सुबह के इस दौर में भी छूट रहीं बच्चियां

पटना
[जागरण टीम]। सरकारी प्रयास शुरुआती दौर पर रंग तो ला चुके हैं, लेकिन
मैट्रिक के बाद की पढ़ाई-लिखाई के हलके में राज्य की ज्यादातर बच्चियों के
लिए अपना वजूद बनाए रख पाना आज भी बहुत मुश्किल हो रहा है। 21वीं शताब्दी
के 10 साल गुजरने के बाद भी शैक्षणिक संस्थानों की कमी और बुनियादी
सुविधाओं की किल्लत ने उन्हें मैट्रिक की बाद की पढ़ाई के मद्देनजर तकरीबन
30 साल पीछे ही छोड़ रखा है।

कुछ निजी मजबूरियां और कहीं- कहीं संस्थानों की कमी, दो ऐसी स्थितियां
है जिनसे बहुत सारी बच्चियां मैट्रिक के बाद की पढ़ाई जारी नहीं रख पा रही
हैं। राज्य भर से आए आंकड़ों की तस्वीर भी भरोसा नहीं दिला पा रही है।
फिलहाल बेहतर होंगे हालात इस उम्मीद में हम प्रस्तुत तीसरी कड़ी के साथ इस
अभियान का समापन कर रहे हैं।

भागलपुर: मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना लागू होने के बाद जिले के
110 विद्यालयों में छात्राओं की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। इस वर्ष
करीब 12 हजार छात्राएं मैट्रिक की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई हैं, जबकि
पिछले वर्ष यह संख्या लगभग 10 हजार थी। जिले में चार महिला कालेज हैं।
इनमें सुंदरवती महिला कालेज, झुनझुनवाला बालिका उच्च विद्यालय, इंटर महिला
कालेज और मदन अहिल्या महिला कालेज शामिल हैं। इसके अलावा प्लस टू की पढ़ाई
मोक्षदा बालिका उच्च विद्यालय और राजकीय बालिका उच्च विद्यालय में भी होती
है।

जिले में उच्च शिक्षा के बाबत लड़कियों के लिए अलग से कोई कोचिंग
संस्था नहीं है। एसएम कालेज व मदन अहिल्या कालेज में ही डिग्री की पढ़ाई
होती है।

बांका: जिले में हर वर्ष 4-5 हजार छात्राएं मैट्रिक की परीक्षा पास
करती हैं, लेकिन इनकी आगे की पढ़ाई के लिए अलग से एक भी सरकारी संस्थान
नहीं है। शहर में जिले का एकमात्र वित्त रहित इंटर कालेज है। इसमें 800 के
करीब ही छात्राएं नामांकित हो पाती हैं। इसके अलावा कुछ छात्राएं मजबूरी
में सहशिक्षा वाले सरकारी कालेज या अन्य संस्थानों में नामांकन कराती हैं।
यहां पढ़ाई कम केवल फार्म भरने व परीक्षा देने का काम होता है। बालिकाओं
के लिए डिप्लोमा या अन्य तकनीकी शिक्षा की पढ़ाई तो अभी सपने की तरह है।

मुंगेर: जिले के गंगा दियारा क्षेत्र की पांच पंचायतों कुतलूपुर,
टीकारामपुर, जाफरनगर, झौवा बहियार व हरिणमार की लड़कियां तो दूर, लड़के भी
हाई स्कूल के बाद पढ़ना लगभग बंद कर देते हैं। भौगोलिक दृष्टि से दियारा
पार कर जिला मुख्यालय आने में 16 किलोमीटर पैदल चलना होता है जो बालिकाओं
के लिए संभव नहीं है। उक्त पंचायतों में करीब 50 हजार की आबादी निवास करती
है। प्रतिवर्ष जिले में करीब पांच हजार छात्राएं हाई स्कूल की परीक्षा
उत्तीर्ण करती हैं, जबकि आगे की शिक्षा के लिए मात्र दो महिला कालेज हैं।
इनमें जिला मुख्यालय में बीआरएम कालेज तथा जमालपुर में डीएवी कालेज शामिल
हैं।

जमुई: जिले में दसवीं की परीक्षा देने वाली छात्राओं की संख्या में
दोगुने से अधिक का इजाफा हुआ है। इस वर्ष 10वीं की परीक्षा में जिले से
5848 छात्राओं ने परीक्षादी, लेकिन आगे की पढ़ाई उनके लिए सपना है। जिले
में मात्र दो निजी कालेज हैं जहां लड़कियों की पढ़ाई होती है। झाझा महिला
कालेज तथा जमुई के श्यामा प्रसाद सिंह महिला कालेज में 800 छात्राओं का
दाखिला इंटर में होता है। जिले के खैरा, मलयपुर तथा सोनो बालिका उच्च
विद्यालय में ही बालिकाओं के लिए प्लस टू की पढ़ाई हो रही है।

सहरसा: बालिकाओं के लिए जिला मुख्यालय पर केवल दो स्कूल हैं। एक जिला
ग‌र्ल्स स्कूल तथा दूसरा पूरब बाजार स्थित राजकीय कन्या उच्च विद्यालय। इन
दोनों में पंजीकृत बालिकाओं की संख्या लगभग डेढ़ हजार है। इसके अलावा कहरा
प्रखंड के बनगांव में फुलदाई देवी कन्या विद्यालय तथा चैनपुर पड़री में एक
बालिका उच्च विद्यालय है। इन दोनों में पंजीकृत बालिकाओं की संख्या लगभग
साढे़ चार सौ है। बख्तियारपुर सिमरी, महिषी, नवहट्टा व चंदौर [सौरबाजार]
में प्रोजेक्ट कन्या विद्यालय खोला जाना है। कोसी प्रमंडल में लड़कियों के
लिए एक ही महिला महाविद्यालय है। इसकी स्थापना 1972 में हुई थी। यहां लगभग
तीन हजार छात्राएं पंजीकृत हैं।

सुपौल: जिले में हाल के वर्षो में औसतन तीन हजार लड़कियां 10वीं पास कर
रही हैं लेकिन यहां सरकारी मान्यता प्राप्त एक भी महिला कालेज नहीं है।
अलबत्ता तीन गैर सरकारी महिला महाविद्यालय हैं। इनमें एक को छोड़ बाकी में
नियमित कक्षाएं होती भी नहीं हैं। वैसे तमाम उच्च विद्यालयों को प्लस टू
का दर्जा मिल चुका है, लेकिन पढ़ाई की सुविधा गत वर्ष तक तीन उच्च
विद्यालयों में ही थी। इस वर्ष चार और उच्च विद्यालयों में पढ़ाई की
सुविधा हो जाएगी। गत वर्ष इंटर परीक्षा में 1553 छात्राएं शामिल हुई थीं
जिनमें से आधी लड़कियां उच्च शिक्षा से वंचित हैं।

मधेपुरा: जिले में हर वर्ष लगभग 4500 लड़कियां मैट्रिक पास करती हैं,
लेकिन इनमें से अधिकांश उच्च शिक्षा से वंचित रह जाती हैं। इंटर की पढ़ाई
अमूमन प्रखंड मुख्यालयों के इंटर स्तरीय विद्यालयों और निजी कालेजों में
नहीं होती है। ऐसे संबद्ध कालेज ही अधिक हैं, जहां वर्ग संचालन न के बराबर
होता है। सिर्फ 10 प्रतिशत लड़कियां ही जिला मुख्यालय या फिर बड़े शहरों में
इंटर में नामांकन करा पाई हैं। जिला मुख्यालय में एकमात्र महिला संबद्ध
कालेज है जहां छात्रावास नहीं है। भूना मंडल विश्वविद्यालय तथा पार्वती
विज्ञान कालेज में छात्राओं के लिए छात्रावास बनकर तैयार है, लेकिन न तो
अभिभावक छात्राओं को रहने के लिए भेजते हैं और न कालेज इसके लिए तैयार है।

लखीसराय: जिले में 2007-08 में 2,200, 2008-09 में 4,030 एवं 2009-10
में 5,050 छात्राएं वार्षिक माध्यमिक परीक्षा में शामिल हुई। इनमें
2007-08 में 44 फीसदी, 2008-09 में 51 फीसदी और 2009-10 में 60 फीसदी
लड़कियां उत्तीर्ण हुई। इनमें से लगभग 20 से 25 फीसदी ही आगे की पढ़ाई के
लिए कालेज में दाखिला ले पाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में हाई स्कूल के
बाद लड़कियों के पढ़ने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। जिले में मात्र दो
अंगीभूत कालेज जिला मुख्यालय में केएसएस कालेज एवं बड़हिया में बीएनएम
कालेज हैं। इसके अलावा बड़हिया में वित्त रहित महिला महाविद्यालय एवं
लखीसराय में आर लाल कालेज है जबकिसूर्यगढ़ाप्रखंड के घोसैठ में डिग्री
कालेज है। इन सभी शिक्षण संस्थानों में औसतन 20-25 फीसदी छात्राएं पढ़ती
हैं।

पूर्णिया: ग्रामीण इलाके की लड़कियां उच्च शिक्षा से काफी दूर हैं।
प्रखंडों में न कोई कालेज है और न ही संस्थान। ऐसे में जिला मुख्यालय
स्थित एकमात्र महिला महाविद्यालय में वही लड़कियां उच्च शिक्षा ले पाती हैं
जो शहर में रहती हैं या जो कालेज के छात्रावास में हैं। जिले में हर वर्ष
करीब पांच हजार लड़कियां मैट्रिक पास करती हैं। इस वर्ष तो 6692 लड़कियां
मैट्रिक की परीक्षा में शामिल हुई थीं। जिले के सभी 14 प्रखंडों में कहीं
भी कालेज नहीं है।

किशनगंज: जिले में 2008-09 में लगभग 2,196 और 2009-10 में लगभग 2300
छात्राओं ने 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 2008-09 में लगभग एक हजार
छात्राओं ने इंटर में नामांकन कराया। यहां छह कालेज हैं। इनमें आरके साहा
महिला कालेज में 400, मारवाड़ी कालेज में 200, इंटर स्तरीय उच्च विद्यालय
में 100, इंसान कालेज में 100, बहादुरगंज कालेज में 100 और तुलसिया कालेज
में 100 छात्राओं का नामांकन होता है।

अररिया: जिले में एक भी सरकारी महिला कालेज नहीं है। वित्त रहित स्तर
का अररिया अनुमंडल में एक महिला इंटर कालेज और फारबिसगंज अनुमंडल में दो
महिला कालेज है। सरकार ने सभी उच्च विद्यालयों को प्लस टू का दर्जा देने
की घोषणा की है लेकिन अब तक किसी में इंटर की पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई है।
जिले में सात बालिका उच्च विद्यालय हैं। अनुमानत: यहां 1500 से अधिक
छात्राएं प्रतिवर्ष मैट्रिक परीक्षा पास तो करती हैं लेकिन आगे की पढ़ाई
से पांच सौ से अधिक वंचित रह जाती हैं।

कटिहार: पिछले तीन वर्षो में लड़कियों में शिक्षा का प्रतिशत बढ़ा है,
लेकिन जिले में केवल एक महिला महाविद्यालय होने से उनकी आगे की पढ़ाई
मुश्किल हो जाती है। 2010 में छह हजार तीन सौ तीन लड़कियां 10वीं की
परीक्षा में उत्तीर्ण हुई हैं। जिला मुख्यालय में एकमात्र एमजेएम महिला
महाविद्यालय है।

खगड़िया: 2009 में लगभग छह हजार व 2010 में लगभग सात हजार छात्राओं ने
मैट्रिक पास की परंतु कालेज का अभाव इनकी राह में रोड़ा बन गया। यहां मात्र
एक महिला कालेज है। यहां सिर्फ कला की पढ़ाई होती है। विज्ञान और वाणिज्य
पढ़ने की इच्छुक छात्राएं कोसी कालेज में नामांकन कराती हैं। महिला कालेज
में कला संकाय में 512 सीट उपलब्ध है। कोसी कालेज में छात्राओं की संख्या
अपेक्षाकृत अधिक है।

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