नई
दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। महंगाई को रोकने की हर कोशिश नाकाम होने के बाद
केंद्र सरकार को कृषि तथा मैन्यूफैक्चरिंग दोनों क्षेत्रों से खुशखबरी
मिली है। वर्ष 2009-10 की तीसरी तिमाही के मुकाबले चौथी तिमाही में जहां
कृषि विकास दर में ढाई फीसदी का इजाफा हुआ है और यह बढ़कर 0.7 फीसदी पर
पहुंच गई है। वहीं मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में वृद्धि दर 13.8 से बढ़कर
16.3 फीसदी पर पहुंच गई है। इससे अंतिम तिमाही में जीडीपी की 8.6 फीसदी की
विकास दर हासिल हुई है। इन आंकड़ों से वर्ष 2009-10 के वार्षिक वृद्धि के
आंकड़ों को बल मिला है और वार्षिक विकास दर 7.4 फीसदी पर पहुंच गई है।
सरकार अब मानने लगी है कि अगर केवल मानसून समय पर आ जाए तो अगले चार
महीनों के भीतर खाद्य उत्पादों की कीमतों को काफी हद तक नीचे लाया जा सकता
है। इससे अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार को बरकरार रखना संभव होगा। साथ ही
ब्याज दरों में ज्यादा बढ़ोतरी की संभावना भी खत्म हो जाएगी।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक बाहरी और सरकारी दोनों तरह की
एजेंसियां मान कर चल रही थीं कि वर्ष 2009-10 में कृषि क्षेत्र में या तो
गिरावट आएगी या फिर बहुत ही कम वृद्धि दर हासिल होगी। खास तौर पर मानसून
की स्थिति और मध्य भारत के कई हिस्सों में बाढ़ व सूखे के चलते किसी को यह
उम्मीद नहीं थी कि जनवरी से मार्च, 2010 के बीच खेती बाड़ी की वृद्धि दर
2.5 फीसदी छलांग लगा जाएगी। जनवरी 2010 में समाप्त तीसरी तिमाही में कृषि
क्षेत्र की विकास दर ऋणात्मक [-1.8 फीसदी] थी, जबकि मार्च, 2010 में
समाप्त चौथी और अंतिम तिमाही में यह दर बढ़कर 0.7 फीसदी हो गई है। इसके
साथ ही पूरे वित्त वर्ष 2009-10 में कृषि की वृद्धि दर 0.2 प्रतिशत रही
है। यह दर 2008-09 की 1.6 फीसदी कृषि वृद्धि दर के मुकाबले हालांकि काफी
कम है, फिर भी कम से कम कृषि में गिरावट का रुख पलटने लगा है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पिछले दिनों कहा था कि महंगाई की दर
वर्ष के अंत तक काबू में आ सकेगी। इन आंकड़ों के बाद अनुमान है कि खाद्य
कीमतों की मौजूदा महंगाई दर 16 से घटकर सितंबर, 2010 तक 5 फीसदी पर आ सकती
है। देश के दक्षिणी हिस्से में मानसून के समय पर पहुंचने से यह आसार और
मजबूत हुए हैं।
प्रमुख अर्थशास्त्री डीएच पई पणंदिकर का कहना है कि सरकार का यह
अनुमान सही है कि अगले चार-पांच महीनों के भीतर महंगाई की दर काफी कम हो
सकती है। इससे रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों को बढ़ाने का भी दबाव कम होगा।
पणंदिकर के मुताबिक एक समस्या मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र से आ सकती है,
क्योंकि वहां अधिकांश कंपनियां क्षमता का पूरा इस्तेमाल कर रही हैं। ऐसे
में मांग बढ़ने पर थोड़ी समस्या आ सकती है। इस सबके बावजूद ऐसा नहीं लगता
है कि रिजर्व बैंक इस वर्ष ब्याज दरों में 0.5 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि
करना चाहेगा।
देश के प्रमुख आर्थिकथिंक टैंक इक्रियर के निदेशक राजीव कुमार का
कहना है कि मानसून केखराब होने पर भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज बनी रह
सकती है। एक प्रमुख कारण यह है कि कृषि उत्पादन में अनाजों [मोटे अनाज,
दाल, तिलहन आदि] की हिस्सेदारी घट रही है, जबकि फल, सब्जियों, दुग्ध
उत्पाद, मांस वगैरह की हिस्सेदारी बढ़ रही है। ऐसे में अगर मानसून इस साल
मेहरबान हो जाए तो फिर महंगाई के खिलाफ सरकारी अभियान सफल हो सकता है।