दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा
हाईकोर्ट ने खाप पंचायतों को कड़ा संदेश दिया कि खाप पंचायतें खुद को कुल
पिता की तरह प्रस्तुत नहीं करें। इसी के साथ ही हाईकोर्ट ने सगोत्र विवाह
पर रोक लगाने और हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन संबंधी याचिका को खारिज
कर दिया।
अदालत ने खापों से दो टूक कहा कि वे हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन
की मांग के लिए सरकार के पास जाएं। अदालत ने नसीहत दी कि ऐसे नियम खापें
सिर्फ अपने परिवार पर लागू करें, समाज पर यह नियम नहीं थोंपे।
सोनीपत निवासी कपूर जाखड़ और अन्य तीन लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका
दायर कर हरियाणा की परंपरा और प्रथा को बचाने के लिए एक गोत्र में विवाह
करने पर रोक लगाने की मांग की थी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुकुल मुदगल की
अध्यक्षता वाली खंडपीठ इस मामले में सुनवाई कर रही थी।
सोमवार को सुनवाई के दौरान खंडपीठ के सदस्य जज जसबीर सिंह ने खाप पंचायतों से कहा कि इन पंचायतों को अपने काम से मतलब रखना चाहिए।
मामले की सुनवाई के दौरान अदालत का नजरिया था कि भारत एक स्वतंत्र देश
है और उन लोगों के साथ कुछ गलत करने की छूट नहीं दी जा सकती जो कानून के
दायरे में विवाह करते हैं। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कहा
कि खाप पंचायत के सदस्य तालिबानी आदेश जारी कर प्रेमी जोड़ों को तंग कर रहे
हैं। वे एक तरह से कानून तोड़ने वाले असामाजिक तत्व हैं। अदालत ने कहा कि
ऐसे लोगों को पकड़ कर जेल में बंद करने की जरूरत है तभी इनकी गैरकानूनी
गतिविधियों पर रोक लग सकेगी और समाज में शांति हो पाएगी। मुख्य न्यायाधीश
ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप इसकी फिक्र क्यों कर रहे हो कि
प्रेमी जोड़े परंपराओं की अपेक्षा कानून के अनुसार विवाह कर रहे हैं?
उन्होंने कहा कि आप यह परंपरा अपने बच्चों पर थोंपना, लेकिन इसे समाज पर
थोंपने का कोई अधिकार नही हैं।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या उनके पास ऐसा कोई सबूत
है जिससे यह पता लगता हो कि गोत्र में विवाह पर रोक कोई परंपरा या प्रथा
है। खंडपीठ के इस जवाब पर याचिकाकर्ता के वकील ने वेदों का हवाला दिया। इस
पर खंडपीठ ने कहा कि वह वेदों का सम्मान करते हैं लेकिन अदालत संविधान के
प्रति जवाबदेह है न कि वेदों के। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह ऐसे
सबूत या पुस्तक पेश करें जिससे साबित होता हो कि गोत्र विवाह पर रोक एक
प्रथा है और इसकी कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।
खंडपीठ ने एक ही गोत्र में विवाह पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा
कि न्यायपालिका इस तरह का कोई कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती।
इस मामले में खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश का हवाला देते हुए
कहा कि अदालत किसी भी अधिसूचित कानून पर निर्देश जारी नहीं कर सकती।
खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वह इस बाबतसरकार को अपनी
प्रस्तुति दे।
याचिका में याचिककर्ता ने कोर्ट से आग्रह किया था कि एक नया कानून
बनाया जाए या वर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन हो ताकि एक गोत्र
में विवाह पर रोक लगाई जा सके। अपनी मांग के पक्ष में याचिकाकर्ता ने
चिकित्सा विज्ञान का भी हवाला दिया और कहा कि हरियाणा का जाट समुदाय इससे
सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है।