झंझारपुर [मधुबनी, सुनील कुमार मिश्र]। अब अनुमंडल के लखनौर प्रखंड
स्थित गांव हरभंगा में किसी का भी पांव थम जाएगा। कारण, जैविक ग्राम का
सपना यहां साकार होने की ओर है। जैविक खेती से गांव की तस्वीर और तकदीर
दोनों बदल रही है। यहां के सब्जी उत्पादक किसान सिर्फ जैविक खाद का ही
इस्तेमाल कर रहे हैं।
2011 तक पूरी तरह जैविक ग्राम बन जाने की उम्मीद पाले इस गांव में
वर्मी कम्पोस्ट के 24 बेड लग चुके हैं तथा वर्ष 2011 के मध्य तक 100 बेड और
लग जाएंगे। सब्जी उत्पादन इस गांव की पहचान बन चुकी है। बाइस सौ की आबादी
वाले इस गांव का डंका चारों ओर बज रहा है। जिले में जैविक खेती के माडल का
यह पहला गांव है। अच्छी पैदावार से खुशहाल किसानों के नंद कुमार महतो
आदर्श हैं। उन्हें वर्ष 2008-09 में राज्य स्तरीय बिहार उद्यान पंडित
पुरस्कार व इसी वर्ष सोनपुर मेले में पूरे राज्य में अमरूद शिमला मिर्च खंड
में तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। किसानश्री से सम्मानित इस किसान के साथ
मिलकर फिलहाल 80 लोग जैविक विधि से खेती कर रहे हैं।
लोगों का कहना था कि उनके ही प्रयास से गांव में वर्मी कम्पोस्ट के 24
बेड लग चुके हैं। जैविक ग्राम के सपने को साकार करने के लिए किसान रमाकांत
महतो, सूर्यनारायण महतो, भोगेन्द्र महतो व सहदेव महतो आदि उन्हें सहयोग दे
रहे हैं।
नंद कुमार ने बताया कि रासायनिक खादों व कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से
हाल के वर्षो में उपज में कमी देखने को मिली। तब हम ग्रामीणों ने नावार्ड
की मदद से एक कृषक क्लब का गठन कर पूर्णतया जैविक विधि से खेती की पहल शुरू
की। सब्जी की खेती को बढ़ावा देने के लिए छह स्वयं सहायता समूह हैं,
जिनमें तीन महिला समूह भी हैं। 10 बेड वर्मी कम्पोस्ट लगाने वाले
सूर्यनारायण महतो ने बताया कि यहां दो कट्ठा जमीन वाले या बटाई पर सब्जी
लगाने वाले किसान भी खुशहाल हैं। वर्मी कम्पोस्ट बनाने के साथ-साथ वर्मी
वास भी किसान यहां स्वयं तैयार कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल सब्जी पर टानिक
के रूप में किया जा रहा है। कीटनाशी के रूप में जहां गोमूत्र, गोबर और चूने
का मिश्रण, नीम पत्ता के काढ़ा को किसान निरंतर बढ़ावा दे रहे हैं, वहीं
कीट पतंगों का नाश करने के लिए फेरोमेन ट्राप [फंदा] में लियोनामक टैबलेट
डालकर खेतों में जगह-जगह लगाकर प्रयोग करते हैं।
एक खासियत यह भी है कि किसानों को सब्जी बेचने बाहर नहीं जाना पड़ता है।
गांव में ही प्रतिदिन सुबह छह बजे से सात बजे तक हाट लगती है, जहां दरभंगा
के अलीनगर, घनश्यामपुर, सुपौल के निर्मली, कुनौली, मरौना व स्थानीय
झंझारपुर, मधेपुर के व्यापारी आकर प्रतिदिन सब्जी खरीद कर ले जाते हैं।
गांव के लगभग सभी किसानों के दरवाजे पर देशी गाय है, जिसके मूत्र को
कीटनाशी बनाने के लिए संचित किया जाता है। खेतों की मेड़ पर बायो डीजल बनाने
के लिए जेट्रोफा का पौधा लगाने का काम भी इस वर्ष किसानों ने शुरू कर दिया
है।