दीपक भंडारी, अमृतसर :
दवा तो थी बच्चों में खून की कमी दूर करने के लिए, लेकिन जरा सी लापरवाही
से यह जहर बन गई। अमृतसर के कटड़ा हकीमां स्थित सरकारी एलीमेंट्री स्कूल
में बच्चों को एनीमिया से बचाने के लिए नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत दी
जाने वाली दवा को खाते ही बच्चों को उल्टियां व दस्त लग गए। 22 बच्चे
बेहोश हो गए। उनके बेहोश होने की खबर इलाके में फैलते ही भगदड़ मच गई।
आक्रोशित अभिभावकों ने स्कूल के बाहर धरना दिया। आनन-फानन बच्चों को इलाज
के लिए सिविल अस्पताल पहुंचाया गया। इलाज के बाद 19 बच्चों को अस्पताल से
छुट्टी दे दी गई है, तीन अभी भी भर्ती हैं। उधर, सेहत मंत्री लक्ष्मी
कांता चावला ने सैंपलों की रिपोर्ट आने तक बच्चों को दवा खिलाने पर रोक
लगा दी है। विधायक इन्द्रबीर सिंह बुलारिया ने इस मामले की जांच की मांग
की है।
भद्रकाली निवासी श्वेता का सात वर्षीय बेटा राहुल पहली कक्षा में पढ़ता
है। तबियत बिगड़ने पर वह घर आते ही बेहोश हो गया। राहुल ने बताया कि स्कूल
की मैडम ने उसे खाने के लिए गोलियां दी थी। उसने चार गोलियां खा ली। तीसरी
में पढ़ने वाले आठ वर्षीय बल्लू ने भी दो गोलियां खा लीं। दूसरी कक्षा की
लक्ष्मी के अनुसार उसने भी दो गोलियां खाई और स्कूल में बेहोश हो गई।
दूसरी कक्षा के छात्र चंदन भी छह गोलियां खा गया। खाते ही वह बेहोश हो
गया। यही हाल दूसरी कक्षा के गुरप्रीत सिंह का भी हुआ। सात वर्ष का वीरू
तो दसों गोलियां खा गया। कुछ ऐसी ही स्थिति दूसरी कक्षा के विशाल, पूजा व
बंटी तथा पहली कक्षा की संध्या तथा संदीप की भी हुई। इनमें से कुछ बच्चे
दवा नहीं खाना चाहते थे। लेकिन मैडम के डंडे के डर से वह दवा खा गए।
बच्चों ने दैनिक जागरण को बताया कि स्कूल की मैडम डॉली ने उन्हें धमकी दी
थी कि यदि वह यह दवा नहीं खाएंगे तो उन्हें मार खानी पड़ेगी। स्कूल प्रबंधन
ने बच्चों को दवा खिलाने में गैर जिम्मेदाराना भूमिका निभाई है। इंदौर की
कंपनी द्वारा निर्मित फॉलिफार ब्रांड नेम वाली यह दवा बेरी गेट स्थित
डिस्पेंसरी से सप्लाई की गई थी। सेहत विभाग की ओर से जारी निर्देशों के
अनुसार स्कूल हेल्थ कार्यक्रम के तहत सप्ताह में दो बार डाक्टर की देखरेख
में बच्चों को दवा की एक-एक गोली खिलाई जानी है। लेकिन स्कूल की मैडम ने
बच्चों को दस-दस गोलियां थमा दी और उन्हें खाने के निर्देश भी दे दिए।
सहायक सिविल सर्जन डा. हरजीत सिंह कोछड़ ने बताया कि स्कूल हेल्थ एजुकेशन
के तहत निर्देश जारी किए गए थे कि एक बच्चे को सप्ताह में दो गोलियां
खिलाई जाएं और यह प्रक्रिया एक साल तक जारी रखी जाए। स्कूल टीचर द्वारा
बच्चों को खुद दवाई खिलाने की बजाय उनके हाथ में दवाई दिया जाना गलत है।
एसडीएम संदीप ऋषि ने कहा है स्कूल के स्टाफ की लापरवाही सामने आई है।
शुक्रवार को स्कूल में बांटी गयी दवाइयों व मिड डे मील के सैंपल भी लेने
के आदेश दिए गएहैं।
उधर, स्कूल की कार्यकारी इंचार्ज श्रीमती डॉली ने कहा कि बच्चों को आयरन
की गोलियां देना रुटीन प्रक्रिया है। स्कूल में आगामी दिनों में छुट्टियां
हो जानी थी। इसलिए बच्चों को घर ले जाने के लिए इकट्ठी दस-दस गोलियां दे
दी गईं।
फेल हो चुके हैं फिरोजपुर से लिए गए दवा के सैंपल
गत वर्ष नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत राज्य सरकार ने स्कूली बच्चों को
फॉलिक एसिड खिलाने का फैसला किया था। राज्य भर में करोड़ों गोलियां खरीदकर
जिलों में भेज दी गई। यह गोलियां बच्चों के लिए घातक साबित हुई हैं। बीते
दिनों फिरोजपुर से लिए गए इन गोलियों के सैंपल फेल हो चुके हैं। सेहत
विभाग के आला अधिकारियों के अनुसार जिस दवा के सैंपल फेल हुए हैं वह बड़े
बच्चों के लिए थी न कि छोटे बच्चों के। इस दवा को सभी जिलों से वापस मंगवा
लिया गया है।
दवा तो थी बच्चों में खून की कमी दूर करने के लिए, लेकिन जरा सी लापरवाही
से यह जहर बन गई। अमृतसर के कटड़ा हकीमां स्थित सरकारी एलीमेंट्री स्कूल
में बच्चों को एनीमिया से बचाने के लिए नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत दी
जाने वाली दवा को खाते ही बच्चों को उल्टियां व दस्त लग गए। 22 बच्चे
बेहोश हो गए। उनके बेहोश होने की खबर इलाके में फैलते ही भगदड़ मच गई।
आक्रोशित अभिभावकों ने स्कूल के बाहर धरना दिया। आनन-फानन बच्चों को इलाज
के लिए सिविल अस्पताल पहुंचाया गया। इलाज के बाद 19 बच्चों को अस्पताल से
छुट्टी दे दी गई है, तीन अभी भी भर्ती हैं। उधर, सेहत मंत्री लक्ष्मी
कांता चावला ने सैंपलों की रिपोर्ट आने तक बच्चों को दवा खिलाने पर रोक
लगा दी है। विधायक इन्द्रबीर सिंह बुलारिया ने इस मामले की जांच की मांग
की है।
भद्रकाली निवासी श्वेता का सात वर्षीय बेटा राहुल पहली कक्षा में पढ़ता
है। तबियत बिगड़ने पर वह घर आते ही बेहोश हो गया। राहुल ने बताया कि स्कूल
की मैडम ने उसे खाने के लिए गोलियां दी थी। उसने चार गोलियां खा ली। तीसरी
में पढ़ने वाले आठ वर्षीय बल्लू ने भी दो गोलियां खा लीं। दूसरी कक्षा की
लक्ष्मी के अनुसार उसने भी दो गोलियां खाई और स्कूल में बेहोश हो गई।
दूसरी कक्षा के छात्र चंदन भी छह गोलियां खा गया। खाते ही वह बेहोश हो
गया। यही हाल दूसरी कक्षा के गुरप्रीत सिंह का भी हुआ। सात वर्ष का वीरू
तो दसों गोलियां खा गया। कुछ ऐसी ही स्थिति दूसरी कक्षा के विशाल, पूजा व
बंटी तथा पहली कक्षा की संध्या तथा संदीप की भी हुई। इनमें से कुछ बच्चे
दवा नहीं खाना चाहते थे। लेकिन मैडम के डंडे के डर से वह दवा खा गए।
बच्चों ने दैनिक जागरण को बताया कि स्कूल की मैडम डॉली ने उन्हें धमकी दी
थी कि यदि वह यह दवा नहीं खाएंगे तो उन्हें मार खानी पड़ेगी। स्कूल प्रबंधन
ने बच्चों को दवा खिलाने में गैर जिम्मेदाराना भूमिका निभाई है। इंदौर की
कंपनी द्वारा निर्मित फॉलिफार ब्रांड नेम वाली यह दवा बेरी गेट स्थित
डिस्पेंसरी से सप्लाई की गई थी। सेहत विभाग की ओर से जारी निर्देशों के
अनुसार स्कूल हेल्थ कार्यक्रम के तहत सप्ताह में दो बार डाक्टर की देखरेख
में बच्चों को दवा की एक-एक गोली खिलाई जानी है। लेकिन स्कूल की मैडम ने
बच्चों को दस-दस गोलियां थमा दी और उन्हें खाने के निर्देश भी दे दिए।
सहायक सिविल सर्जन डा. हरजीत सिंह कोछड़ ने बताया कि स्कूल हेल्थ एजुकेशन
के तहत निर्देश जारी किए गए थे कि एक बच्चे को सप्ताह में दो गोलियां
खिलाई जाएं और यह प्रक्रिया एक साल तक जारी रखी जाए। स्कूल टीचर द्वारा
बच्चों को खुद दवाई खिलाने की बजाय उनके हाथ में दवाई दिया जाना गलत है।
एसडीएम संदीप ऋषि ने कहा है स्कूल के स्टाफ की लापरवाही सामने आई है।
शुक्रवार को स्कूल में बांटी गयी दवाइयों व मिड डे मील के सैंपल भी लेने
के आदेश दिए गएहैं।
उधर, स्कूल की कार्यकारी इंचार्ज श्रीमती डॉली ने कहा कि बच्चों को आयरन
की गोलियां देना रुटीन प्रक्रिया है। स्कूल में आगामी दिनों में छुट्टियां
हो जानी थी। इसलिए बच्चों को घर ले जाने के लिए इकट्ठी दस-दस गोलियां दे
दी गईं।
फेल हो चुके हैं फिरोजपुर से लिए गए दवा के सैंपल
गत वर्ष नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत राज्य सरकार ने स्कूली बच्चों को
फॉलिक एसिड खिलाने का फैसला किया था। राज्य भर में करोड़ों गोलियां खरीदकर
जिलों में भेज दी गई। यह गोलियां बच्चों के लिए घातक साबित हुई हैं। बीते
दिनों फिरोजपुर से लिए गए इन गोलियों के सैंपल फेल हो चुके हैं। सेहत
विभाग के आला अधिकारियों के अनुसार जिस दवा के सैंपल फेल हुए हैं वह बड़े
बच्चों के लिए थी न कि छोटे बच्चों के। इस दवा को सभी जिलों से वापस मंगवा
लिया गया है।