सिरसा। इसमें संदेह नहीं कि वक्त का पहिया
तेजी से घूमा है और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कई परपराएं पीछे छूट गई है।
लेकिन राजनीति के जमा-घटा के बीच पूर्वजों के जमाने का पंचायती राज फिर से
उभरने लगा है। एक तथ्य साफ उभर कर आ रहा है कि कई पंचायतें लोकतंत्र की
थाली में सामाजिक समरसता परोस रही है। सिरसा जिले में एक दर्जन से अधिक
सरपंच सर्वसम्मति से चुने गए हैं। इसके अलावा पांच सौ से अधिक पंच भी
सर्वसम्मति से चुने गए हैं। कई गांवों तो पूरी पंचायतें ही सर्वसम्मति से
चुनी जा चुकी हैं।
सिरसा जिले के गाव पन्नीवाला मोरिका में समरसता की दुहाई देकर एक
आश्रम के संत के समक्ष लगभग एक हजार स्त्री-पुरुषों ने सरपंच का चयन कर
लिया। ग्रामीणों व खुद सरपंच का भी कहना है कि पार्टियों के नाम पर
गुटबाजी खत्म करने की पृष्ठभूमि पर सबकी सहमति से यह निर्णय लिया गया है।
साथ ही पाच वार्डो में पंचों को भी सबने मिलकर चुन लिया। हालाकि चर्चाएं
यह भी रही कि इस गाव के पाचवीं कक्षा पास सरपंच को 11 लाख में चौधर मिली
है। सरपंच जगदीप सिंह व डेरा बाबा ज्ञाननाथ के संत बाबा फलाई नाथ इस बात
से साफ इंकार कर रहे है।
सर्वसम्मति की यह बयार पन्नीवाला मोरिका के साथ-साथ जिले के लगभग एक
दर्जन गावों तक जा पहुंची है। सिरसा खंड के अंतर्गत मौजूखेड़ा, बड़ागुढ़ा
खंड के गाव मत्तड़ व लहगेवाला में तो पूरी पंचायत ही सर्वसम्मति से गठित हो
गई हैं।
इसके अलावा गांव बुर्जभंगु व गांव हसू में भी सर्वसम्मति से सरपंच चुन
लिया गया। एक दर्जन से अधिक सरपंच व लगभग 500 पंचों का सबकी सहमति से चुना
जाना विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की समृद्धि की बानगी दर्शाता है।
एक सच्चाई यह भी है कि भारतीय लोकतात्रिक प्रणाली के अंतर्गत पंचायती
राज एक्ट में सर्वसम्मति का कहीं कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जिला
ग्रामीण विकास अभिकरण की चेयरपर्सन पंकज चौधरी कहती है कि समय के साथ कई
बार नई व्यवस्था का उदय हो जाता है। सर्वसम्मति के बढ़ते चलन पर उनका कहना
है कि सरकार की ओर से भी सर्वसम्मति वाले सरपंच को प्रोत्साहित करने के
लिए अलग से मानदेय देने की व्यवस्था है। ऐसी पंचायत को सरकार की तरफ से
तीन लाख रुपये तक का सहयोग मिलेगा।
व्यवस्था भले ही सरकारी तौर पर जो दी जा रही हो पर सबकी सहमति से
पंचायतों के गठन की इस परपरा ने जहा समाज में समरसता घोलने की दिशा में
चार कदम आगे बढ़ाए है वहीं नए युग का सूत्रपात भी किया है।