पानी का पैसा पानी में

भोपाल. प्रदेश सरकार ने जलसंकट से निपटने के लिए बीते एक दशक में कई योजनाएं चलाईं, खूब ढिंढोरा भी पीटा.. अरबों रुपए खर्च कर दिए गए, लेकिन नतीजा शून्य। जलसंकट कम होने के बजाय दिनोदिन गहराता जा रहा है। पानी पाताल में पहुंच चुका है। ये हालात एक-दो जिलों के नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के हैं। दूसरी ओर विभागीय मंत्री ये मानने को तैयार नहीं कि योजनाएं फ्लाप हो गईं। इसे स्वीकारने के लिए उन्हें अभी और वक्त चाहिए। मैदानी जायजे की रिपोर्ट-

रतलाम जिले में शासन तीन साल में 32 करोड़ 49 लाख 43 हजार रुपए खर्च कर चुका है, लेकिन भूमिगत जल स्थिर रहना तो दूर, 10.19 मीटर नीचे चला गया है। दूसरी ओर बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में चार साल में 271 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद पानी औसतन पांच मीटर नीचे चला गया है। इस साल अप्रैल में ही रतलाम जिले की 18 छोटी-बड़ी नदियां व 116 नालों सहित 466 जलस्रोत पूरी तरह सूख चुके थे।

ये तो सिर्फ दो जिलों के उदाहरणभर हैं। प्रदेश के लगभग हर जिले इस स्थिति से दो-चार हो रहे हैं। जलसंकट से निपटने के लिए पानी रोको, जलाभिषेक अभियान और बलराम तालाब जैसी करीब ढेरों योजनाएं चलाकर एक दशक में शासन ने अरबों रुपए खर्च कर दिए, लेकिन समस्या सुलझने के बजाय दिनोदिन गहराती जा रही है। भोपाल जिले में जलाभिषेक अभियान में पिछले तीन सालों में 20 करोड़ रुपए खर्च हुए। इससे जिले के गांवों में तालाब, चेक डेम और स्टाप डेम बने, लेकिन हालात बिलकुल उलट हैं। यहां कई जगहों पर 600 फीट पर भी पानी नहीं मिलता। नीमच जिले में चार साल में 44 करोड़ 46 लाख 50 हजार रु. खर्च हो चुके हैं। बावजूद जिले में चार गांवों की नल-जल योजना ठप पड़ी है।

यहां 4200 हैंडपंपों में से 1236 हैंडपंप दम तोड़ चुके हैं। विदिशा जिले में जलाभिषेक अभियान के तहत किए गए कार्यो पर पांच साल के दौरान चार करोड़ रुपए खर्च हो गए हैं। तीन सालों के भीतर जिला जलाभिषेक अभियान की शुरुआत बासौदा के ग्राम गमाकर, विदिशा के करारिया एवं साल क्९ में सुल्तनिया गांव से हुई थी लेकिन इन गांवों में आज भी लोग पानी को तरस रहे हैं।
टीकमगढ़ जिले में पिछले 5 सालों से जलाभिषेक अभियान के तहत तैयार किए गए ज्यादातर जलस्रोत अनुपयोगी साबित हो रहे हैं। अभियान के तहत बनाए गए तालाब एक ही बारिश में बह गए हैं। जहां तालाब बनाए गए थे वहां अब मैदान हो गया है। पांच सालों में जल स्तर लगभग पांच मीटर नीचे चला गया है।

सीहोर जिले में जलाभिषेक योजना वर्ष 2007 से शुरू हुई थी। यह योजना यहां तीसरे चरण में लागू हुई थी। तब से लेकर हर साल इस योजना सहित अन्य योजनाओं में स्वीकृत होने वाली राशि में से अधिकांश राशि खर्च नहीं हुई है।

रेगिस्तान बन जाएंगे पांच ब्लॉक

प्रदेश के 28 जिलों में से रतलाम जिले के पांच ब्लॉक डार्क एरिया घोषित हैं और यदि अफसर ऐसे ही अभियान चलाते रहे तो जिले के ये पांच ब्लॉक रतलाम ग्रामीण, जावरा, आलोट,पिपलौदा एवं सैलाना जल्द ही रेगिस्तान में तब्दील हो जाएंगे। रतलाम शहर को धोलावड़ तालाब का सहारा है। भूमिगत जल स्तर साल दर साल गिरता जा रहा है। 2007 में भूमिगत जल स्तर 7.51 मीटर था जो अप्रैल 2010 में 10.19 मीटर पहुंच गया है।

हालात चिंताजनक

ञ्चट्यूबवेल खनन से जलस्तर हर साल घट रहा है जो चिंताजनक है। जिले के सभी ब्लॉक अतिदोहन के दायरे में हैं। आगामी सालों में भयावह जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है।

सुधीर बेलसरे, भूजल सर्वेक्षण अधिकारी

जहां से शुरू, वहीं खत्म

जलाभिषेक अभियान की शुरुआत सीएम शिवराजसिंह चौाहन ने 2 अप्रैल 2006 को नीमच जिले के ग्राम दुदरसी की थी लेकिन यहां योजनाएं अफसरशाही की भेंट चढ़ गईं। यहां अब तक एक भी तालाब आकार नहीं ले पाया। पंचायत सचिव दिलीप बगालिया स्वीकारते हैं कि योजना के तहत कोई काम नहीं हो सका। जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री एन.एन. गांधी कहते हैं कि समय पर भोपाल से राशि नहीं मिलने से यह हालात बने हैं। अब तो भोपाल से ही योजना नामंजूर हो गई है।

फिर शुरू कराएंगे

ञ्चसीएम की योजनाओं की ये स्थिति क्यों हुई इसका पता लगा जाएगा। जानकारी जुटाकर इन कामों फिर से कैसे श़ुरू किया जा सकता है, इस पर विचार करेंगे।

डॉ. संजय गोयल, कलेक्टर नीमच

हद दर्जे की लापरवाही भी

ब्यावरा से पांच किमी दूर लोधीपुरा में बारिश का पानी सहेजने के लिए चार बीघा जमीन पर तीन लाख ४५ हजार लागत का तालाब बनाया जा रहा है। वो भी बगैर तकनीकी जानकारी के। गांव के बंशीलाल ने बताया तालाब निर्माण के दौरान खोदी जा मिट्टी पाल के अंदर डाली जा रही है। इसमें कोई स्लोप नहीं दिया गया। इससे बारिश का पानी पाल के ऊपर से बहकर निकल जाएगा और तालाब में पानी नहीं पहुंचेगा।

ञ्चजबसे निर्माण कार्य शुरू किया गया है। यहां कोई इंजीनियर साइट पर नहीं आया। इसी के पास कृषि विभाग की भूमि संरक्षण शाखा भी वाटरशेड की निर्माण करा रही है जिसमें पानी रुकने की कोई गुंजाइश नहीं है।

विक्रमसिंह चौहान, प्रतिनिधि जनपद पंचायत अध्यक्ष ब्यावरा

एक दशक में सरकार की ढेरों योजनाएं अरबों रुपए खर्च.. फिर भी जलसंकट

गौरीशंकर बिसेन, मंत्री पीएचई से सीधे सवाल

1. जल संग्रहण की योजनाएं क्यों फ्लॉप हो गईं?

यह अनवरत चलने वाला कार्य है, इसलिए अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि योजनाएं फ्लॉप हो गई हैं।

2. क्या मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं होने से ऐसा हुआ?

मॉनिटरिंग की एक एजेंसी नहीं है। मॉनिटरिंग पंचायतों को करनी है।

3. क्या विधायक-सांसद सीधे जिम्मेदार नहीं हैं?

सदन के बाद जितना समय उन्हें मिलता है, जल संरक्षण के लिए उन्हें कार्य करना चाहिए।

4. दोषियों पर कार्रवाई करेंगे?

हां, गड़बड़ी मिलती है तो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

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