नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]। रक्षा मंत्रालय की चली तो पूर्वोत्तर में
समाचार माध्यमों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। खासकर मणिपुर में उग्रवादी
संगठनों का दबाव जहां इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया को उनका विषैला मत
प्रचार प्रसारित करने पर मजबूर करता है, वहीं सरकार में समाचार माध्यमों को
ही इस दबाव के खिलाफ दंडित करने की तैयारी हो रही है। सेना मुख्यालय ने तो
सूचना व प्रसारण मंत्रालय से इसके लिए मीडिया पर बंदिशें लगाने की सिफारिश
भी की है।
दरअसल, सेना स्थानीय समाचार माध्यमों में भारत विरोधी प्रचार पर कारगर
रोकथाम चाहती है। सैन्य सूत्रों के मुताबिक वर्तमान में ऐसा कोई कानूनी
प्रावधान नहीं है जो किसी समाचार एजेंसी को गलत बयानी के जरिए भ्रामक या
गलत धारणा के प्रचार प्रसार से रोक सके। इसी का लाभ उठाकर मणिपुर में
यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट [यूएनएलएफ], पीपुल्स लिबरेशन आर्मी [पीएलए],
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ कांगलेईपाक [पीआरईपीएके], कांगलेई यावोल कुन्ना
लुप [केवायकेएल], कांगलेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी, मणिपुर लिबरेशन फ्रंट
[एमपीएलएफ] जैसे उग्रवादी संगठन भारत विरोधी प्रचार के लिए समाचार माध्यमों
का उपयोग कर रहे हैं।
हालांकि समाचारपत्र इंफाल फ्री प्रेस के संपादक प्रदीप फांजौबम कहते
हैं कि समाचार माध्यम सत्ता और सरकार विरोधियों के बीच रस्साकशी का अखाड़ा
बन रहे हैं। जहां उग्रवादी अपनी प्रचार सामग्री प्रकाशित के लिए दबाव बनाते
हैं वहीं सरकारी एजेंसियां उसे न छापने को लेकर। फांजौबम के अनुसार सरकार
की ओर से यदि नई बंदिश लगाई जाती है तो इस क्षेत्र में समाचार माध्यमों का
चलना दूभर हो जाएगा।
सूत्रों के अनुसार भारत विरोधी प्रचार को लेकर समाचार माध्यमों पर लगाम
की यह सिफारिश सेना की पूर्वी कमान की ओर से आई है। बीते दिनों कुछ भारत
विरोधी विज्ञापनों के प्रकाशन के बाद पूर्वी कमान ने बाकायदा पत्र लिखकर
सेना मुख्यालय को इसकी रोकथाम के उपायों पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय से
चर्चा का आग्रह किया था।