियाणा समेत एनसीआर में हिंदुओं में एक
गोत्र में शादी होती है या नहीं। उनका यह भी तर्क था कि एक गोत्र में शादी
होने से संतान में कई बीमारियां संभव हैं। दुनिया के एक देश का शाही परिवार
इसी वजह से खत्म हो चुका है। जानवरों में भी इनब्रीडिंग प्रतिबंधित है,
इसे लेकर भारत सरकार की ओर से एक अधिसूचना भी जारी हुई है। एक गोत्र में
शादी हिंदू परंपरा के खिलाफ होने के साथ और मौलिक अधिकारों का हनन भी है।

इस बीच अधिवक्ता राजेंद्र यादव ने यह भी कहा कि खाप पंचायतों ने एक ही
गोत्र में शादी पर विरोध जताने के लिए 21 जून को हड़ताल करने का फैसला किया
है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा हड़ताल करना आपका मौलिक अधिकार है। उससे आपको कौन
रोक रहा है।

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