रमनजीत सिंह, तलवंडी साबो । अंग्रेजी की
पुरानी कहावत है ‘ओल्ड इज गोल्ड’ और यह कहावत यहां के गुड़ पर भी लागू होती
है। दरअसल यह गुड़ कई गुणों का धनी है। सही मानें तो यह संजीवनी है। जी
हां, यहां पंसारी की एक ऐसी दुकान है, जहां गुड़ बेशकीमती चीज की तरह ही
बिकता है।
आसपास के इलाकों में देसी दवाखाने चलाने वाले वैद्य इस पुराने गुड़ को
विभिन्न दवाएं तैयार करने में इस्तेमाल करते हैं। गुड़ की कीमत उसकी उम्र
पर निर्भर करती है, जो 50 रुपये से लेकर 120 रुपये प्रति दस ग्राम तक है।
वर्षो पुरानी इस दुकान का नाम है देवराज-अशोक कुमार। यहां पर उनके
बुजुर्ग बाल मुकंद ने बिजनेस शुरू किया था और तभी से गुड़ को संभालकर रखने
की परंपरा भी शुरू हुई। मौजूदा समय में दुकान का कामकाज देख रही परिवार की
तीसरी पीढ़ी के संदीप कुमार काली ने कहा कि उनके दादा बाल मुकंद गांव में
काफी मशहूर वैद्य थे। उन्होंने ही अन्य औषधियों के साथ-साथ पुराना गुड़
रखना शुरू किया था। 1962 में उनके दादा ने तलंवडी साबो में इस दुकान को
खरीदा था और यहां काम शुरू किया था। गुड़ तो दुकान शुरूकरने से भी काफी
पहले का दादा के पास पड़ा था। दादा की मौत के बाद वैद्यखाना तो बंद हो गया
लेकिन उनके पिता ने पंसारी व देसी दवाओं का काम शुरू कर दिया। उनका कहना
है कि दादा बही खाते में सारा हिसाब किताब रखते थे जिसमें अन्य दवाओं के
साथ-साथ गुड़ का जिक्र भी होता था। दादा की मौत के बाद बहीखाते भी बंद हो
गए।
संदीप ने बताया कि ज्यादातर पुराने गुड़ का इस्तेमाल वैद्यों द्वारा
दर्द व अन्य कई रोगों की दवा बनाने में किया जाता है। गुड़ जितना पुराना
होता है, उसी के हिसाब से उसका मूल्य भी निर्धारित होता है। संदीप काली ने
बताया कि उनकी दुकान में सबसे पुराना गुड़ तकरीबन 120 वर्ष पुराना है। अब
इसकी क्वांटिटी काफी कम हो गई है। संदीप ने बताया कि गुड़ को दवा के तौर पर
इस्तेमाल करने के लिए वह वैद्यों द्वारा बताई विधि के मुताबिक मिट्टी या
धातु के बड़े बर्तनों में संभालकर रखते हैं। किस दिन गुड़ को बंद करके रखा
गया उसकी तारीख भी बर्तनों पर अंकित करते हैं।
इस बारे में लुधियाना के वैद्य कविराज वेणी प्रसाद कहते हैं कि पुराना
गुण अत्यंत लाभकारी होता है। स्त्री रोगों की दवा बनाने में खास तौर पर
पुराने गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है। उनका कहना है कि शुद्ध मिले तो यह
गुड़, गुड़ नहीं दवा है, लेकिन आजकल शुद्ध गुड़ मिलता कहां है?
मौड़ मंडी में पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने वाली संस्था नंदनी सेवा
सोसायटी के कार्यकर्ता सुरेश कुमार शर्मा ने कहा कि यह बहुतच्अच्छी बात है
कि पुरानी परंपरा को संभालकर रखा गया है और इसे आगे बढ़ाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हमें अपने बिजनेस के साथ-साथ पुराने संस्कारों व ऐसी ही
पुरानी परंपराओं को भी जीवित रखने की जरूरत है जोबहुत उपयोगी साबित होगा।