अपने सिंचाई के तरीके को बदल लिया है। इससे एक महीने में करीब 90 अरब लीटर
पानी की बचत हो रही है। सिंचाई का तरीका बदलने के लिए आगे आ रहे किसानों
को कृषि विभाग अनुदान भी दे रहा है।
कृषि विभाग के अनुसार, जिलेभर में करीब ढाई लाख किसान हैं। इनमें से करीब
एक लाख किसान फसलों की फव्वारा, बूंद-बूंद व पाइप लाइन पद्धति से सिंचाई
कर रहे हैं। फव्वारा से करीब चालीस, बूंद-बूंद से 60 व पाइप लाइन से 20
प्रतिशत पानी की बचत होती है।
जलदाय विभाग के अधिकारी बताते हैं कि जिले में 70 प्रतिशत कृषि व 30 फीसदी
पानी पेयजल के लिए दोहन हो रहा है। यदि जिले के सभी किसान जल संरक्षण में
सहभागी बनते हुए सिंचाई का तरीका बदल ले तो आगामी पांच सालों में जिले की
पेयजल समस्या समाप्त हो सकती है।
जल बचाने का ये है लॉजिक
किसानों के जल संरक्षण करने का गणित यह है कि एक किसान एक दिन में औसत एक
लाख बीस हजार और एक महीने में करीब 36 लाख लीटर पानी निकालता है। यदि
किसान सिंचाई का तरीका बदलकर औसत 40 फीसदी पानी बचाता है तो एक महीने में
करीब 9 लाख लीटर पानी बचा सकता है।
इस तरह जिले के एक लाख सिंचाई के तरीके बदलने वाले किसान एक महीने में 90
अरब लीटर पानी बचा रहे है। जिले के डेढ़ लाख किसान भी बूंद-बूंद या
फव्वारा पद्धति को अपनाकर रोजाना जिलेभर में 135 अरब लीटर पानी और बच सकता
है।
बारिश के पानी से रिचार्ज के साथ खेती
किसानों को बारिश के पानी को संरक्षित कर सिंचाई सहित अन्य कार्यो में ले
सकते हैं। भूजल विभाग के आरडीएफ ज्याणी बताते है कि बारिश के दिनों में
किसानों को खेत के निचले इलाके में पानी को स्टोर करना चाहिए। बाद में इस
पानी को छोटी मोटर लगाकर सिंचाई के काम में लिया जा सकता है। वहीं पुृराने
सूखे हुए कुएं में बारिश के पानी को छोड़ा जा सकता है, जिससे इलाके का
जलस्तर नीचे नहीं जाएगा।