पटना पटना जिले की पारिवारिक सर्वेक्षण सूची
‘हड़बड़ी में ब्याह कनपटी में सिंदूर’ का प्रमाण बन गयी है। ऐसा लगता है कि
नगर निगम क्षेत्र में बीपीएल सूची बनाने में जातीय भेदभाव को समाप्त कर
दिया गया है। बीपीएल सूची बनाने वालों ने तो यहां दलित-ब्राह्माण, यादव और
वैश्य में कोई अंतर ही नहीं छोड़ा। हद तो यह है कि महिलाएं भी कई जगहों पर
बाप बना दी गयी हैं। पटना नगर निगम की बीपीएल सूची का यही सच है जिसके
आधार पर राशन-किरासन, इंदिरा आवास से लेकर शिक्षा और चिकित्सा सेवाओं को
लाभ मिलना है। नगर निगम बोर्ड ने 28 जून 2008 को पारिवारिक सर्वेक्षण सूची
में त्रुटी को देखते हुये उसे प्रस्ताव संख्या-39 में संशोधित कर सरकार के
पास भेजने का निर्णय लिया था। बोर्ड के निर्णय की अनदेखी कर तत्कालीन नगर
आयुक्त ने 1 जुलाई 2008 को बिना संशोधन के ही नगर विकास एवं आवास विभाग को
भेज दिया और पत्र में बोर्ड द्वारा पारित होने की बात लिख दी। आला
अधिकारियों की गलती का खामियाजा शहरी क्षेत्र के गरीबों को आज तक भुगतना
पड़ रहा है। हाल यह है कि बीपीएल सूची तैयार करने वालों ने पिता और पुत्र
के नाम अंकित करने में जाति, धर्म, स्त्री और पुरुष में भी कोई अंतर नहीं
समझा। वार्ड पार्षद जय नारायण शर्मा के चार भाइयों के अलग-अलग बाप बना
दिये। एक तरफ इस बीपीएल सूची को देख पिता-पुत्र अपमानित हैं तो दूसरी तरफ
सरकारी लाभ से भी गये।
बीपीएल सूची का एक उदाहरण नगर निगम क्षेत्र के पूर्वी लोहानीपुर
मोहल्ले का है। लोहानीपुर मोहल्ला निवासी कमला देवी तो राजेश मांझी का बाप
बन गयीं। लाल किशुन दास का बाप संपतिया देवी हैं। रूदल मांझी के पिता
सितेन्द्र यादव हो गये। राजेश्वर मालाकर के पिता जगु साव तो रमेश राम को
सत्येन्द्र मिश्रा का पुत्र बना दिया। जयगक्ष पाठक का बेटा महेश मांझी बन
गया। मखन पंडित के पुत्र का महेश मांझी तो सुरेश मिस्त्री के पिता अनिल
मिश्रा बन गये हैं। शंकर मंडल के पिता सुखारी साव, बिनोद साहनी के पिता
घमंडी साव, मंटू मांझी के पिता गोविंद पंडित, लखेन्द्र पासवान के पिता
सीताराम सिंह, रघुनाथ मिस्त्री के पिता रामफल महतो, दुर्गा मांझी के पिता
रामानंद मिश्रा, दुखा मांझी के पिता अर्जुन महतो, शंकर मांझी के पिता बासो
मालाकार, चंद्रिका मांझी के पिता रिवन रजक केवल एक मोहल्ले के उदाहरण
मात्र हैं जो पिता-पुत्र के जाति सूचक टाइटल सब कुछ बयां कर रहा है।
नगर निगम के पार्षद विनय कुमार पप्पू ने बीपीएल सूची में सुधार के लिए
नगर आयुक्त से लेकर अदालत तक का दरवाजा खटखटाया है लेकिन सुधार के लिए
आश्वासन के सिवा मिला ही क्या?