नई
दिल्ली। भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरेगा
[राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना] भी नहीं बच पाई है। एक सरकारी
अध्ययन में कई राज्यों में नरेगा के लागू करने में बड़े स्तर पर
अनियमितताएं और भ्रष्टाचार पाया गया है। कुछ क्षेत्रों में अधिकारियों ने
केंद्रीय फंड को गलत तरह से खर्च किया है और कामगारों को अपना मुंह बंद
करने के लिए कहा है।
वीवी. गिरि राष्ट्रीय श्रमिक संस्थान के शोधार्थियों ने सरकार को
सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि नरेगा के अंतर्गत जाब कार्ड बनाने में जमकर
भ्रष्टाचार किया गया है, मस्टररोल को सही ढंग से नहीं भरा गया और कभी-कभी
तो नौकरी चाहने वालों को काम ही नहीं दिया गया। शोध के मुताबिक लोगों ने
एक दिन काम किया लेकिन उनकी उपस्थिति 33 दिन दिखाई गई। यानी लोगों को एक
दिन काम करने का पैसा मिला और 32 दिन का पैसा नरेगा से जुड़े अधिकारियों ने
गलत तरह से इस्तेमाल किया। यही नहीं कामगारों को अपना मुंह बंद करने की
धमकी दी गई।
यह शोध 2008 में ग्रामीण विकास मंत्रालय के आदेश पर शुरू किया गया था।
रिसर्च टीम ने आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान,
तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का दौरा किया। टीम ने द्वितीयक
स्रोतों भी इकट्ठे किए और नरेगा लागू करने वाले एजेंसियों और अधिकारियों
के साक्षात्कार लेने के अलावा ग्राम प्रधान, फायदा पाए कामगारों से भी
सूचनाएं हासिल की। शोध टीम ने पाया कि काम चाहने वाले लोगों के नहीं,
लेकिन सरपंचों और पंचायत के अन्य लोगों के पास कार्ड थे। कई जाब कार्ड में
गलत एंट्री भी की गई।
रिपोर्ट में परियोजना अधिकारी, ब्लाक विकास अधिकारी [बीडीओ] और
सरपंचों के बीच आपसी तनातनी की बात कही गई है जिसके चलते परियोजना अधिकारी
का प्रदर्शन और क्षमता प्रभावित हुए।