बागपत। हम चाहें तो रोज पांच अरब लीटर पानी
की बचत कर बागपत की हरित धरती को रेगिस्तान में तब्दील होने से बचा सकते
हैं, मगर खेतों की सिंचाई को स्प्रिंकलर सिस्टम अपनाना पड़ेगा। ऐसा हो तो
फसलों की उत्पादकता भी बढ़ जाएगी। बस! जरुरत है इच्छा शक्ति और लोगों को
जागरूक करने की।
बागपत कृषि प्रधान जिला है जहां 1.10 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की
जाती है। सबसे ज्यादा भूजल का अति दोहन खेतों की सिंचाई को किया जाता है।
दिन का उजाला हो या रात का अंधेरा 26 हजार प्राइवेट तथा 202 राजकीय
नलकूपों के माध्यम से अतिदोहन कर10 अरब लीटर पानी निकाल कर धरती की कोख
खाली करने में जुटे हैं। भूजल स्तर में गिरावट हो रही है और बागपत की हरित
धरती के रेगिस्तान में तब्दील होने के कगार पर पहुंच चुकी है, जबकि फिफ्टी
परसेंट यानि रोज पांच अरब लीटर पानी की बचत कर जहां बागपत की भूमि को बंजर
होने तथा भविष्य को बर्बादी से बचा सकते हैं,मगर स्प्रिंकलर सिस्टम अपनाना
पड़ेगा। कृषि विभाग का दावा है स्प्रिंकलर सिस्टम से खेतों की सिंचाई करने
वर्तमान सिस्टम के मुकाबले आधा पानी बचता है। दरअसल स्प्रिंकलर सिस्टम से
फसलों पर छिड़काव होता जिस वजह से पानी पौधों पर पानी बारिश की बूंदों के
रुप में पड़ता है। पानी की बर्बादी रुक जाती है। खर्च ज्यादा नहीं आता।
पंद्रह बीस हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं फिर सालों तक एक एकड़ भूमि की
सिंचाई आराम से की जाती है। जहां भूमि ऊंची नीची होती है वहां स्प्रिंकलर
सिस्टम से आसानी से पूरे क्षेत्र में सिंचाई होती है,जबकि सतही सिंचाई से
संभव नहीं। वहीं स्प्रिंकलर सिस्टम से सिंचाई करने पर मिट्टी में नमी भी
ज्यादा समय तक बनी रहती है। ऐसे में फसलों की उत्पादकता भी दस से बीस
परसेंट बढ़ जाती है।
कृषि उप निदेशक वीरेंद्र सिंह का कहना है हम प्रयास कर रहे हैं किसान
स्प्रिंकलर सिस्टम को अपनाकर वर्तमान के मुकाबले आधे से अधिक पानी आराम से
बच जाता है। किसानों को जागरूक किया जा रहा है। स्प्रिंकलर सिस्टम पर आने
वाले खर्च पर पचास परसेंट सब्सिडी भी मिलती है। जल निगम के एक्सईएन एसके
गुप्ता का मानना है भूजल में गिरावट रोकने को स्प्रिंकलर सिस्टम मील का
पत्थर साबित हो सकती है। मगर आवश्यकता है किसानों को जागरूक कर स्प्रिंकलर
सिस्टम अपनाने की। वहीं हम इंडिया मार्का हैंडपंपों से रोज बर्बाद होने
वाले बारह करोड़ लीटर पानी को बचा सकते हैं,लेकिन इंडिया मार्का हैंडपंपों
के पास सोकपिट बनाने पड़ेंगे। तब पानी नालियों में नहीं बहेगा और सोकपिट
में जमा होकर जमींदोज हो जाएगा जिससे भूजल स्तर में गिरावट में कमी आएगी।