हैं। इसके कारण आयोग कोई नीतिगत फैसले नहीं ले पा रहे हैं। पिछड़ा आयोग
में तो अध्यक्ष के अभाव में नौ जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की
कार्यवाही आगे नहीं बढ़ पा रही है। वहीं आयोगों मंे दर्ज होने वाले मामलों
की सुनवाई भी प्रभावित हो रही है।
विधानसभा चुनाव होने के बाद से आदिम जाति आयोग, अनुसूचित जाति जन जाति
आयोग तथा पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्षों का पद खाली हैं। आयोगों में काम
करने वाले कर्मचारियों की संख्या भी नहीं के बराबर है। आदिम जाति आयोग में
आधा दजर्न से भी कम कर्मचारी हैं।
यहां के अनुसंधान अधिकारी मंत्रालय से अटैच हैं। आदिम जाति आयोग में
अध्यक्ष नहीं होने के कारण लगभग तीन दर्जन ऐसे मामले हैं, जिनका निराकरण
नहीं हो पा रहा है। हालांकि इस आयोग के कर्मियों का कहना है कि अनुसूचित
जाति, अनुसूचित जन जाति अत्याचार निवारण अधिनियम के मामलों में अनुशंसा के
बाद विभागों द्वारा त्वरित कार्रवाई की जाती है। इससे विभाग को अवगत भी
कराया जाता है।
वहीं पिछड़ा आयोग में इस समय ढाई सौ मामले दर्ज हैं। इनमें ऐसे भी मामले
हैं जिन पर अध्यक्ष के बिना कार्यवाही के लिए अनुशंसा नहीं की जा सकती।
ऐसे मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वर्तमान में 35 मामले लंबे
समय से अटके हुए हैं। अधिकारियों का कहना है कि अब ग्राम सुराज अभियान
खत्म हो गया है। ऐसे में संभावना है कि मुख्यमंत्री जल्द ही सभी आयोगों के
अध्यक्षों की नियुक्ति करेंगे।
हालांकि फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि इन आयोगों के लिए अध्यक्ष पद की
जिम्मेदारी किन्हें दी जायेगी। पिछड़ा आयोग के सचिव एलआर र्कुे ने बताया
कि अध्यक्ष नहीं होने के कारण आयोग कई नीतिगत फैसले नहीं ले पा रहा है।
आयोग ने पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के लिए नौ जातियों का शोध कार्य पूरा
कर लिया है।
इनमें रैनियार, मलार, खर्रा के अलावा दूसरी जातियां हैं। वहीं अभी थनापति
जाति को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के लिए बसना क्षेत्र में शोध का काम
चल रहा है, लेकिन इन जातियों को तब तक पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया जा
सकता जबतक कि अध्यक्ष की अनुसंशा नहीं मिल जाती।