नई
दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अमेरिका व अन्य विकसित यूरोपीय देश अच्छी आर्थिक
वृद्धि के लिए तरस रहे हैं। ऐसे में बीते वित्ता वर्ष 2009-10 की आखिरी
तिमाही में भारत की विकास दर साढ़े आठ फीसदी को भी पार कर गई है। केंद्र
सरकार की तरफ से सोमवार को जारी ताजे आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्ता वर्ष
की अंतिम तिमाही [जनवरी-मार्च, 2010] में सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] की
वृद्धि दर 8.6 फीसदी रही है। अंतिम तिमाही के इस जोरदार प्रदर्शन ने पूरे
वर्ष के दौरान देश के आर्थिक विकास की तस्वीर को बेहतर बना दिया है। इसके
चलते पिछले वित्ता वर्ष के दौरान आर्थिक विकास दर 7.4 फीसदी हो गई है।
कल-कारखानों की तेज रफ्तार से अर्थव्यवस्था को उबरने में मदद मिली है,
लेकिन वित्ताीय और सामुदायिक सेवाओं की वृद्धि दर गिर गई है। फिर भी ये
आंकड़े कई सरकारी व गैर-सरकारी एजेंसियों के अनुमानों से बेहतर है। वर्ष
2008-09 में 6.7 फीसदी की जीडीपी वृद्धि दर के बाद तमाम एजेंसियों का
अनुमान था कि वर्ष 2009-10 में भारतीय अर्थव्यवस्था करीब 7 फीसदी की
रफ्तार से बढ़ेगी।
अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में मैन्यूफैक्चरिंग और कृषि ने सबसे अहम
भूमिका निभाई है। अंतिम तिमाही में कृषि में 0.7 फीसदी की वृद्धि दर काफी
प्रोत्साहित करने वाली है। इससे पूरे वर्ष के लिए कृषि की विकास दर 0.2
फीसदी हो गई है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर अंतिम तिमाही में
16.3 और खनन क्षेत्र की 14 फीसदी रही है। अगर पूरे वित्ता वर्ष की बात
करें तो मैन्यूफैक्चरिंग में 10.8, खनन में 10.6, दोनों सेवा क्षेत्रों
में क्रमश: 9.3 और 9.7 फीसदी की वृद्धि रही है। इस दौरान सामुदायिक,
सामाजिक व व्यक्तिगत सेवाओं की वृद्धि दर में भारी गिरावट सरकार के लिए
चिंता का कारण बन सकती है। माना जा रहा है कि सरकार के खर्चे में कटौती की
वजह से इस सेवा क्षेत्र में कमी हुई है।