कोडरमा। जिले के जंगली क्षेत्रों में अवैध उत्खनन का कार्य धड़ल्ले से जारी
है। गरीबी एवं तंगहाली से जूझ रहे ग्रामीण ढिबरा (माइका स्क्रैप) एवं
पत्थर के अवैध उत्खनन में लगे हैं। सो, आये दिन घटनाएं घटती है और इसमें
जानें भी जाती है। अक्सर यहां ढिबरा चुनते वक्त चाल धंसने से मौत की
घटनाएं होती है। शुक्रवार को जोड़ासिमर में ढिबरा चुनते वक्त हुई दो
महिलाओं की मौत तो उदाहरण मात्र है। इसके पूर्व भी कई घटनाएं घट चुकी है
और कई जानें जा चुकी है। ढिबरा से अच्छी कमाई होती है। वन संरक्षण अधिनियम
1980 के लागू होने के बाद क्षेत्र में संचालित दर्जनों अभ्रख खदानें बंद
हो चुकी है। ऐसे ही खदानों में ढिबरा चुनकर परिवार की परवरिश करने के
उद्देश्य से गरीब पहुंचते हैं। बंद खदानों में कोई घेरा नहीं है और न ही
उसे वैज्ञानिक तरीके से बंद किया गया है। लिहाजा होता यह है कि पैसे के
लालच में ढिबरा चुनते महिला-पुरुष चाल धंसने के कारण अकाल मौत के शिकार हो
जाते हैं। अव्वल तो ये कि इस अवैध पेशे में परिवार का पुरा कुनबा शामिल
होता है। कई दफा एक ही परिवार के कई लोग मौत के शिकार हो जाते हैं।
संबंधित विभाग भी इस पर रोक लगाने में अक्षम साबित हो रहा है।
है। गरीबी एवं तंगहाली से जूझ रहे ग्रामीण ढिबरा (माइका स्क्रैप) एवं
पत्थर के अवैध उत्खनन में लगे हैं। सो, आये दिन घटनाएं घटती है और इसमें
जानें भी जाती है। अक्सर यहां ढिबरा चुनते वक्त चाल धंसने से मौत की
घटनाएं होती है। शुक्रवार को जोड़ासिमर में ढिबरा चुनते वक्त हुई दो
महिलाओं की मौत तो उदाहरण मात्र है। इसके पूर्व भी कई घटनाएं घट चुकी है
और कई जानें जा चुकी है। ढिबरा से अच्छी कमाई होती है। वन संरक्षण अधिनियम
1980 के लागू होने के बाद क्षेत्र में संचालित दर्जनों अभ्रख खदानें बंद
हो चुकी है। ऐसे ही खदानों में ढिबरा चुनकर परिवार की परवरिश करने के
उद्देश्य से गरीब पहुंचते हैं। बंद खदानों में कोई घेरा नहीं है और न ही
उसे वैज्ञानिक तरीके से बंद किया गया है। लिहाजा होता यह है कि पैसे के
लालच में ढिबरा चुनते महिला-पुरुष चाल धंसने के कारण अकाल मौत के शिकार हो
जाते हैं। अव्वल तो ये कि इस अवैध पेशे में परिवार का पुरा कुनबा शामिल
होता है। कई दफा एक ही परिवार के कई लोग मौत के शिकार हो जाते हैं।
संबंधित विभाग भी इस पर रोक लगाने में अक्षम साबित हो रहा है।