नौनिहालों को कौन दिखाए स्कूल की राह?

शिक्षा का अधिकार ‘मौलिक अधिकार’ तो बन गया,
लेकिन इसे व्यवहार में लागू करने में शिक्षा विभाग के पसीने छूट रहे हैं।
इसके लिए कोई और नहीं बल्कि सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार हैं। एसएसए से
मिले आंकड़ों के अनुसार जिले भर में 6-14 आयु वर्ग के लगभग 2500 बच्चे
स्कूली शिक्षा से महरूम हैं। इन बच्चों को तलाशने और उन्हें स्कूल की राह
दिखाने के लिए 1 अप्रैल से 31 मई तक ‘ड्राप आउट सर्वे’ भी किया जाना था।
लेकिन सभी शिक्षक जनगणना कार्याें में व्यस्त हैं और यह अभियान लगभग फ्लॉप
होने की कगार पर है। अब जबकि नए सत्र को शुरू हुए महीना भर बीत चुका है,
ऐसे हालात में इन हजारों बच्चों को स्कूल की राह कौन दिखाएगा, यह बड़ा
प्रश्न है।

&ठ्ठढ्डह्य—

– जनगणना कार्यो में लगी शिक्षकों की ड्यूटी, कौन करेगा ड्रॉप आउट सर्वे

– जिले भर में लगभग 2500 बच्चे हैं स्कूल से बाहर

– 1 अप्रैल से 31 मई तक चलाया जाना है ड्राप आउट बच्चों को स्कूल में लाने का अभियान

प्रदीप जाखड़, पानीपत

जनगणना कार्याें में सरकारी अध्यापकों की ड्यूटी के चलते जिले में
‘ड्राप आउट सर्वे’ फ्लाप होने की कगार पर पहुंच गया है। एक अप्रैल से 31
मई तक चलाए जाने वाले इस अभियान के अंतर्गत शिक्षकों को डोर टू डोर जाकर
लोगों को शिक्षा के अधिकार के प्रति जागरूक करना था। साथ ही 6-14 आयु वर्ग
के बच्चों को स्कूल में दाखिल भी करना था, लेकिन अभी तक सर्वे सही से शुरू
नहीं हो पाया है और अधिकारी शिक्षकों की जनगणना ड्यूटी की दुहाई दे रहे
हैं।

एसएसए अधिकारियों का कहना है कि कई स्कूलों में तो पूरा का पूरा स्टाफ
ही जनगणना ड्यूटी में लगा हुआ है। जनगणना कार्य के साथ ही अध्यापक कक्षाएं
भी ले रहे हैं। भला ऐसे में इन्हें ड्राप आउट सर्वे की जिम्मेदारी कैसे
सौंपी जा सकती है।

कब होगा दाखिला और पढ़ाई ?

हैरानी की बात तो यह है कि ड्राप आउट बच्चों की पढ़ाई कब शुरू होगी।
अप्रैल बीत चुका और मई भी शुरू हो गई। पहली जून से ग्रीष्मकालीन अवकाश
होना है। बीच में स्थानीय निकाय के चुनाव भी होने हैं। ऐसे में यह बात समझ
से बाहर है कि जिले के हजारों ड्राप आउट बच्चे कब स्कूल पहुंचेंगे और कब
इनकी पढ़ाई शुरू हो पाएगी।

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पेंच और भी हैं

ड्राप आउट सर्वे शुरू होना, इसका सिरे चढ़ना और बच्चों को स्कूल तक
पहुंचाना तो अलग बात है, पेंच कई और भी हैं। एसएसए अधिकारियों के अनुसार
जिले में ड्राप आउट संख्या जीरो तक लाने में प्रवासी बच्चे खासी परेशानी
खड़ी करते हैं। दूसरे प्रदेश से कई परिवार हर वर्ष यहां काम करने आते हैं
और वापिस चले जाते हैं। इस बीच कई बच्चे स्कूल में दाखिला ले लेते हैं और
बीच ही पढ़ाई छोड़कर चले जाते हैं। अगले सत्र के मध्य में ये वापिस आ जाते
हैं। ऐसे में ड्रापआउट की संख्या का सही से अंदाजा लगना और अभियान को सफल
बनाना मुश्किल काम नजर आता है।

नहीं शुरू हो सका अभियान : डीईईओ

जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी यूपी सिंह का कहना है कि अधिकतर अध्यापक
जनगणना कार्य में व्यस्त हैं। कई स्कूलों में तो पूरा का पूरा स्टाफ
जनगणना ड्यूटी पर है। ऐसे हालात में ‘ड्राप आउट सर्वे’ शुरू करवाने में
खासी दिक्कतें पेश आ रही हैं।

जागरण मत —

सर्वेअभियानों से योग्य बेरोजगारों को जोड़ना बेहतर

केंद्र और प्रदेश सरकारों की तरफ से प्रति वर्ष कई योजनाओं में सर्वे
करवाया जाता है और इसमें विभागीय लोगों को जोड़ा जाता है और उनके माध्यम से
कार्य को अंजान दिया जाता है। इससे विभागीय कार्य भी प्रभावित होता है और
दिया गया अतिरिक्त कार्य भी ठीक से संपूर्ण नहीं हो पाता। इसका ताजा
उदाहरण कई बार करवाया गया बीपीएल सर्वे ही है। सरकार को इस प्रकार से
सर्वे करवाने के लिए रोजगार विभाग द्वारा योग्य बेरोजगारों को जोड़ना
चाहिए। जिससे उन्हें उचित भत्ता भी मिल सके और विभागीय कार्य भी प्रभावित
न हों।

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