नई
दिल्ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना [नरेगा] में
और ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए मजदूरों को बायोमेट्रिक कार्ड देने की
योजना है। देश के कई हिस्सों में इस योजना में अनियमितताओं की शिकायतें
मिलती हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय की
हाल की एक बैठक में नरेगा कर्मचारियों के लिए ’12 महीने के भीतर’
बायोमेट्रिक कार्ड बनाने की योजना के बारे में फैसला किया गया। बैठक में
यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथोरिटी ऑफ इंडिया [यूआईडीएआई] के अधिकारियों ने भी
भाग लिया।
सूत्रों ने बताया कि इसके लिए फैसला हुआ है कि मंत्रालय प्रदेशों के
साथ मिल कर इस बात पर विमर्श करेगा कि परियोजना को इसकी शुरुआत की तिथि से
12 महीने के भीतर पूरा किया जा सके।
उन्होंने बताया कि बैठक में यह भी फैसला किया गया है कि मजदूरों से जुड़ी इस पूरी जानकारी को यूआईडीएआई के साथ भी बांटा जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि नरेगा के तहत मजदूरी के भुगतान के लिए
बायोमेट्रिक कार्ड बनाने की योजना मंत्रालय के पास काफी समय से लंबित थी।
कुछ प्रदेशों, जैसे उड़ीसा, राजस्थान, असम और बिहार ने अपने कुछ जिलों में
इस परियोजना को शुरू भी किया है।
सूत्रों ने बताया कि ग्रामीण विकास मंत्री सी पी जोशी ने इस प्रक्रिया
में काफी रुचि दिखाई थी क्योंकि मंत्रालय को देश के विभिन्न हिस्सों से
नरेगा के तहत भुगतान में अनियमितताओं की लगातार शिकायतें मिल रहीं थीं।
योजना की शुरुआत 2006 में हुई थी, जिसके बाद से अब तक मंत्रालय के पास
योजना के तहत भुगतान में अनियमितता और ऐसी ही अन्य लगभग 1,230 शिकायतें आ
चुकीं हैं।
सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय को पिछले तीन साल में मजदूरी का भुगतान
न होने के संबंध में लगभग 100 और समय पर भुगतान न होने के संबंध में लगभग
36 शिकायतें मिल चुकी हैं।