नई
दिल्ली: [सुरेंद्र प्रसाद सिंह], उत्तर प्रदेश और बिहार में घूम-घूम कर
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी अगर वहां की राज्य सरकारों पर केंद्र के धन
का ठीक से उपयोग न करने का आरोप लगा रहे हैं तो वह पूरी तरह से गलत भी
नहीं है। सिंचाई परियोजनाओं के लिए केंद्र से वित्तीय मदद लेने में दोनों
राज्यों ने परहेज ही रखा है। पिछले कुछ सालों में इन राज्यों में नई
सिंचाई परियोजनाओं का शुरू होना तो दूर लंबित पड़ी परियोजनाएं तक पूरी नहीं
हो सकी हैं। इसकी पुष्टि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक [कैग] की हालिया
रिपोर्ट में किया गया है।
कैग ने जल संसाधन मंत्रालय के पिछले तीन सालों के कामकाज को परखने के
दौरान ढेर सारी खामियां पाई है। इनमें उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य
सरकारों की सिंचाई परियोजनाओं को लेकर बरती गई उदासीनता प्रमुख है। लघु,
मंझोली और बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के लिए जल संसाधन मंत्रालय के कुल बजट
का 75 से 85 फीसदी हिस्सा आधा दर्जन अन्य राज्यों ने झटक लिया, जिनमें देश
के उत्तरी राज्यों का कहीं नाम ही नहीं है। आंध्र प्रदेश, राजस्थान व
हिमाचल प्रदेश ने केंद्र की वित्तीय मदद तो ले ली, लेकिन परियोजनाओं को
पूरा नहीं किया। कैग ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की इस अनदेखी पर उसे
कड़ी फटकार लगाई है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आगरा कैनाल और राजघाट कैनाल के
आधुनिकीकरण की घोषणा पहले ही कर दी, लेकिन इसके कई कार्य अभी भी अधूरे पड़े
हैं। यही हाल बिहार में पश्चिमी कोसी कैनाल परियोजना और सोन कैनाल
आधुनिकीकरण परियोजना का है। वर्ष 1996 में शुरु हुई ये दोनों परियोजनाएं
2009 तक पूरी नहीं हुई थीं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब जैसे
राज्यों को विलंब से वित्तीय मदद जारी होने से कई सिंचाई परियोजनाएं पूरी
नहीं हो सकीं। इन राज्यों में निगरानी व मूल्यांकन समितियों का गठन तो
किया गया, लेकिन उनका प्रदर्शन बहुत खराब रहा। साल में होने वाली 10
बैठकों की जगह केवल तीन बैठकें हुई हैं। इसमें भी राज्य स्तरीय समिति का
गठन ही नहीं किया गया है।