नई
दिल्ली [आशुतोष झा]। बिहार के विकास के मखमली दावों पर त्वरित सिंचाई
कार्यक्रम ने टाट का पैबंद लगा दिया है। कई दूसरे क्षेत्रों में हो रहे
विकास से सहमत केंद्र सरकार को राज्य में त्वरित सिंचाई की धीमी गति ने
निराश कर दिया है। चार साल के लक्ष्य के साथ शुरू होने वाले कार्यक्रम
दशकों से पूरे नहीं हो सके हैं। राज्य सरकार इस मद में उपलब्ध 1265 करोड़
रुपए के मुकाबले सिर्फ 165 करोड़ रुपए खर्च कर पाई है।
बिहार में अब तक त्वरित सिंचाई के तहत नौ परियोजनाओं को मंजूरी दी गई
है। इनमें से चार परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। फिलहाल पांच परियोजनाओं को
केंद्रीय मदद दी जा रही है। लेकिन हाल यह है कि दूसरे लगभग सभी क्षेत्रों
में विकास के बावजूद एआईबीपी का विकास नहीं हो रहा है। पश्चिमी कोसी नहर
को तीसरे योजना काल में ही स्वीकृति मिली थी। जबकि दुर्गावती, बानसागर,
बतानी और पुनपुन बराज परियोजना को पांचवीं योजना के समय मंजूरी मिली थी।
गौरतलब है कि एआईबीपी के तहत परियोजना को चार साल के अंदर पूरा करने का
लक्ष्य होता है। जबकि बिहार की इन परियोजनाओं को एक दशक से ज्यादा हो चुका
है। काम अभी भी अधूरा है। योजना आयोग की रिपोर्ट बताती है कि केंद्र इससे
खासा निराश है। बताते हैं कि राज्य सरकार की ओर से हाल में चार दूसरी
परियोजनाओं को एआईबीपी में शामिल करने का प्रस्ताव है। केंद्र का मानना है
कि सिंचाई के काम में तेजी नहीं आई तो विकास अवरुद्ध होगा। योजना आयोग का
मानना है कि लघु सिंचाई के तहत राज्य में जरूर कुछ काम हो रहे हैं लेकिन
उसके आगे की रणनीति ठोस नहीं है। खासकर इससे लाभान्वित होने वाले लोगों के
संगठनों के बीच समन्वय और इसके प्रबंधन के कार्यान्वयन का काम बहुत सुस्त
है।