बालेश्वर। सरकार ने देश के सभी बच्चों को शिक्षा देने के लिए एक कानून
बनाया है। जिससे कोई अनपढ़ न रहे किन्तु यहां हम एक ऐसे युवक की बात करने
जा रहे है, जो सन् 1990 से अपने गांव के छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक
को शिक्षित करने का काम कर रहा है। पर हम जिस नौजवान की बात करने जा रहे
है, यह अविवाहित है तथा बेरोजगार है। इस युवक ने लोगों को शिक्षित करने के
उद्देश्य से अपने गांव में एक पाठागार खोल रखा है। जहां गांव के बच्चे,
बूढ़े सभी सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक पढ़ने आते है। इस पाठागार का नाम
लोकनाथ पाठागार रखा गया है। यह कोई सरकारी या ग्राम समाज का पुस्तकालय
नहीं है। बल्कि यह एक व्यक्ति जिसका नाम विकाश कुमार शतपथी है, उसने अपने
बलबूते पर इस पुस्तकालय को अपने ही घर में स्थापित कर रखा है। बालेश्वर
जिला अन्तर्गत बाहानगा ब्लाक के मदरपुर नामक ग्राम में स्थित है। मिट्टी
से बने इस मकान के भीतर जाते ही मानों दिल व दिमाग खुश हो जाता है। सन्
1990 से शुरू हुआ इस पुस्तकालय की शुरूआत यहां पर रखी गई किताबों में से
90 प्रतिशत किताबें लोगों के सहयोग से मिली है। केवल 10 प्रतिशत किताबों
को ही बाजार से खरीदा गया है। विदेशों में रहने वाले कई लोगों ने भी
किताबें भेजी है। इस पुस्तकालय में विभिन्न भाषाओं के पाठयपुस्तक को सजाकर
रखा गया है। उड़िआ, अंग्रेजी, हिन्दी, बांगला आदि भाषाओं की किताबें व
अखबार यहां मौजूद है। इस लोकनाथ पाठागार में 600 से भी ज्यादा
पांडुलिपियां है। जो कि 300 साल से भी पुरानी है। क्योंकि इन ताड़पत्रों पर
लिखी इन पोथियों पर महीना, दिन, साल भी अंकित है। इस पांडुलिपियों पर
मुख्यत: तीन प्रकार की भाषाएं देखने को मिलती है उड़िआ, हिन्दी व देवनागरी
भाषा। इस पुस्तकालय में विश्व के विभिन्न देशों के सिक्कों व रुपयों को भी
सजाकर रखा गया है। इतना ही नहीं विभिन्न देशों के डॉक टिकट व अखबार भी
यहां पर मौजूद है। यहां पर कुल 40 हजार हिन्दी, अंग्रेजी व उड़िआ भाषा में
लिखी किताबें है। यहां पर 70 से 80 साल पुराने अखबार, 1932 व 1940 के
जमाने में पढ़ी जाने वाली पाठयपुस्तक भी मौजूद है। इस पाठागार के आकर्षण
का केन्द्र है टोपियां। यहां पर कई सिपाहियों से लेकर एसपी तक की टोपियों
तथा सेना के तीनों अंगों के अधिकारियों की टोपियां रखी है। हमारे
प्रतिनिधि द्वारा विकाश शतपथी से सवाल करने पर उन्होंने बताया कि मुझे यह
प्रेरणा उड़िशा के नयागड़ जिला के रहने वाले प्रख्यात किताब प्रेमी दासिया
आजा नामक एक महान व्यक्ति से मिली। जिन्होने खुद एक विशाल पाठागार बनाया
है। विकाश ने बताया कि गांव में अक्सर लोग काम खत्म कर सो जाया करते है।
या फिर तास खेलते थे। मगर इस पुस्तकालय के स्थापित हो जाने से लोग यहां
आते है व विचारों का आदान प्रदान करते है। यहां पर आने वाले किसी भी
व्यक्ति से फीस नहीं ली जाती है। इस पाठागार में 16 देशों के रुपये व
सिक्के है। 300प्रकार के पोस्टल स्टाम्प्स, 20 प्रकार की टोपियां, 600
पोथियां व 40 हजार किताबें मौजूद है। विकाश ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ
वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराना चाहते हैं।
बनाया है। जिससे कोई अनपढ़ न रहे किन्तु यहां हम एक ऐसे युवक की बात करने
जा रहे है, जो सन् 1990 से अपने गांव के छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक
को शिक्षित करने का काम कर रहा है। पर हम जिस नौजवान की बात करने जा रहे
है, यह अविवाहित है तथा बेरोजगार है। इस युवक ने लोगों को शिक्षित करने के
उद्देश्य से अपने गांव में एक पाठागार खोल रखा है। जहां गांव के बच्चे,
बूढ़े सभी सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक पढ़ने आते है। इस पाठागार का नाम
लोकनाथ पाठागार रखा गया है। यह कोई सरकारी या ग्राम समाज का पुस्तकालय
नहीं है। बल्कि यह एक व्यक्ति जिसका नाम विकाश कुमार शतपथी है, उसने अपने
बलबूते पर इस पुस्तकालय को अपने ही घर में स्थापित कर रखा है। बालेश्वर
जिला अन्तर्गत बाहानगा ब्लाक के मदरपुर नामक ग्राम में स्थित है। मिट्टी
से बने इस मकान के भीतर जाते ही मानों दिल व दिमाग खुश हो जाता है। सन्
1990 से शुरू हुआ इस पुस्तकालय की शुरूआत यहां पर रखी गई किताबों में से
90 प्रतिशत किताबें लोगों के सहयोग से मिली है। केवल 10 प्रतिशत किताबों
को ही बाजार से खरीदा गया है। विदेशों में रहने वाले कई लोगों ने भी
किताबें भेजी है। इस पुस्तकालय में विभिन्न भाषाओं के पाठयपुस्तक को सजाकर
रखा गया है। उड़िआ, अंग्रेजी, हिन्दी, बांगला आदि भाषाओं की किताबें व
अखबार यहां मौजूद है। इस लोकनाथ पाठागार में 600 से भी ज्यादा
पांडुलिपियां है। जो कि 300 साल से भी पुरानी है। क्योंकि इन ताड़पत्रों पर
लिखी इन पोथियों पर महीना, दिन, साल भी अंकित है। इस पांडुलिपियों पर
मुख्यत: तीन प्रकार की भाषाएं देखने को मिलती है उड़िआ, हिन्दी व देवनागरी
भाषा। इस पुस्तकालय में विश्व के विभिन्न देशों के सिक्कों व रुपयों को भी
सजाकर रखा गया है। इतना ही नहीं विभिन्न देशों के डॉक टिकट व अखबार भी
यहां पर मौजूद है। यहां पर कुल 40 हजार हिन्दी, अंग्रेजी व उड़िआ भाषा में
लिखी किताबें है। यहां पर 70 से 80 साल पुराने अखबार, 1932 व 1940 के
जमाने में पढ़ी जाने वाली पाठयपुस्तक भी मौजूद है। इस पाठागार के आकर्षण
का केन्द्र है टोपियां। यहां पर कई सिपाहियों से लेकर एसपी तक की टोपियों
तथा सेना के तीनों अंगों के अधिकारियों की टोपियां रखी है। हमारे
प्रतिनिधि द्वारा विकाश शतपथी से सवाल करने पर उन्होंने बताया कि मुझे यह
प्रेरणा उड़िशा के नयागड़ जिला के रहने वाले प्रख्यात किताब प्रेमी दासिया
आजा नामक एक महान व्यक्ति से मिली। जिन्होने खुद एक विशाल पाठागार बनाया
है। विकाश ने बताया कि गांव में अक्सर लोग काम खत्म कर सो जाया करते है।
या फिर तास खेलते थे। मगर इस पुस्तकालय के स्थापित हो जाने से लोग यहां
आते है व विचारों का आदान प्रदान करते है। यहां पर आने वाले किसी भी
व्यक्ति से फीस नहीं ली जाती है। इस पाठागार में 16 देशों के रुपये व
सिक्के है। 300प्रकार के पोस्टल स्टाम्प्स, 20 प्रकार की टोपियां, 600
पोथियां व 40 हजार किताबें मौजूद है। विकाश ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ
वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराना चाहते हैं।