मदकोट (पिथौरागढ़)। घर के बच्चों से लेकर
बूढ़ों तथा गौशाला के जानवरों का पालन करने वाली पर्वतीय समाज की धुरी
ग्रामीण महिलाएं अब प्यासों को पानी पिलाने के लिये हाथों में कुदालें और
रैंच लेकर पाईप लाईन भी सुधारने में जुट चुकी है। जी हां यह सब कर रही हैं
तहसील मुनस्यारी के सीमान्त ग्राम पंचायत मदकोट की महिलाएं। तपती दुपहरी
में घर के सभी कार्य निपटा कर भूमिगत पाईपों को खोद कर उनकी साफ-सफाई कर
पेयजल योजना की मरम्मत में जुटी हैं। महिलाओं के इस कृत्य को पुरुष प्रधान
समाज के पुरुषों के चेहरों पर तमाचा बताया जा रहा है।
मदकोट कस्बे में विगत कई दिनों से बंद पड़ी पेयजल योजना को चालू कराने
में विभाग सहित पुरुष समाज द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया। एक बार फिर
महिलाओं ने खुद रैंच, कुदाली पकड़ कर पाईपों को ठीक करने का बीड़ा उठाया है।
घर में बाल , बच्चों और बूढ़ों सहित जानवरों को खिलाने ,पिलाने के बाद दो
दर्जन महिलाएं पाईप लाइन ठीक करने में जुट जाती हैं।
दो विशाल नदियों के किनारे स्थित ग्राम पंचायत मदकोट के अंतर्गत पड़ने
वाले मदकोट कस्बे और गांव के लिये भले ही दो पेयजल योजनाएं हैं परन्तु
विगत लंबे समय से दोनों पेयजल योजनाएं प्यास बुझाने में असफल रही हैं।
पेयजल लाईनों के क्षतिग्रस्त होने से ग्रामीणों को पर्याप्त पानी नहीं मिल
पा रहा है। नलों में पानी नहीं आने से सबसे अधिक दिक्कतें महिलाओं को
झेलनी पड़ती हैं। सूरज की पहली किरण के साथ फिरकी की तरह घरेलू कार्यो में
व्यस्त महिलाओं को दूर-दूर से पानी लाना पड़ रहा है। जिसे देखते हुए
महिलाओं ने खुद ही पेयजल योजना की मरम्मत करने का निर्णय लिया।
इस निर्णय के तहत ग्राम प्रधान जमुना देवी के नेतृत्व में दो दर्जन से
अधिक महिलाओं ने हाथों में कुदालें पकड़ कर पाईप लाईन खोदनी शुरु की है।
सबसे पहले बस्ती से एक किमी की सीधी खड़ी पहाड़ी में स्थित मूल स्रोत के
टैंक और मदकोट में बने वितरण टैंक की साफ सफाई की। इसके बाद मदकोट में
तैनात जल संस्थान कर्मी को भी साथ ले गये। मूल स्रोत से लेकर मुख्य वितरण
टैंक तक पाईप लाइन खोलकर उसकी मरम्मत के लिये दो दर्जन महिलाएं जुटी हैं।
महिलाएं हाथों में कुदालें लेकर भूमिगत पाईपों को खोद रही हैं। जल संस्थान
कर्मी की मदद से एक-एक पाईप को खोदकर उनकी सफाई कर रही हैं। महिलाओं का
दावा है कि 48 घंटों के भीतर पाईप लाईन की मरम्मत कर योजना में पानी शुरु
हो जायेगा। सीमान्त की इन महिलाओं के इस भगीरथ प्रयास की चौतरफा चर्चा हो
रही है । विभिन्न संगठनों द्वारा महिलाओं के इस कार्य को पुरुष प्रधान
समाज के पुरुषों के मुंह में तमाचा बताया जा रहा है।