नूरपुर : सरकार की उपेक्षा के चलते निचले
क्षेत्रों में देसी आम की प्रजाति लगभग लुप्त होने के कगार पर है। निचले
क्षेत्र के आम की अपनी एक अलग पहचान है। यह आम जहां रस से भरा होता है,
वहीं आसानी से हजम भी हो जाता है। बागवानों का अब धीरे-धीरे देसी आम से
मोह भंग हो रहा है, क्योंकि एक तो देसी आम के पेड़ जगह अधिक घेरते हैं,
वहीं उनमें फल भी काफी देरी से आता है। बागवानों ने अपने बगीचों से सौ-सौ
वर्ष पुराने देसी आम के पेड़ों को कटवाकर उनकी लकड़ी का प्रयोग टिंबर के रूप
में शुरू कर दिया है।
सरकार ने फिलहाल देसी आम की प्रजाति को बचाने के लिए कोई भी कारगर
योजना नहीं बनाई है। जिससे की आने वाली पीढ़ी के लिए देसी आम की प्रजाति
इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगी। जानकारी अनुसार नूरपुर खंड में
सीजन में देसी आम की पैदावार एक हजार मीट्रिक टन होती रही है। लेकिन अब
क्षेत्र के बागवानों ने व्यावसायिक रूप से शत प्रतिशत आम की खेती शुरू कर
दी है। बाजार में देसी आम का रेट भी ठीक होता है और मांग भी। लेकिन फिर भी
बागवानों का देसी आम की खेती की ओर कोई उत्साह नहीं है। उधर, प्रदेश के
उद्यान विभाग के शिमला स्थित निदेशक गुरदेव सिंह ने भी माना है कि
बागवानों की बेरुखी के कारण देसी आम की प्रजाति लगभग लुप्त होने के कगार
पर है, क्योंकि अधिकतर बागवान कलमी आम को लगाने को तरजीह दे रहे हैं।
उन्होंने अपनी तरफ से कहा कि देसी आम की प्रजातियों को बचाने के लिए वन
विभाग को आगे आना चाहिए और जंगलों में देसी आम की प्रजाति को उगाना चाहिए।
इससे जहां इन प्रजातियों को बचाया जा सकेगा, वहीं जंगली जानवरों को जंगल
में ही भोजन उपलब्ध हो जाएगा।