नई दिल्ली [जयंतीलाल भंडारी]। इन दिनों जो रोजगार सर्वेक्षण प्रकाशित
हो रहे है, वे बता रहे है कि देश के प्रोफेशनल और प्रशिक्षित युवाओं के लिए
रोजगार अवसर बढ़ रहे है। युवा पेशेवरों के लिहाज से यह एक अच्छी खबर है कि
भारतीय जॉब मार्केट एक बार फिर से आत्मविश्वास से भरपूर नजर आ रहा है।
इंटरनेशनल रिक्रूटमेंट फर्म एटल के जून 2010 में प्रकाशित किए गए
नवीनतम सर्वे में यह बात सामने आई है कि रोजगार के लिहाज से सकारात्मक
माहौल होने से भारत में दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में नई नियुक्तियां
सबसे अधिक हो रही है और आने वाले दिनों में कंपनियों में प्रतिभाओं को
खींचने के लिए टैलेंट वार फिर से शुरू होने की संभावना है।
इसमें दो मत नहीं है कि अब तक एक ओर देश के रोजगार बाजार पर ग्रीस संकट
का असर नहीं पड़ा है तथा दूसरी ओर वैश्विक एवं घरेलू अर्थव्यवस्था में
सुधार से भारतीय प्रतिभाओं के लिए नए रिक्रूटमेंट बढ़ते जा रहे हैं। युवाओं
में कैंपस प्लेसमेंट संबंधी मुस्कराहट बढ़ गई है। स्थिति यह है कि
देश-विदेश की कंपनियां भारतीय प्रतिभाओं को लेने के लिए आईआईएम, आईआईटी और
मैनजमेंट बिजनेस स्कूल्स की तरफ दौड़ती हुई दिखाई दे रही हैं। प्लेसमेंट में
वेतन के साथ बोनस और हॉलीडे पैकेज भी दिए जा रहे हैं।
वैश्विक वित्तीय सेवा और कंसल्टिंग कंपनियों के साथ तेजी से बढ़ती
भारतीय कंपनियां भी बहुत अच्छे वेतन देती हुई दिखाई दे रही हैं। आईआईएम और
आईआईटी में हुए कैंपस प्लेसमेंट का परिदृश्य चमकीला है। स्थिति यह भी है कि
देश में प्रतिभा पलायन या ब्रेन ड्रेन की जगह ब्रेन गेन की रंगत दिखाई दे
रही है। आईटी सेक्टर हो, बीपीओ या मेडिकल सेक्टर हो सभी में प्रतिभा पलायन
का दौर बेहद धीमा हो गया है। करियर बनाने के लिए जो लोग विदेश गए है, वे भी
बड़ी संख्या में भारत वापस लौटते हुए दिखाई दे रहे है।
पांच वर्ष पूर्व तक आईआईटी के 70 प्रतिशत छात्र नौकरी के लिए विदेशों
की तरफ रुख करते थे, लेकिन अब यह आंकड़ा घटकर 30 प्रतिशत रह गया है। बड़ी
संख्या में भारतीय प्रतिभाएं डॉलर और यूरो के लालच से दूर अपने कौशल से देश
की मिट्टी को सोना बनाने का संकल्प लेती हुई भी दिखाई दे रही है।
निस्संदेह वर्ष 2010 की शुरुआत से ही देश आर्थिक मोर्चे पर आगे बढ़ रहा
है। लगातार बढ़ता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार जून 2010 में 270 अरब डॉलर की
ऊंचाई पर पहुंच गया है। भारतीय कंपनियां दिन-ब-दिन वैश्विक स्तर की ऊंचाई
पर पहुंच रही हैं।
वित्तीय वर्ष 2010-11 में जून माह तक करीब 18 फीसदी की औद्योगिक
उत्पादन में वृद्धि और भारतीय बाजार के आकर्षक होने के कारण विदेशी निवेश
के तेज कदमों से भारत में रोजगार की भारी संभावनाएं आकार ले रही हैं।
उद्योग-व्यापार के विभिन्न सेक्टरों में युवाओं की मांग बढ़ गई है।
ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र बिजनेस प्रोसेस
आउटसोर्सिग, बीपीओ और नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिग [केपीओ] को कुशल कामगारों
कीजरूरत है। बैंकिंग क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में बड़ी संख्या में
वृद्धि होने के कारण प्रोफेशनल्स की मांग है। वित्तीय संस्थानों में रिस्क
मैनेजरों की भारी जरूरत है।
देश में मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में विकास के कारण रोजगार सृजन की
भारी उम्मीदें है। पेय पदार्थो व खान-पान से संबंधित उद्योग और व्यवसाय
तीव्र विकास की राह पर है और इनमें रोजगार के प्रचुर मौके है। कंस्ट्रक्शन
सेक्टर इंजीनियरों और आर्किटेक्चरों की कमी का मुकाबला करते हुए दिखाई दे
रहे है। देश छोटी कार और ऑटो बाजार के मामले में निर्यात का प्रमुख केंद्र
बनता जा रहा है। दुनिया की अग्रणी ऑटोमोबाइल कंपनियां यहां अपनी निर्माण
इकाइयां शुरू करने जा रही हैं।
हालांकि देश में प्लेसमेंट और नौकरियों के अवसर बढ़ रहे है, लेकिन हमें
देश के रोजगार बाजार में उभरकर सामने आ रही रोजगार सच्चाइयों पर ध्यान
देना जरूरी है। देश में जो कुल रोजगार अवसर बढ़ रहे है, उनके दो तिहाई से
अधिक छह महानगरों दिल्ली एनसीआर, मुंबई, बेंगलूर, चेन्नई, हैदराबाद और
कोलकाता से संबंधित हैं। गांवों में मनरेगा के तहत बढ़ रहे रोजगार अवसरों
के अलावा अन्य किसी तरह के रोजगार अवसर नहीं बढ़े हैं।
ऐसे में जब देश में कुछ ही प्रतिभाशाली युवाओं की मुठ्ठियों में चमकीले
रोजगार है और अधिकांश युवाओं की मुठ्ठियां रोजगार रहित है, तब सरकार के
द्वारा सभी के लिए रोजगार के रणनीतिक प्रयास जरूरी हैं। इस परिप्रेक्ष्य
में भारतीय छात्रों को रोजगार की नई जरूरतों के मुताबिक तैयार होना होगा।
हमें यह ध्यान में रखना होगा कि ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के
मद्देनजर देश में प्रतिभाएं घटती जा रही हैं।
भारत में टेक्नोलॉजी कंपनियों और वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में काम कर
रही फर्मो की सबसे बड़ी शिकायत है कि उन्हे नौकरियां करने वाले आसानी से
मिल नहीं रहे है। यदि 10 स्नातक नौकरी के लिए साक्षात्कार देने आते है तो
उसमें से सिर्फ तीन ही अनिवार्य कुशलता पूरी करने योग्य होते है।
देश के रोजगार परिदृश्य पर वैज्ञानिकों की भी भारी कमी महसूस की जा रही
है। भारत पूरे विश्व में वैज्ञानिक सृजनात्मकता और उत्पादकता के लिए ख्यात
है, परंतु हाल ही में वैज्ञानिक सृजनात्मकता और उत्पादकता वाली उच्च
प्रतिभाओं की संख्या में भारी कमी होना चिंता का कारण है।
नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक्स रिसर्च के ताजा दस्तावेज के
अनुसार देश में छात्रों में विज्ञान शिक्षा के प्रति रुझान में भारी कमी आई
है। इस समय स्नातक के बाद महज 7.9 फीसदी छात्र विज्ञान की पढ़ाई कर रहे
है।
हमें नई पीढ़ी को नए आर्थिक विश्व के अनुरूप सुसज्जित होगा पड़ेगा।
जरूरी होगा कि हमारी नई पीढ़ी देश व दुनिया के रोजगार एवं करियर बाजार की
हर करवट को अपनी निगाह में रखे। हमें ध्यान देना होगा कि भारत में अकेले
आउटसोर्सिग जैसे माध्यमों से ही बेरोजगारी जैसी विकराल समस्या दूर नहीं हो
पाएगी।
नेशनल नॉलेज कमीशन का कहना है कि बीपीओ सेक्टर से एक साल में सिर्फ तीन
लाख रोजगार उपलब्ध कराए जाते है, जबकि देश में प्रतिवर्ष करीब एक करोड़
लोगोंकोरोजगार चाहिए। कम योग्य युवाओं के लिए हमें प्रशिक्षण एवं सेवा
क्षेत्र में अवसर खोजने होंगे और उन्हे रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों से
शिक्षित प्रशिक्षित करना होगा।
हमें ध्यान देना होगा कि भारत में केवल पांच फीसदी युवा व्यावसायिक रूप
से प्रशिक्षित हैं, जबकि दक्षिण कोरिया में 95 फीसदी, जापान में 80 फीसदी,
जर्मनी में 70 फीसदी तथा चीन में 60 फीसदी युवा व्यावसायिक और कौशल
प्रशिक्षित है।
सचमुच देश के करोड़ों विद्यार्थियों को मानव संसाधन में बदलने के लिए
शिक्षा संस्थाओं की नई भूमिका और विद्यार्थियों की नई साधना आवश्यक होगी।
गांवों में काफी संख्या में जो गरीब, अशिक्षित और अर्द्धशिक्षित लोग हैं,
उन्हें अर्थपूर्ण रोजगार देने के लिए निम्न तकनीक विनिर्माण में लगाना
होगा।