दुबई। आने वाले दशकों में हिमालय के ग्लेशियर पिघलकर छोटे होने से
उनके आसपास रहने वाले करीब छह करोड़ लोगों को खाद्य पदार्थों की किल्लत के
साथ-साथ पानी के स्रोत खत्म होने से फसलों के नुकसान से भी दो-चार होना
पड़ेगा।
हालैंड के वैज्ञानिकों ने एक ताजा अध्ययन में यह दावा किया है। हालांकि
साइंस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के लेखक वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह
नुकसान जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतरसरकारी समिति द्वारा कुछ
साल पहले लगाए गए उस अनुमान से काफी कम होगा जिसमें ग्लेशियर पिघलने से
करोड़ों लोगों की जिंदगी खतरे में होने की बात कही गई थी।
वैज्ञानिकों के मुताबिक निष्कर्ष में फर्क की एक वजह यह भी है कि
हिमालय के चारों तरफ फैली कुछ घाटियां अपने लिए जल के स्रोतों के वास्ते
पिघलते हुए ग्लेशियरों के बजाय बारिश के पानी पर निर्भर हैं।
दक्षिण एशिया में सिंधु, गंगा और ब्रह्मापुत्र की काफी हद तक
ग्लेशियरों पर निर्भर रहने वाली घाटियों के जलभरण में वर्ष 2050 तक 19.6
प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। वहीं, जलवायु परिवर्तन की वजह से मानसून का
मिजाज बदलने के चलते चीन के यलो रिवर बेसिन में पानी की मात्रा में 9.5
फीसदी की बढ़ोतरी होगी।
उट्रेच विश्वविद्यालय में जल विज्ञान के प्रोफेसर मार्क बीरकेंस ने कहा
कि हमारा मानना है कि ग्लेशियर पिघलने से कुछ निश्चित क्षेत्र ही प्रभावित
होंगे। भविष्य में इसकी वजह से परेशान होने वाले लोगों की अनुमानित संख्या
अब भी बहुत है लेकिन यह पूर्व में बताई गई तादाद से काफी कम है।