रहते हैं। उन्हें इस उम्र में यह अच्छी तरह याद है कि अजरुनसिंह से उनके
ताल्लुक बहुत अच्छे थे, जिन्होंने उन्हें दूसरे कई सीनियर आईपीएस अफसरों को
बायपास करके डीजीपी बनाया था। लेकिन एंडरसन मामले में उनकी याददाश्त
धुंधला जाती है। आज इतने साल बाद भी वे तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी को
एंडरसन मामले में सौ में से सौ नंबर देते हैं।
> साधारण चोर-उचक्कों के साथ अमानवीय सख्ती के
साथ पेश आने वाली पुलिस ने एंडरसन के सामने उसके निजी नौकरों की तरह सुलूक
किया, क्या यह कानूनी तौर पर ठीक था?
-एक शरीफ और वेल इस्टब्लिश बड़े आदमी व चोर-उचक्कों के प्रति फर्क हमेशा
रहेगा।
> उस दिन आप कहां थे, जब एंडरसन आया? क्या एंडरसन को छोड़ना ठीक था?
-मैं प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चुनावी दौरे के सुरक्षा इंतजामों का
जायजा लेने आईजी इंटेलीजेंस नरेंद्रप्रसाद के साथ भोपाल से बाहर था। अगर
एंडरसन को भोपाल में रखा जाता या गेस्ट हाऊस की बजाए पुलिस स्टेशन ले जाया
जाता तो लोग उसकी पिटाई करते। हमें लाठी चार्ज या गोली चलाने तक की नौबत
आती और हो सकता है सौ-दो सौ लोग और हताहत हो जाते, क्योंकि लोगों में बहुत
गुस्सा था। जब उसे रवाना किया गया तो मैंने भी राहत महसूस की।’
> कानून को हाशिए पर रखकर पुलिस ने उसके साथ जो किया, क्या वह ठीक था,
क्या मुख्यमंत्री का दबाव था?
-सीएम मेरे बॉस थे। उनसे मेरे अच्छे ताल्लुक थे। लेकिन अब मैं 80 साल का
हूं। ठीक से याद नहीं कि तब क्या हुआ था। इतने साल बीत गए। एक पीढ़ी गुजर
गई। मुझे लगता है कि कानून ने सही भूमिका निभाई। एसपी ने भी कुछ गलत नहीं
किया।
> पुलिस ने उसे अदालत में पेश क्यों नहीं किया?
– (याददाश्त पर जोर डालकर.) उस समय मामला तो सीबीआई को सौंप दिया गया था।
> जब सीबीआई को सौंप ही दिया था तो फिर पुलिस को जमानत देकर सुरक्षित
विदा करने का हक किसने दिया?
-(उनकी याददाश्त फिर धुंधला जाती है.) असल में तब क्या हुआ था, 25 साल बाद
अब कुछ याद नहीं आता.।’