नई
दिल्ली। अपने देश के जिस मध्यवर्ग को केंद्र में रखकर देसी-विदेशी
कंपनियां अपने माल की बिक्री की रणनीति बनाती आई हैं, उसका अस्तित्व ही
नहीं है। जिस मध्यवर्ग को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से
सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है और जो बड़े-बड़े बदलावों का माध्यम बनता
रहा है, उसे अपने देश में ढूंढ़ना बेकार है। भारत जैसे विकासशील देशों में
मध्यवर्ग के लिए गढ़ी गई नई अंतरराष्ट्रीय परिभाषा के आधार पर यह निष्कर्ष
निकाला गया है।
सेंटर फार ग्लोबल डेवलपमेंट की अध्यक्ष और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री
नैंसी बर्डसाल ने मध्यवर्ग की नई परिभाषा गढ़ी है। इस परिभाषा के अनुसार
रोजाना दस डालर से ज्यादा लेकिन आयवर्ग में चोटी के पांच फीसदी लोगों से
कम कमाने वाले को मध्यवर्ग में रखा गया है। इस परिभाषा के अनुसार देश में
कोई मध्यवर्ग नहीं है क्योंकि रोज दस डालर से ज्यादा कमाने वाले सभी लोग
आयवर्ग में चोटी के पांच फीसदी लोगों में शामिल हैं। मध्यवर्ग की यह नई
परिभाषा देश में व्याप्त गरीबी और आय असमानता का आईना है। हमारे पड़ोसी चीन
में तीन फीसदी लोग मध्यवर्ग में आते हैं। जबकि रूस में 30 फीसदी, ब्राजील
में 19 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका में सात फीसदी मध्यवर्ग है।
हालांकि मध्यवर्ग को परिभाषित करने की कोशिशें पहले भी होती रही हैं,
लेकिन बर्डसाल ने पहली बार मध्यवर्ग के लिए मौद्रिक परिभाषा गढ़ी है। इससे
पहले आबादी के चोटी और नीचे की दो तिहाई को छोड़कर बीच की एक तिहाई आबादी
को मध्यवर्ग में गिना जाता रहा है। आमतौर पर समाज के उस हिस्से को
मध्यवर्ग में शामिल किया जाता है जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होता हैं,
कानून के राज का समर्थन करता है और उसके लिए संघर्ष करता है।
आयवर्ग में चोटी के पांच फीसदी लोगों की तरह यह वर्ग विरासत में मिली
संपत्ति या अन्य अनुत्पादक आयस्त्रोतों पर निर्भर नहीं करता है। किसी भी
देश में नागरिक समाज के निर्माण में इस मध्यवर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका
होती है।