पंजाब पुकारे, आ रे..आ रे..आ रे..

लुधियाना [अरविंद श्रीवास्तव/श्रीधर राजू]। बठिंडा रेलवे स्टेशन। रात
साढ़े दस बजे का समय। अवध-असम एक्सप्रेस ट्रेन आकर रुकती है। स्टेशन पर
पहले से तैयार जमींदार ट्रेन की ओर लपकते हैं। सिर पर बक्सा और हाथ में
थैला लिए उतरते लोगों को वे घेर लेते हैं। कशमकश चलती है कि कौन कितने
लोगों को पटाता है। यह नजारा इन दिनों पंजाब में हर स्टेशन पर शुरू हो गया
है।

दरअसल देश का पेट भरने वाले पंजाब के खेत फिर श्रमिकों की बाट जोह रहे
हैं। 10 जून से धान की रोपाई शुरू हो रही है और जमींदार दूसरे राज्यों से
आने वाले मजदूरों के लिए पलक-पांवड़े बिछाए हुए हैं। रोपाई का यह दारोमदार
यूपी, बिहार व राजस्थान से आने वाले मजदूरों के ही कंधों पर है। मजदूरों का
आना शुरू हो गया है लेकिन इस बार उनके नाज-ओ-नखरे भी डिमांड को देखते हुए
कुछ ज्यादा हैं।

श्रमिकों की संख्या जमींदारों की मांगों के अनुरूप नहीं है। इसके चलते
जमींदारों के चेहरों पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिख रही हैं। श्रमिकों को
मनाने की कोशिश में जुटे जमींदार कुछ भी करने को तैयार हैं। बढ़ी मजदूरी की
अदायगी के अलावा खाने-रहने के साथ उनके मनोरंजन का भी पूरा ध्यान रखा जा
रहा है। कोशिश है कि जैसे-तैसे और कैसे रोपाई का काम निपटा लिया जाए।

गौरतलब है कि राज्य में 26 लाख हैक्टेयर भूमि में धान की रोपाई होनी
है। इतने क्षेत्र के लिए करीब आठ लाख मजदूरों की जरूरत महसूस की जा रही है,
लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए इतनी संख्या में श्रमिकों के आने की
उम्मीद नहीं के बराबर है। जिस गति से श्रमिक यहां पहुंच रहे हैं, उससे साफ
जाहिर है कि पूरे बिजाई सत्र के दौरान 50 हजार श्रमिकों का पहुंचना भी
मुश्किल होगा। यह संख्या इतने बड़े क्षेत्र में बिजाई के मामले में ऊंट के
मुंह में जीरा की कहावत जैसी ही प्रतीत हो रही है।

माना जा रहा है कि मनरेगा की सफ लता ने श्रमिकों के भाव बढ़ाने में
महती भूमिका निभाई है। हालात जो भी हों, लेकिन मजदूरों की घटी संख्या
वास्तव में धान की बिजाई के दौरान जमींदारों के लिए भारी परेशानी खड़ी
करेगी।

इस बीच धान की बिजाई को लेकर परेशान जमींदार श्रमिकों को पटाने के
जुगाड़ में अपने-अपने रेलवे स्टेशनों पर डट गए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार,
झारखंड आदि प्रदेशों से आने वाली ट्रेनों पर जमींदारों की पैनी नजर है।
ट्रेनों से उतरने वाले श्रमिकों को मनाकर अपने खेतों तक पहुंचाने के लिए
जमींदार सारे यत्न कर रहे हैं। वक्त की नजाकत को देखते हुए मजदूरों ने भी
अपनी कीमतें बढ़ा दी हैं और काम पर जाने से पहले शर्ते भी रख रहे हैं और
जमींदार शर्तो को बेहिचक स्वीकार कर रहे हैं।

गौर हो कि पिछले वर्ष प्रति एकड़ 1200 से 1800 रुपये लेने वाले मजदूरों
ने इस वर्ष दो हजार से ढाई हजार रुपये रेट तय कर दिया है। इसके अतिरिक्त
जमींदारों से गु्रप के लिए प्रति एकड़ पांच किलोराशन के साथ ही शराब व
मुर्गे की मांग भी रखी गई है। संगरूर के कुछ जमींदार तो साथ में मोबाइल भी
आफर कर रहे हैं।

वहीं, बठिंडा के गांव बुर्ज महिमा के किसान जगजीत सिंह व कोटली खुर्द
के जीवन सिंह ने बताया कि इस बार मजदूरों की भारी किल्लत है इसलिए वे बहुत
ज्यादा मजदूरी मांगने के साथ ही अन्य सुविधाएं भी मांग रहे हैं जिन्हें
मानना उनकी मजबूरी है, क्योंकि काम के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं।

उधर, बठिंडा के जिला कृषि अधिकारी परमजीत सिंह संधू कहते हैं कि जिले
में इस समय धान की बिजाई 10 जून से शुरू हो रही है। इस बार मजदूरों की
संख्या में कमी का बड़ा कारण मनरेगा योजना की सफलता है। इसी का लाभ मजदूर
मुंह मांगी कीमत मांगकर उठा रहे हैं।

मजबूरी में मशीन का सहारा

लुधियाना [बिंदु उप्पल]। मजदूरों की इस किल्लत को देखते हुए अब किसान
रोपाई के लिए मशीनों का सहारा लेने लगे हैं। पीएयू के प्रसार शिक्षा निदेशक
डा. एमएस गिल का कहना है कि धान की बीजाई के लिए पीएयू ने 200 पैडी
ट्रांस्प्लांटर किसानों को किराए पर दिए है ताकि किसान धान की बीजाई आसानी
से कर लें। इसके अलावा कई किसानों ने तो दो लाख से दस लाख तक के पैडी
टांस्प्लांटर भी खरीद रखे हैं। उनके मुताबिक मशीनों की ओर रूझान बढ़ता जा
रहा है लेकिन कुल मिलाकर धान की रोपाई मजदूरों पर ही निर्भर है।

उधर कृषि डायरेक्टर बलविंदर सिंह सिद्धू ने बताया कि इस बार धान का
रकबा कम करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बार धान का रकबा
26 लाख हेक्टेयर रखा है जिसकी वजह पानी की बचत करना है और मक्की व काटन में
रकबा को बढ़ाना है। इस रकबे में से 145 लाख टन धान का उत्पादन होने की
संभावना है। उन्होंने बताया कि धान की खेती संबंधी सभी तैयारियां बीज, खाद व
अन्य चीजों की तैयारी पूरी हो चुकी है।

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