उत्तराखंड
को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ रहा है। राज्य सरकार ने इस संकट से
निपटने के लिए केंद्र से हस्तक्षेप करने की मांग की है।
राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री दिवाकर भट्ट के मुताबिक
गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) वालों के लिए केंद्र से की जाने वाले खाद्यान्न
की आपूर्ति में 77 फीसदी की कटौती हो गई है और इस वजह से राज्य में गेहूं
और चावल की कमी पैदा हो गई है।
भट्ट कहते हैं कि राज्य में आबादी बढ़ने के बावजूद चावल और गेहूं की
आपूर्ति घटकर 17,000 टन हो गई है। इससे राज्य में अनाज का टोटा हो गया है।
एपीएल श्रेणी के तहत राज्य की जरूरत 62,000 टन चावल और गेहूं की है। भट्ट
कहते हैं, ‘आपूर्ति को पूरा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त अनाज नहीं
है।’
राज्य में अनाज की कमी को दूर करने के मकसद से दिवाकर भट्ट ने केंद्रीय
खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठकें
भी की हैं। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार केंद्र सरकार को यह
अनुरोध करेगी की महाकुंभ के लिए चावल और गेहूं के तय कोटे में से बचा हुआ
अनाज उत्तराखंड को दे दिया जाए।
भट्ट ने बताया कि राज्य सरकार ने इस साल 1.1 लाख टन गेहूं खरीदने का
लक्ष्य रखा था लेकिन अब तक 80,000 टन गेहूं की ही खरीद हुई है। हालांकि,
चावल के सरकारी खरीद के मामले में स्थिति थोड़ी अच्छी है। आधिकारिक अनुमान
के मुताबिक सरकार ने अभी तक 2.8 लाख टन चावल की खरीद की है। जबकि इस साल
के लिए लक्ष्य 2.1 लाख टन ही था।
भट्ट ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों से अच्छी बारिश नहीं होने की वजह से
राज्य के गेहूं और धान की उपज अपेक्षा के अनुरुप नहीं हो पा रही है।’
उन्होंने यह भी कहा कि दूरदराज के क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में जल
आपूर्ति की हालत भी ठीक नहीं है।
मंत्री ने कहा कि सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अपनी हिस्सेदारी
बढ़ाने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा, ‘हम गुजरात और दूसरे ऐसे
राज्यों के अनुभवों का अध्ययन कर रहे हैं जहां की सरकार ने सार्वजनिक
वितरण प्रणाली में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है।’