मोबाइल टावर सीलिंग मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को
निर्देशित किया कि तकनीकी और मेडिकल विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाए, जो ये
पता लगाएगी कि मोबाइल टावर्स से स्वास्थ्य संबंधी क्या खतरे हो सकते हैं।
अदालत ने कमेटी की जरूरत इसलिए भी जताई, क्योंकि टावर से निकली रेडियो
तरंगों से नुकसान का पता लगाने का अभी कोई आकलन नहीं हुआ है। हाईकोर्ट ने
कहा कि टावर्स से होने वाली आमदनी से ज्यादा अहम मुद्दा आम आदमी की सेहत
और सुरक्षा है।
जस्टिस कैलाश गंभीर ने अपने 32 पन्ने के अंतरिम आदेश में केंद्रीय
संचार सचिव और निगम आयुक्त से तकनीकी और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक कमेटी
बनाने को कहा है, जो मोबाइल टावर्स से होने वाले दुष्प्रभावों का पता
लगाकर तीन महीने में रिपोर्ट सौंपेगी। कमेटी में टेलीकॉम क्षेत्र में काम
करने वाले एनजीओ के नुमाइंदे होंगे और ऑपरेटर्स की एसोसिएशन के वो
पदाधिकारी भी, जो आम आदमी की सुरक्षा और सेहत के लिए फिक्रमंद रहे हैं।
अदालत ने संचार सचिव और निगम प्रशासन को ताकीद किया है कि अगले दो
हफ्तों में कमेटी की बैठक आयोजित करके काम शुरू करें। जस्टिस गंभीर ने
अपने अंतरिम आदेश में मोबाइल ऑपरेटर्स को राहत भी बख्शी है। उन्हें
निर्देशित किया गया है कि टावर्स चलाने के लिए पांच लाख रुपये के बजाय
हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में दो लाख रुपये छह महीने के लिए फिक्स्ड डिपाजिट
कर दें। साथ में अदालत ने मोबाइल ऑपरेटर्स से ये भी कहा कि शपथपत्र दें कि
अगर एमसीडी की मोबाइल नीति को सही ठहराया जाता है तो बकाए के तीन लाख
रुपये का भुगतान करेंगे।
हाईकोर्ट ने एमसीडी को निर्देशित किया है कि सिर्फ मान्यता प्राप्त
संस्थानों के इंजीनियरों द्वारा दिए गए स्ट्रक्चरल सेफ्टी सर्टिफिकेट को
ही स्वीकारें।
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में निगम अधिकारियों ने अदालत को बताया कि
मोबाइल ऑपरेटरों को दी समय सीमा समाप्त होने के बाद ही अवैध मोबाइल टॉवरों
को सील करने का अभियान शुरू किया है। निगम के मुताबिक, दिल्ली में कुल
5364 मोबाइल टॉवरों में से केवल 2412 ही अनुमति प्राप्त हैं। बाकी के 2952
टावर अवैध तरीके से लगाए गए हैं।
निगम प्रशासन ने मोबाइल टॉवरों के लिए नई नीति 9 फरवरी 2010 को घोषित
की थी। नए निर्देशों के मुताबिक किसी भी मोबाइल टॉवर को लगाने के लिए सेवा
प्रदाता को निगम प्रशासन को पांच लाख रुपये देने होंगे, जबकि पहले ये राशि
एक लाख रुपये होती थी।