गांवों को रौशन करने में फिसड्डी साबित हो रहे उप्र-बिहार

नई
दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। राजनीतिक लिहाज से देश के दो सबसे महत्वपूर्ण
राज्यों- उत्तर प्रदेश और बिहार में अपने पैर जमाने की कोशिश में जुटी
कांग्रेस को इन दोनों राज्यों की गैर-कांग्रेसी सरकारों पर हमला बोलने का
एक अच्छा मौका मिलने वाला है। देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने की
केंद्र की योजना के रास्ते में उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार और बिहार की
नीतीश कुमार सरकार सबसे बड़ी बाधा के तौर पर सामने आई हैं। इन राज्य
सरकारों की सुस्ती की वजह से ये दोनों राज्य राजीव गांधी ग्रामीण
विद्युतीकरण योजना के रिपोर्ट कार्ड में सबसे फिसड्डी साबित हो रहे हैं।

बिजली मंत्रालय की तरफ से तैयार 17 मई, 2010 तक के आंकड़े बताते हैं कि
72,863 गांवों को अभी तक बिजली से नहीं जोड़ा जा सका है। इसमें 27,416 गांव
केवल उत्तर प्रदेश के हैं। यानी कि बिजली की सुविधा से वंचित गांवों में
35 फीसदी केवल उत्तर प्रदेश के हैं। असलियत में सबसे खराब रिपोर्ट मायावती
सरकार की ही है। अभी तक राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना
[आरजीजीवीवाई] के तहत प्रदेश के केवल 90 गांवों तक ही बिजली पहुंचाई गई
है। बिहार में अपने विकास कार्यो के लिए योजना आयोग से लेकर बिल गेट्स तक
से प्रशंसा प्राप्त करने वाली नीतीश कुमार सरकार का प्रदर्शन यहां मायावती
सरकार से थोड़ा बेहतर है।

बिहार में 260 गांवों को बिजली से जोड़ा गया है। जबकि अभी भी 17,773
गांवों तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। बिजली की सुविधा से अलग रहने वाले
गांवों की संख्या इन दोनों राज्यों में संयुक्त तौर पर 45189 होती है, जो
बिजली से दूर रहे गांवों की कुल संख्या का लगभग 60 फीसदी है। इन राज्यों
की सुस्ती की वजह से आरजीजीवीआई के भविष्य को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए
हैं। बिजली मंत्रालय ने मार्च, 2012 तक देश के सभी गांवों को बिजली
पहुंचाने का लक्ष्य इस योजना में रखा था। अब बिजली मंत्रालय के अधिकारियों
को यह चिंता सताने लगी है कि इन राज्यों की वजह से ही कहीं इस योजना की भद
न पिट जाए।

मजेदार तथ्य यह है कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में सबसे
खराब प्रदर्शन करने वाले तीनों राज्य गैर-कांग्रेसी है। उक्त दोनों के
अलावा झारखंड में भी इस योजना को आगे बढ़ाने की तत्परता नहीं दिखी। झारखंड
में अभी तक 3,717 गांवों को बिजली से जोड़ा गया है जबकि 13,199 गांव रोशनी
के लिए अन्य पारंपरिक स्त्रोतों [मुख्यत: केरोसिन] पर आश्रित हैं। हालांकि
गैर-कांग्रेसी शासन वाले गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस योजना
को सफलतापूर्वक लागू किया जा रहा है। इस योजना के तहत अभी तक 57,019
गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है।

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