भोपाल गैस कांड : सोराबजी जवाब दीजिए

नौ साल पहले 2001 में तब के एटार्नी जनरल सोली सोराबजी ने वाजपेयी सरकार
को राय दी थी कि वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण की कोशिश नहीं की जानी चाहिए,
क्योंकि इसके सफल होने की संभावना नहीं है। इसके बाद सरकार ने प्रत्यर्पण
की कोशिश नहीं की। उन्होंने अमेरिकी कानूनी फर्म से राय लेने की सलाह भी
दी, जबकि इसके पहले 31 जुलाई 1998 को उन्होंने कहा था,‘लापरवाही से मौत
(आईपीसी की धारा 304-ए) की तुलना अमेरिकी कानून के तहत गैरइरादतन हत्या से
की जा सकती है।

पहली नजर में यह मामला भारत-अमेरिका
प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 3 के तहत आता है।’ संसद में हंगामा मचने पर
2003 में सरकार ने अमेरिका से प्रत्यर्पण की गुजारिश की थी, जिसे ठुकरा
दिया गया। जाहिर है काफी वक्त गुजरने से प्रत्यर्पण की कोशिश पर असर पड़ा।
दैनिक भास्कर सोली सोराबजी से सवाल पूछ रहा है। उम्मीद है वे चौबीस घंटे के
भीतर जवाब देंगे। ये सवाल हम उन्हें फैक्स और मेल के जरिये भेज रहे हैं।

1.
जब 98 में एंडरसन के प्रत्यर्पण की कोशिश करने की राय दी थी तो 2001 में
इसे बदला क्यों?

2. अमेरिकी कानूनी फर्म से राय लेने को
क्यों कहा जबकि सरकार ने आपसे सलाह मांगी थी?

3. गैस रिसाव
से एंडरसन का सीधा रिश्ता जोड़ने वाले पुख्ता सबूतों को नजरअंदाज क्यों
किया?

4. ऐसा क्यों नहीं कहा कि अमेरिकी फर्म की सलाह के
बावजूद सरकार को प्रत्यर्पण की पूरी कोशिश करनी चाहिए?

5.
एंडरसन के खिलाफ सबूत मौजूद होने के बाद भी यह क्यों कहा कि प्रत्यर्पण के
लिए जरूरी सबूत मिलने की उम्मीद नहीं है?

6. आपने बाद में
कहा कि सरकार सप्लीमेंटरी केस भेजकर अमेरिकी फर्म से गैस पीड़ितों के संतोष
के लिए प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू करने की राय ले सकती थी। ऐसा राय
देते समय क्यों नहीं कहा?

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