शिमला : किसानों को अब परंपरागत खेती की ओर मुड़ना ही होगा। यदि समय
रहते किसानों ने पुरानी कृषि पद्धति को नहीं अपनाया तो भविष्य में इसके
भयावह परिणाम भुगतने होंगे। कृषि पद्धति ही नहीं किसानों को खेती में
विविधता भी लानी होगी क्योंकि अधिक रसायन के प्रयोग के कारण हिमाचल की
मिट्टी से पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं। विकसित देश अब भारत में की जाने
वाली परपंरागत कृषि पद्धति को अपनाने लगे हैं। जैविक खेती के अलावा लोग अब
यज्ञ कृषि को भी अपनाने लगे हैं। लगभग 141 देशों में यज्ञ कृषि की जा रही
है। शिमला में तीन दिवसीय जैविक मेला व फूड फेस्टिवल में कृषि वैज्ञानिकों
द्वारा किसानों को महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई।
तीन दिवसीय जैविक मेला व फूड फेस्टिवल में प्रदेशभर आए किसानों ने जैविक
खेती के गुर सीखे। कृषि, बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि जैविक खेती से
प्रथम दो-तीन साल तक फसल उत्पादन पर असर पड़ेगा लेकिन उसके बाद उत्पादकता
दोगुना भी हो सकती है। किसानों को यह समझना जरूरी होगा कि उनकी जैविक खेती
करने में लागत बहुत कम आती है। हिमाचल आर्गेनिक फार्मिग एसोसिएशन के
अध्यक्ष गोपाल मेहता कहते हैं कि मिट्टी में सुधार आ गया तो वर्षो पुराने
पेड़ों में भी सुधार आ जाएगा। उन्होंने कहा कि अत्यधिक रासायनिक खादों और
दवाइयों का असर मिट्टी पर पड़ा है। उन्होंने बागवानों को सलाह दी कि वह किसी
भी प्रकार के रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें बल्कि गौमूत्र का
स्प्रे करने से कई बीमारियां दूर हो जाती हैं।
कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डा. एचएस ठाकुर कहते हैं कि किसानों को
परंपरागत पद्धति के साथ-साथ जैव विविधता भी लानी पड़ेगी। इससे कीट-पतंगों से
होने वाला नुकसान काफी कम होगा। अत्यधिक रासायनिकों के प्रयोग से मिट्टी
के सूक्ष्म पोषक तत्व भी नष्ट होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में
कुछ किसानों ने जैविक खेती करनी शुरू कर दी है। लगभग 20 हजार किसान इस समय
जैविक खेती कर रहे हैं जबकि 300 किसानों को प्रमाणीकृत किया जा चुका है।
सम्मेलन में राष्ट्रीय जैविक खेती के निदेशक डा. एके यादव ने कहा कि
किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रमाणीकरण करने की जरूरत नहीं है।
जैविक खेती से पर्यावरण सुरक्षित रहता है, स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं
पड़ता जबकि मिट्टी के पोषक तत्व भी नष्ट नहीं होते। इस दौरान किसानों ने
मेले में लगे स्टालों पर जाकर जैविक खाद, बीज और जैविक स्प्रे के बारे में
जानकारी ली। मेले में 18 स्टॉल लगाए गए थे।
यज्ञ कृषि जैविक कृषि का अभिन्न अंग
हिमाचल प्रदेश में किसान अब यज्ञ पद्धति से भी खेती करने लगे हैं, यह
पद्धति जैविक कृषि का एक अंग हैं। चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि
विश्वविद्यालय पालमपुर के मॉडल आर्गेनिक फार्म में पिछले तीन वर्षो से किए
जा रहे शोध कार्य में पाया गया कि होमा फार्मिग खेती करने से न केवल फसलों
की पैदावार में वृद्धि हुई बल्कि वातावरण भी शुद्ध होता है। इस पद्धति में
यज्ञ और मंत्रों का उपयोग होता है। इसे अग्निहोत्र प्रक्रिया कहते हैं।
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इससे निकलने वाला धुंआ वातावरण में उपस्थित हानिकारक विकिरण के कणों को
निष्क्रिय कर देता है। यज्ञ से उत्पन्न होने वाली राख का खाद के रूप में
इस्तेमाल किया जाता है। किसानों को बताया गया कि भारत की पौराणिक परंपरा
विश्व के 114 देशों में सफल सिद्ध हुई है। कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक
डा. एचएस ठाकुर कहते हैं कि पालमपुर और रोहडू में कुछ किसान इस पद्धति से
जैविक खेती कर रहे हैं। इस पद्धति से खेती करने वाले स्वयं गोपाल मेहता ने
अनुभव किसान-बागवानों से सांझा किए।
जैविक उत्पादों से बने व्यंजनों का लुत्फ उठाया
सरकारी कार्यालयों में छुट्टी होने से शनिवार को इंदिरा गांधी खेल परिसर
में आयोजित जैविक फूड फेस्टिवल में लोगों का तांता लगा रहा। स्थानीय लोगों
और यहां घूमने आए सैलानियों ने पहाड़ी व्यंजनों का स्वाद लिया। अंतिम दिन
फूड स्टालों में रेट भी कुछ कम कर दिए गए थे। जैविक खाद्य पदार्थो और
मसालों से बने इन व्यंजनों में सिड्डू, सोयाबीन, कुलथ की टिक्की, लाल चावल,
कड़ी, राजमा, अरबी, लिंगडू व बाथू की खीर, जलेबी, जौ का सत्तू आदि शामिल
था। इसके अलावा मसाला डोरा, इडली, सांबर, पकौड़ा, फ्रेंच फ्राइस, राजमा व
मूंग की दाल के हलवे का स्थानीय पर्यटकों ने जमकर लुत्फ उठाया। हिमाचल
प्रदेश पर्यटन विकास निगम के काउंटर पर खूब भीड़ रही।