योजना पर इस तरह से काम किया गया है कि ग्रामीण जब तक चाहें 101 रुपए हर रोज के हिसाब से आय अर्जित कर सकेंगे। अच्छी बात यह है कि ‘सेवा’ संस्था द्वारा तैयार ‘अक्षय चक्र’ पूरे देश के लिए मॉडल बनने जा रहा है।
बिलासपुर मुख्यालय से कोरबा रोड में 26 किलोमीटर दूर बसे ग्राम अकलतरी में प्रवेश करते ही खेती का बिलकुल अलग सा नजारा सामने आता है। सड़क के किनारे अष्टभुज गोलाकार जमीन पर हरियाली छाई हुई है। दूर से यह किसी गार्डन की तरह लगता है।
नजदीक जाने पर पता चला कि यहां तो सब्जियों की खेती हो रही है, वह भी एक नहीं, 20 से 24 प्रकार की सब्जियों की। हरियाली के बीच रोजगार गारंटी योजना के बोर्ड ने उत्सुकता और बढ़ा दी कि निजी जमीन पर की गई खेती से राष्ट्रीय योजना का क्या ताल्लुक? किसानों से मिलकर पूछने पर जो बातें सामने आई, उससे माना जा सकता है कि जिले में एक और हरित क्रांति की शुरुआत हो गई है।
दरअसल शहर की ‘सेवा’ नामक संस्था ने अक्षय चक्र नामक योजना तैयार की है, जिसे रोजगार गारंटी योजना का मूर्तरूप दिया गया। योजना में ग्रामीण अपनी 10 डिसमिल के कोठार (बाड़ी) का इस्तेमाल करते हैं और 100 दिनों की मेहनत से अक्षय चक्र तैयार करते हैं। ऐसा नहीं है कि किसानों को इन 100 दिनों का मेहनताना नहीं मिलेगा। योजना की खासियत यही है कि किसानों को अपनी जमीन पर अक्षय चक्र तैयार करने की मजदूरी रोजगार गारंटी योजना से दी जाती है।
आठ चक्रों वाले अक्षय चक्र के हर हिस्से में अलग-अलग तरह के पौधे रोपे जाते हैं। जब तक चक्र तैयार होता है, सबसे पहले खाने की फसल तैयार हो जाती है, यानी 100 दिनों के बाद की रोजी किसान को उसके खेत से ही मिलने लगती है। फसलों के चक्रवार तैयार होने का सिलसिला निरंतर जारी रहता है और किसान चाहे तो चक्र को ताउम्र जारी रख सकता है।
‘आम के आम, गुठलियों के दाम’ वाली यह योजना अकलतरी के किसानों इतनी अच्छी लगी कि अब पूरा गांव इसी पद्धति से खेती करने लगा है। इधर, जिला प्रशासन अपने पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद अक्षय चक्र को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में जुटा है।जिला पंचायत सीईओ मुकेश बंसल ने यह अभिनव प्रयोग देखकर इसे रोल मॉडल बनाने की दिशा में काम भी शुरू कर दिया है।
क्या है अक्षय चक्र
‘अक्षय चक्र’ वह योजना है, जिसमें भूमि का ट्रीटमेंट तो होता ही है, किसान बिना रासायनिक खाद के उन्नत फसल भी ले रहे हैं। सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि चक्र के हर भाग में एक एकड़ जमीन के लिए उत्कृष्ट जैविक खाद तैयार होती है। संस्था के डायरेक्टर प्रदीप शर्मा बताते हैं कि अक्षय चक्र तैयार करने के लिए सबसे पहले जमीन कोगोलाकार बनाकर आठ खानों में बांटा जाता है। हर भाग की दो फीट खुदाई कर मिट्टी बाहर निकाली जाती है।
गड्ढों में मिट्टी के बदले घूरे के कचरे का तीन इंच लेयर बिछाया जाता है। इसके ऊपर दो इंच मिट्टी डाली जाती है। यह प्रक्रिया तीन बार अपनाई जाती है। अक्षय चक्र के बीचों बीच पांच फीट का गड्ढा भी बनाया जाता है, जिसमें गोमूत्र, गोबर, पेज और पानी के मिश्रण से अक्षय जल तैयार किया जाता है। अक्षय चक्र में सामान्य पानी के बजाय अक्षय जल का इस्तेमाल होता है। पहला खाना जैसे ही तैयार हुआ, उसमें बोनी कर दी जाती है।
इस तरह 100 दिनों में आठ चक्र तैयार होते हैं और इतने समय में पहले चक्र की फसल तैयार हो जाती है। यही कारण है कि किसानों को 101वें दिन खुद की बाड़ी से आय होने लगती है। श्री शर्मा ने बताया कि अक्षय चक्र में तैयार सब्जियों को गांव में ही न्यूनतम दर पर बेचा जाए तो भी 101 रुपए की आय हर दिन होगी।
पहले चक्र की फसल जब खत्म होगी, तब तक जमीन के भीतर उत्कृष्ट जैविक खाद का दो फीट मोटा लेयर तैयार हो जाता है। चक्र के हर भाग से कम से कम 6 ट्राली जैविक खाद निकलती है, जो एक एकड़ खेत को रासायनिक खाद से बचाने के लिए पर्याप्त है।
..इसलिए मॉडल
राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना लागू होने के चार साल बाद देश में इस योजना को लेकर नई बहस छिड़ गई है। जानकार रोजगार गारंटी को कृषि के लिए सबसे घातक मानते हैं। तर्क भी दिया जाता है कि मजदूरों की कमी और आय के दूसरे संसाधन उपलब्ध होने से कृषि का रकबा घट रहा है। ऐसे में रोजगार गारंटी योजना का कृषि में इस्तेमाल व रासायनिक खाद मुक्त पैदावार बेहतर विकल्प साबित होगा। यही वजह है कि जिला प्रशासन इसके लिए पहल कर रहा है।
पहले नहीं हुई इतनी फसल
अक्षय चक्र को देश में सबसे पहले तैयार करने वाला अकलतरी का राधेश्याम धीवर कहता है कि खेती करते-करते बाल सफेद हो गए, लेकिन फसलों की इतनी पैदावार पहले कभी नहीं देखी। बिना रासायनिक खाद के पौधों के इतने कंसे फूट रहे हैं कि एक पौधे में चार पौधों के बराबर फसल तैयार हो रही है।
इतवारी धीवर बताता है कि सब्जियों की खेती अप्रैल के बाद संभव नहीं थी क्योंकि रासायनिक खाद के साथ फसल को पानी की बेहद जरूरत होती है। लखनलाल धीवर ने बताया कि अब रोजगार गारंटी से अपनी ही जमीन पर काम कर रहे हैं और उम्रभर के लिए रोजगार हासिल कर रहे हैं।