पटना। अवधारणा के स्तर पर हुए परिवर्तन ने
बिहार में जेंडर बजट को नयी ऊंचाई दी है। दो वर्ष पूर्व 2008 में पहली बार
बजट में स्त्री पक्ष की हिस्सेदारी सुनिश्चित हुई। सरकार ने इस तथ्य को
पहचाना कि लोक व्यय में जब तक आधी आबादी के सबलीकरण के लिए ठोस प्रबंध
नहीं होगा, आधी जनसंख्या की विकास में भागीदारी नहीं हो सकेगी। इसी पैटर्न
पर योजनाओं को दो श्रेणी में बांटा गया और फिर जेंडर बजट का अलग से
लेखा-जोखा तय हुआ।
देश के अन्य हिस्सों की तरह स्त्री अधिकारिता की लड़ाई में बिहार का भी
ओज रहा है। निश्चय ही इस ओज का असर है कि हक और कद की लड़ाई के नतीजे में
औरतों को उनकी कल्याणकारी योजनाओं में बड़ी हिस्सेदारी मिली। पंचायती राज
व्यवस्था में महिला आरक्षण प्रतिशत को उनकी संख्या बल के बराबर करने वाले
इस सूबे में इस समय प्रथम श्रेणी की वे योजनाएं हैं, जिनमें 100 प्रतिशत
प्रावधान महिलाओं के लाभ के लिए हैं। दूसरी श्रेणी की वे योजनाएं हैं,
जिनमें कुल प्रावधान का 30 प्रतिशत आधी आबादी के नाम है। लिंग आधारित बजट
अभी उभरता हुआ क्षेत्र है। वर्ष 2010-11 के लिए प्रथम श्रेणी की योजनाओं
में 1650.46 करोड़ का प्रावधान किया गया है और इसकी वृद्धि दर 47.61
प्रतिशत है। द्वितीय श्रेणी योजनाओं का वृद्धि प्रतिशत 34.36 है, जिसमें
इस साल 3008 करोड़ का प्रावधान।
बिहार में महिला एवं पुरुषों के तुलनात्मक विकास संकेतक पर गौर करें
तो बड़ा फासला नजर आता है। नामांकन प्रतिशत जहां पुरुषों का 77 प्रतिशत है,
वहीं महिलाओं का 69 प्रतिशत है। साक्षरता प्रतिशत 60.32 बनाम 33.57 फीसदी
है। संतुलित सामाजिक विकास के लिहाज से ही बालिका साइकिल योजना, कन्या
विवाह योजना, मुख्यमंत्री बालिका पोशाक योजना, नारी शक्ति योजना,
लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना
को जेंडर बजट में प्रथम श्रेणी में रखा गया है। पहले वित्ता विभाग में
जेंडर बजट के लिए कोषांग बनाया गया, लेकिन अब कई विभागों में इसके लिए
कोषांग गठित किया गया है। इस समय 12 ऐसे विभाग हैं जो जेंडर बजट के
हिस्सेदार हैं। इनमें प्रमुख हैं-समाज कल्याण विभाग, मानव संसाधन विभाग,
पीएचईडी, स्वास्थ्य विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, श्रम संसाधन, पंचायती राज
विभाग,राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग आदि। योजना एवं विकास तथा पिछड़ा-अति
पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग ने पहली बार इस बार के बजट में अपनी हिस्सेदारी
दर्ज की है।