नई
दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। बहुचर्चित खाद्य सुरक्षा कानून के आने से
पहले ही केंद्र सरकार राशन प्रणाली को दुरुस्त कर लेना चाहती है। इसकी
खामियों को दूर करके इसे कारगर बनाने के लिए केंद्र ने राज्यों से उपयुक्त
सुझाव देने को कहा है।
इसके लिए सभी राज्यों को खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों और राशन प्रणाली
की खामियों से संबंधित एक मसौदा भी भेजा गया है। केंद्र सरकार ने अपना
माडल थोपने की जगह राज्यों की राय जानने और उनके सुझाए उपायों पर चलने की
पहल की है। इसके लिए राज्यों के खाद्य मंत्रियों का सम्मेलन बुलाया गया
है।
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के आने के बाद राशन प्रणाली पर बोझ और बढ़ेगा,
जिसके लिए मौजूदा व्यवस्था तैयार नहीं है। इसीलिए समय रहते इसमें सुधार की
कोशिश शुरू कर दी गई है। राज्यों में फर्जी राशन कार्ड और अनाजों के खुले
बाजार में बेच दिए जाने की समस्या पर केंद्र गंभीर चिंता जताता रहा है।
जबकि राज्य सरकारों ने गरीबों [बीपीएल] की संख्या को कम आंकने पर केंद्र
सरकार से अपनी नाराजगी जताई है।
गरीबों की संख्या पर योजना आयोग के आंकड़ों को लेकर केंद्र व राज्यों
के बीच का पुराना विवाद फिर उठेगा। गरीबों की संख्या पर योजना आयोग अपनी
रिपोर्ट सरकार को सौंपने वाला है। राशन प्रणाली में सुधार के लिए भी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह
अहलूवालिया की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है, जिसकी रिपोर्ट
जल्दी ही आने वाली है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार राज्यों के खाद्य
मंत्रियों के सम्मेलन में छत्तीसगढ़, केरल और आंध्र प्रदेश में संचालित
राशन प्रणाली को रखा जाएगा, जिन्हें सफल माना जाता है। जिन राज्यों में
राशन प्रणाली बहुत अच्छी चल रही है, उनकी व्यवस्था को लोगों के बीच रखा
जाएगा।
खाद्य कूपन की राय भी रखी जा सकती है, जो बिहार में कारगर साबित हुई
है। राशन प्रणाली से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि एक तरह की
प्रणाली सभी राज्यों में सफल हो जाए, यह जरूरी नहीं है। भंडारण के लिए
जिला स्तर पर गोदाम न होने से भी मुश्किलें पेश आती हैं। राशन प्रणाली के
लिए ज्यादातर राज्य अनाज खुद नहीं खरीदते हैं, वे पूरी तरह भारतीय खाद्य
निगम पर निर्भर रहते हैं। इससे भी अनाज की चोरी और लागत बढ़ जाती है।