भुवनेश्वर। इलेक्ट्रानिक्स वर्ज्य वस्तु (ई-वर्ज्य वस्तु) के परिचालन
हेतु विधिवत व्यवस्था न होने की वजह से काफी समस्याएं सामने आ रही हैं।
ई-वर्ज्य वस्तु परिवेश को काफी मात्रा में प्रदूषित करने से आम लोगों में
इसे लेकर काफी असंतोष देखने को मिल रहा है। इससे राज्य सरकार ने इसके
सुपरिचालन हेतु एक उच्च स्तरीय कमेटी गठन करने का निर्णय लिया है। पहले यह
कमेटी दिल्ली तथा हैदराबाद जाकर वहां के परिचालन व्यवस्था के बारे में
जानकारी हासिल करेगी। जंगल व परिवेश विभाग से मिली जानकारी अनुसार राज्य
में हर साल करीब 1000 टन से अधिक मात्रा में वर्ज्य वस्तु जमा हो रही है।
इलेक्ट्रानिक सामग्रियों का तेजी से हो रहे व्यवहार की वजह से ये सामग्री
पुरानी हो जाने के बावजूद नष्ट नहीं होती है। इसका दोबारा किस प्रकार से
उपयोग किया जाए, उस बारे में अभी तक कोई स्पष्ट निर्देशवाली तैयार नहीं हो
पायी है। विशेष रूप से सरकारी विभागों के पुराने कम्प्यूटर, लैपटाप,
प्रिंटर, टेलीफोन, मोबाइल, चार्जर, टार्च आदि इलेक्ट्रानिक्स सामग्रियों का
ढेर लग जाता है। काफी समय में तो इन्हे फेंक दिया जाता है। उसे प्लास्टिक
की खोज में घूम रहे लोग उठाकर उसमें से कुछ कीमती सामान निकालने के
उद्देश्य में उन्हे रास्तों के किनारे जलाते देखे जाते है। परिणाम स्वरूप
उसमें से निकलने वाली गैस प्रदूषण को प्रदूषित करता है। राज्य के शहरांचल
से निकलने वाली कठोर वर्ज्य वस्तु एवं अस्पतालों से निकलने वाली
सामग्रियों के लिए राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा स्पष्ट निर्देशनामा जारी
रहने के समय ई-वर्ज्य वस्तु के प्रबंधन के लिए उस तरह की कोई ठोस व्यवस्था
नहीं है। भुवनेश्वर, कटक, संबलपुर, राउरकेला, बरहमपुर जैसे बड़े-बड़े शहरों
में इलेक्ट्रानिक्स सामानों का उपयोग ज्यादा मात्रा हो रहा है। इसमें
पारादीप सबसे आगे है। इलेक्ट्रानिक्स सामानों के बढ़ते उपयोग की वजह से इस
प्रकार की सामग्रियों के वर्ज्य वस्तु की मात्रा भी बढ़ रही है। राज्य
सूचना व प्रयुक्ति विद्या विभाग इसके प्रति जागरूक न रहने की वजह से इससे
प्रदूषण पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। वर्ज्यवस्तु प्रबंधन पर विधिवत
व्यवस्था ग्रहण करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से प्रयास शुरू कर दिया गया
है।
हेतु विधिवत व्यवस्था न होने की वजह से काफी समस्याएं सामने आ रही हैं।
ई-वर्ज्य वस्तु परिवेश को काफी मात्रा में प्रदूषित करने से आम लोगों में
इसे लेकर काफी असंतोष देखने को मिल रहा है। इससे राज्य सरकार ने इसके
सुपरिचालन हेतु एक उच्च स्तरीय कमेटी गठन करने का निर्णय लिया है। पहले यह
कमेटी दिल्ली तथा हैदराबाद जाकर वहां के परिचालन व्यवस्था के बारे में
जानकारी हासिल करेगी। जंगल व परिवेश विभाग से मिली जानकारी अनुसार राज्य
में हर साल करीब 1000 टन से अधिक मात्रा में वर्ज्य वस्तु जमा हो रही है।
इलेक्ट्रानिक सामग्रियों का तेजी से हो रहे व्यवहार की वजह से ये सामग्री
पुरानी हो जाने के बावजूद नष्ट नहीं होती है। इसका दोबारा किस प्रकार से
उपयोग किया जाए, उस बारे में अभी तक कोई स्पष्ट निर्देशवाली तैयार नहीं हो
पायी है। विशेष रूप से सरकारी विभागों के पुराने कम्प्यूटर, लैपटाप,
प्रिंटर, टेलीफोन, मोबाइल, चार्जर, टार्च आदि इलेक्ट्रानिक्स सामग्रियों का
ढेर लग जाता है। काफी समय में तो इन्हे फेंक दिया जाता है। उसे प्लास्टिक
की खोज में घूम रहे लोग उठाकर उसमें से कुछ कीमती सामान निकालने के
उद्देश्य में उन्हे रास्तों के किनारे जलाते देखे जाते है। परिणाम स्वरूप
उसमें से निकलने वाली गैस प्रदूषण को प्रदूषित करता है। राज्य के शहरांचल
से निकलने वाली कठोर वर्ज्य वस्तु एवं अस्पतालों से निकलने वाली
सामग्रियों के लिए राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा स्पष्ट निर्देशनामा जारी
रहने के समय ई-वर्ज्य वस्तु के प्रबंधन के लिए उस तरह की कोई ठोस व्यवस्था
नहीं है। भुवनेश्वर, कटक, संबलपुर, राउरकेला, बरहमपुर जैसे बड़े-बड़े शहरों
में इलेक्ट्रानिक्स सामानों का उपयोग ज्यादा मात्रा हो रहा है। इसमें
पारादीप सबसे आगे है। इलेक्ट्रानिक्स सामानों के बढ़ते उपयोग की वजह से इस
प्रकार की सामग्रियों के वर्ज्य वस्तु की मात्रा भी बढ़ रही है। राज्य
सूचना व प्रयुक्ति विद्या विभाग इसके प्रति जागरूक न रहने की वजह से इससे
प्रदूषण पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। वर्ज्यवस्तु प्रबंधन पर विधिवत
व्यवस्था ग्रहण करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से प्रयास शुरू कर दिया गया
है।