उरई।
बुंदेलखंड के बीहड़ में बसे गांवों के लोग भुखमरी के मुहाने पर खडे़ हैं।
उरई जिले के नंदीगांव व रामपुरा ब्लाकों के दर्जनों गांवों के बाशिंदों के
घरों में महीने में बमुश्किल 15 दिन ही चूल्हा जलता है और वह भी एक समय।
ज्यादातर भूमिहीन और गरीबों के पास बीपीएल और अंत्योदय कार्ड तक नहीं हैं।
पूरा भोजन ना मिलने से महिलाएं, पुरुष और बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
दलित बाहुल्य गांवों की हालत तो और भी ज्यादा खराब है। सरकार की विभिन्न
कल्याणकारी योजनाएं अमीरों के पास पास बंधक है। जिले के नंदीगांव विकासखंड
के मानपुरा गाव में 15 लोगों के बीपीएल और 31 अंत्योदय कार्डधारक हैं।
कार्डधारकों में 20-20 बीघा के मालिक शीतल और अशोक, 15-15 बीघा के ठकुरदास
व वृंदावन, 18 बीघा के फुलजारी और 10 बीघा के रूप नारायण शामिल हैं। सीमात
किसान और भूमिहीन फूलमती, रघुराई, चेतराम, शिवकुमार, हरगोविंद, ज्ञानसिंह,
राजकुमार समेत तमाम ग्रामीणों के पास गरीबी कार्ड नहीं हैं। रामपुरा विकास
खंड की हमीरपुरा ग्राम पंचायत को अंबेडकर ग्रामसभा का दर्ज प्राप्त है फिर
भी इस गाव के लोगों की बदहाली प्रशासन के लिये चिंता का सबब नहीं बन पा
रही।
रामनारायण दोहरे भूमिहीन हैं, लेकिन उनके पास गरीबी कार्ड नहीं है। वे
बताते हैं कि दस दिन भी घर में खाना बन जाये तो बड़ी बात है। पड़ोसियों से
मांगकर भूख मिटाने का इंतजाम करना पड़ता है। उनके पांच बच्चे अभी से आधे
पेट रहकर सो जाने के आदी हैं। रामनारायण को स्वयं भी पूरी खुराक न मिलने
से कमजोरी आ गयी है, जिसकी वजह से जाबकार्ड होते हुए भी प्रधान उन्हें काम
नहीं देता।
60 वर्षीय नाथूराम की समस्या कुछ अलग है। उनके पास बीपीएल कार्ड तो है
लेकिन अनाज खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। इस गाव में सिर्फ 37 लोगों को
बीपीएल व 20 को अंत्योदय कार्ड जारी हुए हैं जबकि 75 प्रतिशत दलित आबादी
वाले इस गाव में लगभग हर परिवार की हालत आर्थिक रूप से दयनीय है। कई लोग
दाल या सब्जी के बजाय खड़े नमक से सूखी रोटी खाकर गुजारा करते हैं लेकिन
फिर भी उनके पास सामान्य श्रेणी का राशनकार्ड है।
भट्टपुरा में भूमिहीन भूरेलाल के 6 पुत्रियां व एक पुत्र है। फिर भी
इनके पास एक एपीएल कार्ड है। अंत्योदय कार्डधारक कढ़ोरे ने बताया कि वे
उधार लेकर सस्ता राशन खरीदते हैं और बाद में आधा सामान बाजार में ब्लैक कर
देते हैं जिससे उधार चुकता कर सके। मिर्जापुर जागीर में 50 बीघा के रामरतन
के पास तो बीपीएल कार्ड है, लेकिन सतीश, सुंदरलाल व सूरज के पास एपीएल
कार्ड ही हैं जबकि यह सब पूरी तरह भूमिहीन हैं। नरौल में 40 प्रतिशत
भूमिहीनों के पास गरीबी कार्ड नहीं हैं। कुछ ऐसे ही हालत बुंदेलखंड के कई
अन्य जिलों के गांवों की भी है।