फर्जी जमानतदारों के गिरोह का पर्दाफाश

लखनऊ। अदालतों को गुमराह कर फर्जी जमानतदार
आरोपियों को जमानत दिला रहे हैं। यह सनसनीखेज खुलासा मंगलवार को उस वक्त
हुआ जब चौक थाने की पुलिस के हत्थे इस गिरोह सदस्य चढ़े। यह गिरोह फर्जी
जमानत के गोरखधंधे में काफी समय से सक्रिय था। पुलिस ने गिरोह के पांच
सदस्यों को गिरफ्तार किया है जबकि सरगना चकमा देकर भाग निकला। गिरोह के
तार कानपुर व उन्नाव से भी जुड़े हैं। पुलिस की टीमें दोनों शहरों में भी
गिरोह की जड़े ढूंढ रही हैं।

चौक कोतवाली पुलिस को इस मकड़जाल की सूचना मिली थी जिस पर सोमवार को
जेल में निरुद्ध एक जालसाज की जमानत लेने आए पांच लोगों को दीवानी एवं
सत्र न्यायालय के पास से दबोच लिया गया। पकड़े गए फर्जी जमानतदारों ने अपना
नाम उन्नाव के बीघापुर निवासी राकेश, गंगा घाट की मिश्रा कालोनी निवासी
दयाराम शर्मा, हसनगंज निवासी चंद्रिका प्रसाद, लखनऊ के डालीगंज निवासी मो.
अग्गन और जानकीपुरम निवासी लालता प्रसाद बताया। पूछताछ में आरोपियों ने
बताया कि गिरोह का सरगना ठाकुरगंज निवासी प्रेम साहू है। उसी ने सोमवार को
चेक बाउंस होने के मामले में एक जालसाज की जमानत के लिए उन्हें कचहरी
बुलाया था। पुलिस की धरपकड़ के दौरान वह वहां से खिसक गया। पुलिस ने बताया
कि राकेश फर्जी जमानत कराने के मामले में पहले भी जेल जा चुका है। मो.
अग्गन ने भी स्वीकारा कि वह भी पहले जेल जा चुका है। गिरोह के कई सदस्य
कानपुर व उन्नाव में भी सक्रिय हैं। पुलिस उनकी तलाश में जुटी है।

दो-तीन सौ रुपये में मिल जाते हैं फर्जी जमानतदार

किसी भी अपराधी की जमानत लेने के लिए कचहरी में मात्र 200-300 रुपये
में फर्जी जमानतदार मिल जाते हैं। पकड़े गये लोगों से पता चला कि प्रेम
साहू के साथ कई बरसों से वह इस गोरखधंधे में लिप्त थे।

ऐसे मिला सुराग

चौक के दिलाराम बारादरी निवासी शातिर अपराधी कमल किशोर उर्फ टिंकू
कपाला के बारे में पुलिस को फर्जी जमानत कराने के प्रयास की जानकारी मिली।
पुलिस ने जमानतदारों के बारे में पड़ताल की तो दोनों का पता चिनहट का
मटियारी गांव था लेकिन वहां उस नाम का कोई व्यक्ति नहीं रहता। छानबीन हुई
तो पता चला दोनों जमानतदार कानपुर के रहने वाले हैं। यहीं से पुलिस को इस
गिरोह का सुराग मिला और पांच पकड़े गए।

वकीलों-कर्मचारियों के गठजोड़ से फल-फूल रहा धंधा

फर्जी जमानत कराने वाला गिरोह पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है तो
इसकी वजहें भी हैं। दरअसल कुछ वकील और कर्मचारी भी इस गोरखधंधे में लाखों
के वारे-न्यारे कर रहे हैं, जिससे पुलिस जालसाजों की अंतिम कड़ी तक नहीं
पहुंच पा रही है।

पुलिस ने दो वर्ष में फर्जी जमानतों के नौ मामले पकड़े। एक वकील जमानत
माफिया निकला, लेकिन गिरोह के सरगना पुलिस के शिंकजे में नहीं आ रहे।
फर्जी नाम, पता व दस्तावेज लगाकर गिरोह के सदस्य किसी भी अपराधी की जमानत
करा लेते हैं। अदालतों में जमानत के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाला यह गिरोह
ज्यादातर मामूलीधाराओं के आरोपियों की तलाश में रहता है। छानबीन में जुटे
एक अधिकारी का कहना है कि अदालतों के आसपास गिरोह के सदस्य मंडराते रहते
हैं। जमानत कराने आए परिवारीजन को गुमराह कर यह लोग फर्जी जमानतदारों की
मदद से आरोपी की जमानत करा लेते हैं। छानबीन में सामने आया है कि चंद
वकीलों के अलावा अदालतों के कई कर्मचारियों की मिलीभगत से ही यह गोरखधंधा
फल फूल रहा।

ऐसे कराते हैं जमानत : फर्जी नाम, पते के साथ किसी अन्य की फोटो लगाकर
जमानतदार को अदालत में खड़ा कर दिया जाता है। जालसाज थाने का प्रमाण पत्र
भी आनन-फानन तैयार कर कोर्ट में प्रस्तुत कर देते हैं।

इन पर है पुलिस की नजर : चौक कोतवाली का हिस्ट्रीशीटर कमल किशोर उर्फ
टिंकू कपाला, गोसाईगंज का हिस्ट्रीशीटर राधेश्याम, देवीपाटन निवासी विजय
पटेल, बाराबंकी निवासी अविनाश, आजमगढ़ निवासी पवन दुबे आदि। पुलिस की
मानें तो इन बदमाशों ने फर्जी जमानतदारों का इस्तेमाल किया है।

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