इनके नाम पर भी लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। सब्जियों
से ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में यह खेल खेला जा रहा है। केमिकलों की
मदद से इनका उत्पादन बढ़ाया जा रहा है। यही नहीं, परमल, करेला, भिंडी,
बैगन, हरी मिर्च, शिमला मिर्च, हरा मटर सहित अन्य हरी सब्जियों को हरा और
ताजा दिखाने के लिए सिंथेटिक रंग का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। यही हाल
फलों का भी है। फलों को ज्यादा मीठा और चमकदार बनाने के लिए केमिकल का
इस्तेमाल हो रहा है।
प्राकृतिक पैदावार के साथ छेड़छाड़: शहर की मंडियों और बाजारों में इस
समय जो हरी सब्जियां आ रही हैं, उनकी प्राकृतिक पैदावार के साथ छेड़छाड़
की जा रही है। बेल वाली सब्जियों को केमिकलों की मदद से एक ही रात में
काफी बड़ा कर दिया जाता है। इनमें घीआ, लौकी, करेला, पेठा, तरोई, टिंडा,
खरबूज, तरबूज, कचरी, खीरा, ककड़ी सहित अन्य सब्जियां शामिल हैं। इन्हें
सिंथेटिक कलर से ज्यादा ताजा और हरा बनाया जा रहा है। इनमें विशेष तौर पर
छीलकर पैक किए गए हरे मटर, करेला, परमल, तरोई, शिमला मिर्च, बैगन, टमाटर,
भिंडी और अन्य सब्जियां शामिल है।
पैदावार से कैसे करते हैं छेड़छाड़ : आम आदमी को मालूम ही नहीं है कि
जिस खीरे और ककड़ी को वह सलाद में इस्तेमाल कर बड़े चाव से खा रहा है वह
सिर्फ एक ही रात में मात्र 10 से 12 घंटे में पूरी तरह तैयार हो जाता है।
सब्जी की मुनाफाखोरी करने वालों ने ऐसा कर दिखाया है। ये लोग 50 पैसे वाले
आक्सीटोसिन नामक इंजेक्शन से यह कारनामा करते हैं।
जानकारों के मुताबिक सब्जियां जैसे ही बेल पर लगनी शुरू होती है,
उसमें आक्सीटोसिन की केवल एक एक बूंद डाल देते है। इसके बाद सब्जी हो या
फल उसका एक ही रात में आकार काफी बढ़ जाता है। प्राकृतिक रूप से सब्जियों
और फलों को इस्तेमाल करने योग्य तैयार होने में करीब 10 से 15 दिन लग जाते
हैं। इसके अलावा हरी सब्जियों को ताजा और हरा दिखाने के लिए बड़ी मंडियों
में सब्जियों के थोक व्यापारी अपने गोदामों में बड़े ड्रमों में पानी में
हरा या जिस कलर की सब्जी होती है, उसी तरह का रंग घोल देते है। इसके बाद
सब्जियों को इन ड्रमों में डाल दिया जाता है। जब सब्जियों पर कलर चढ़ जाता
है, तो से बेचने के लिए मंडी में पहुंचा दिया जाता है।
फलों के साथ भी हो रहा हैं खेल : काला कारोबार करने वाले लोग सब्जियों के
साथ फलों के साथ भी छेड़छाड़ कर रहे हैं। फलों में खासकर सेब,तरबूज, खरबूज
व आम और अन्य फलों में ज्यादा मिठास पैदा करने के लिए ये मुनाफाखोर फलों
में इंजेक्शन के माध्यम से सक्रीन नामक केमिकल डाल देते है। इससे फल का
स्वाद ज्यादा मीठा हो जाता है। एक फल को मीठा करने के लिए मात्र एक या दो
बूंद ही काफी होती है। इस तरह से फलको मीठा करने के बाद इस बड़े ऊंचे
दामों में बाजार में बेचा जाता है। इससे फल का स्वाद तो मीठा हो जाता है
लेकिन सैक्रीन के इस्तेमाल हो जाने के बाद यह फल स्वास्थ्य के लिए
हानिकारक बन जाता है।
क्या कहना है एसएमओ
एसएमओ डा. राजीव बातिश का कहना है कि आक्सीटोशिन का इस्तेमाल आमतौर पर
उस समय किया जाता है, जब किसी गर्भवती महिला को डिलीवरी में परेशानी होती
है। उस समय महिला को इसकी बहुत ही मामूली डोज दी जाती है। इसके अलावा इस
दवा का कोई इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया इससे तैयार की
जाने वाली सब्जियों के इस्तेमाल से लोग पेट और अन्य गंभीर बीमारियों की
चपेट में आ सकते है। उनका कहना है कि इससे कैंसर तक की बीमारी हो सकती है।
उन्होंने कहा इसी तरह सैक्रीन का इस्तेमाल भी एक लिमिट के बाद स्वास्थ्य
के लिए हानिकारक है। जल्द ही विभाग ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई
करेगा।