शिमला। हिमाचल सरकार केंद्र से राज्य के
हितों की अनदेखी के बाद अब अपने हकों को लेकर आर-पार की लड़ाई के मूड में
है। राज्य ने चेताया है कि अगर हिमाचल प्रदेश के पौंग बांध विस्थापितों को
राजस्थान में जमीन देने में लेटलतीफी की तो वहां के अधिकारियों को भी
कोर्ट में घसीटा जाएगा। 50 साल के लंबे समय में भी जो मसले विस्थापितों के
नहीं सुलझे हैं, उन पर भी हिमाचल, राजस्थान सरकार से नियम-प्रावधान करके
सुलझाने का दबाव बना रहा है।
मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का कहना है कि इतने लंबे अंतराल में
हिमाचल की अनदेखी, यहां के लोगों को मानसिक परेशानी के सिवा कुछ नहीं दे
रही। इसके लिए राजस्थान के कुछ अधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं, लिहाजा
सरकार कानूनी कार्रवाई के लिए बाध्य होगी। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल
ने आज यहां राज्यस्तरीय पौंगबांध विस्थापितों के पुनर्वास और सलाहकार
समिति की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि पौंग बांध
विस्थापितों को राहत एवं उनके पुनर्वास के लिए प्रदेश सरकार हरसंभव उपाय
कर रही है क्योंकि आधी शताब्दी बीतने के बावजूद विस्थापित परिवारों को अभी
तक राजस्थान में भूमि नहीं मिली है।
उन्होंने कहा कि अभी तक जिन विस्थापितों का पुनर्वास नहीं हो पाया है,
राजस्थान सरकार को उनके मामलों को प्राथमिकता के आधार पर हल करना चाहिए।
अगर ऐसा नहीं होता है तो प्रदेश सरकार संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के
विरुद्ध प्रदेश में कानूनी कार्रवाई करने की संभावनाएं तलाशेगी। प्रदेश
सरकार उन सभी स्थलों का दौरा करती रही है जिन्हें पौंग बांध विस्थापितों
के पुनर्वास के लिए चिन्हित किया गया है, लेकिन यह मामला अभी तक अनसुलझा
है जिसके कारण प्रभावित परिवारों को मानसिक पीड़ा और परेशानियों का सामना
करना पड़ रहा है।
धूमल ने कहा कि जिन विस्थापितों को राजस्थान में भूमि आवंटित की गई
थी, उन्हें वहां के स्थायी निवासी माना जाना चाहिए था तथा उन्हें वहां के
स्थायी निवासी होने का प्रमाण पत्र भी जारी किया जाना चाहिए था, ताकि उन
परिवारों को राजस्थान के अन्य नागरिकों के समान सभी प्रकार के लाभ मिल
सकें। इन सभी परिवारों को राशन कार्ड के साथ-साथ संबंधित परिवारों को
अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमाण पत्र भी दिए जाने
चाहिए। राजस्थान में रहने वाले विस्थापितों का यह वैधानिक अधिकार है कि
उन्हें स्थायी निवासी का प्रमाण पत्र जारी किया जाए। राजस्थान सरकार को
अपने कानून में अधिस्थगन प्रावधानों पर विचार करना चाहिए, जिसके तहत
विस्थापितों को आवंटित प्लॉट निश्चित समयावधि के लिए पुन: बेचे न जाएं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पौंग बांध के शेष बचे 2501 विस्थापितों को
राजस्थान सरकार द्वारा कमांड एरिया डवलपमेंट के प्रथम चरण में वैकल्पिक
भूमि आवंटित करनी होगी, जिसके तहत उन्हें पेयजल, सिंचाई एवं बिजली सुविधा
सहित अन्य सभी आधारभूत सुविधाएं मुहैया करवाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि
राज्य सरकार राजस्थान सरकार से यह आग्रह भी करेगी कि स्थायी समिति की बैठक
शीघ्र बुलाई जाए, ताकि पौंग बांध विस्थापितों से संबंधित सभी लंबित पड़े
मामले सुलझाए जा सकें।
धूमल ने कहा किराज्य सरकार पौंग बांध विस्थापितों के मुद्दे को
नियमित तौर पर केंद्र एवं राजस्थान सरकारों से उठाती रही है, ताकि इसका
स्थायी समाधान निकाला जा सके। प्रदेश की उच्चस्तरीय समिति ने क्षेत्र का
दौरा कर वहां स्थिति एवं राहत सहित राजस्थान सरकार द्वारा उठाए गए
पुनर्वास कदमों का जायजा लिया था। राज्य सरकार के आग्रह पर इस मामले
उच्चतम न्यायालय ने हस्तक्षेप किया था, ताकि इसे सुलझाया जा सके। उन्होंने
कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार इस मुद्दे को सुलझाने के लिए
केंद्र तथा सभी संबंधित राज्यों के मध्य बैठक बुलाने के लिए 21 दिन का समय
दिया गया है और इस मुद्दे का सर्वमान्य समाधान तीन माह की अवधि में
निकालने के निर्देश दिए गए हैं।
राजस्व मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर ने मुख्यमंत्री का स्वागत करते हुए
कहा कि प्रभावित 20,772 परिवारों में से 16,352 परिवारों को राजस्थान में
भूमि आवंटित की गई, जिसमें से 6375 को राजस्थान सरकार द्वारा इस भूमि का
मालिकाना हक प्रदान किया गया। उन्होंने कहा कि 2501 विस्थापितों ने भूमि
आवंटन के लिए अपना दावा किया था, जिसमें से 1472 मामलों को राजस्थान सरकार
को अग्रेषित कर दिया गया था। राजस्थान सरकार के साथ आवंटन प्रक्रिया में
तेजी लाने के लिए कई बैठकें की गई और इस मुद्दे को उच्चतम न्यायालय में भी
उठाया गया। उन्होंने कहा कि राजस्थान से आग्रह किया गया था कि विस्थापितों
को कमांड क्षेत्र में भूमि आवंटित की जाए क्योंकि आवंटित भूमि पर से अवैध
कब्जे नहीं हटाए जा सके हैं और इस पर विचार विस्थापितों की सहमति से किया
जाएगा।