नई
दिल्ली। वे दिन गए जब टेलीविजन धारावाहिक सिर्फ महानगरों में रहने वाले
रईसों की दास्तान कहा करते थे। अब ग्रामीण भारत इन धारावाहिकों के केंद्र
में आ गया है और अब इन्होंने ग्रामीण जीवन से मुखातिब होना शुरू कर दिया
है, और वह भी बड़े पैमाने पर।
जी हां, टेलीविजन पर आने वाले कई धारावाहिकों ने अब खुद को गांव देहात
के मुद्दों से जोड़ना शुरू कर दिया है। ‘देवी’ और ‘ना आना इस देश में लाडो’
जैसे धारावाहिक एक हद तक इस बात के सबूत हैं।
अब महंगी कारों, शहरों के शानो शौकत वाली जिंदगी और प्रेम संबंधों के
अलावा गांवों से जुड़े विषयों मसलन जाति प्रथा, बाल विवाह आदि को टेलीविजन
पर भरपूर वक्त मिल रहा है।
कलर्स चैनल की अश्विनी यार्दी कहती हैं कि इस परिवर्तन का सारा श्रेय
उनके चैनल को जाता है क्योंकि कलर्स से पहले इस तरह के धारावाहिक नहीं के
बराबर थे। लोगों को राजसी महलों में शानदार कपड़ों में लिपटी प्रेम कहानी
परोसी जाती थी।
वहीं इमेजिन टीवी के निखिल मधोक कहते हैं कि डीटीएच सेवा आ जाने के
बाद ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में टेलीविजन का विस्तार हुआ है। इसके
चलते दर्शकों की संख्या 14 करोड़ तक बढ़ गई है जो शहरी दर्शकों की संख्या
की पांच गुनी है।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण परिवेश पर आधारित धारावाहिक या कार्यक्रमों
के दर्शक छोटे शहरों और गांवों में सबसे ज्यादा होते हैं। लेकिन शहरों में
भी इनके दर्शकों की एक अच्छी खासी संख्या है।
मधोक कहते हैं कि जी टीवी पर एक धारावाहिक है ‘अगले जनम मोहे बिटिया
ही किजो’ जो दोनों इलाकों के लोगों के बीच लोकप्रिय है, लेकिन सोनी के
कार्यक्रम ‘पाउडर’ और ‘माही वे’ महानगरीय जीवन पर आधारित हैं और यह इतने
लोकप्रिय नहीं हैं।