बेगूसराय
[विनोद कर्ण]। एक जमाने में सदाबहार अभिनेता मनोज कुमार की सुपरहिट फिल्म
‘हरियाली और रास्ता’ की कालजयी गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले
हीरा-मोती ..’ ने भारतीय किसानों व मजदूरों में जोश व जज्बा भरा था। आज
फिर से इस गीत से अभिप्रेरित होकर बेगूसराय जिले के चेरिया बरियारपुर
प्रखंड के श्रीपुर पंचायत के किसान बंजर घोषित धरती पर सोना उगा रहे हैं।
खास बात यह कि श्रीपुर पंचायत में लगभग पांच सौ परिवार वाले अर्जुन
टोले में जितने राशन कार्ड बने हैं, उतने ही वर्मी कम्पोस्ट की यूनिट भी।
टोले के लोग अपने खेतों में रासायनिक खाद नहीं, बल्कि वर्मी कंपोस्ट का ही
इस्तेमाल करते हैं। इतना ही नहीं, इलाके के किसानों को भी खेती में वर्मी
कंपोस्ट प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं। जिस जमीन को बंजर घोषित कर
किसान उस पर खेती करने से परहेज करते थे। कार्बन की कमी के कारण उजली हुई
मिट्टी अब वर्मी कम्पोस्ट के इस्तेमाल से धीरे-धीरे काली होने लगी है।
किसान बताते हैं कि महज एक कट्ठा जमीन में आज साढ़े तीन क्विंटल हल्दी
उपजा रहे हैं, जो हमारे लिए किसी सोना से कम नहीं है। अर्जुन टोले के
अनूठी किसानी के देखा-देखी अब अलग-बगल के गांववाले भी इसी विधि से खेती
करने के लिए प्रेरित हुए हैं। श्रीपुर पंचायत कृषि विज्ञान केंद्र,
खोदाबन्दपुर का अंगीभूत गांव है।
केंद्र के प्रोग्राम कोआर्डिनेटर डा रामनिवास सिंह ने बताया कि अर्जुन
टोले की मिट्टी जांच करने पर सिर्फ 0.2 प्रतिशत कार्बनिक पदार्थ पाया गया,
जो 50 वर्ष पहले पांच प्रतिशत थी। इसीलिए यह उसर जमीन बन गई थी। इसके लिए
पूर्व में इस्तेमाल रासायनिक खाद ही मुख्य कारण था। धीरे-धीरे वर्मी
कंपोस्ट के प्रति लोगों में जागरूकता लाना शुरू किया। दो साल के बाद टोले
के घर-घर में वर्मी कंपोस्ट के यूनिट का निर्माण करा दिया। नतीजन खेती को
घाटे का सौदा मानने वाले किसान आज एक साथ तीन-तीन फसलें उगा रहे हैं।
बागवानी मिशन के अंतर्गत वर्मी कंपोस्ट के लिए 30-30 हजार अनुदान का
प्रावधान है। इस जिले में मिशन के तहत लगभग सौ इकाईयों को अनुदान दिया गया
है। हालांकि अर्जुन टोले के लोगों ने बगैर अनुदान के अपने मेहनत और कृषि
विज्ञान केंद्र द्वारा बताये गए रास्ते को अपनाकर बंजर भूमि में सोना
उगाया है।
जाहिर है कि यह किसानों के जज्बे व परिश्रम का ही प्रतिफल है। स्वीकृत
सरकारी योजना के तहत वर्मी कंपोस्ट को तैयार करने की विधि में गोबर-मिट्टी
को ईट के फर्श और चहारदीवारी से घेरा जाता है, जबकि अर्जुन टोले के लोग
फर्श के रूप में पालीथिन और चहारदीवारी के लिए बांस के फट्ठे का प्रयोग कर
रहे हैं। दो ढाई फीट के बांस की चहारदीवारी को मिट्टी से लेपन के बाद चूना
व मेथी के पाउडर के घोल से पुताई करते हैं ताकि दीमक नहीं लग सके।
कृषि विज्ञान केंद्र के कोआर्डिनेटर डा रामनिवास सिंह बताते हैं कि इस
टोले का चयन सिर्फ इसलिए किया कि यहां के लोग मेहनती ही नहीं निर्देशका
पालन करने वाले भी हैं। बीते दिनों की याद करते हुए वे बताते हैं कि वर्मी
कंपोस्ट प्रोजेक्ट लेकर जब यहां पहुंचे थे तो लोग यूनिट तैयार करने के लिए
पैसे की कमी का रोना रोने लगे। हमने कहा ईट नहीं पालीथिन और बांस के फट्ठे
का इस्तेमाल करो। आज नतीजा सामने है।
अर्जुन टोले के परमानंद महतो के पास मात्र एक बीघा जमीन है, लेकिन
उसने अपने घर के भीतर ही वर्मी कम्पोस्ट का यूनिट लगा रखा है। खास बात यह
है कि यहां के किसान अब ग्रुप में खेती करने लगे हैं ताकि मार्केट खुद व
खुद उनके दरवाजे पर पहुंच जाए। टोले के रामदेव महतो बताते हैं कि उन्होंने
एक बीघा में हल्दी का खेती किया, जिससे एक लाख 40 हजार रुपये का कारोबार
हुआ। 15 क्विंटल हल्दी बीज के लिए सुरक्षित रखा है। कुल मिलाकर एक बीघा से
साढे़ तीन लाख की आमदनी हुई।
मंझोले किसान राजाराम महतो का कहना है कि पूरे गांव में एक भी किसान
ऐसा नहीं, जो रासायनिक खाद का प्रयोग करते हों। हुलास महतो व रामविलास
महतो ने बताया कि मूंग के दो-तीन तोड़न के बाद ही हम उसकी जुताई कर देते
हैं। गांव में इस वर्ष पपीता की खेती भी किया जा रहा है। पपीता की खेती
में एक साथ खीरा व मूंग भी लगा हुआ है। अर्जुन टोले के किसानों की
उपलब्धियों को देख बड़कुढ़वा, मकसपुर, परमानंदपुर, चेरिया बरियारपुर के
किसान भी वर्मी कंपोस्ट की यूनिटें बैठाने में लगे हैं।