बेनीपट्टी
[मधुबनी, आमोद कुमार झा]। यूं तो आपने बहादुर बच्चों की कहानियां बहुत
सुनी होंगी। उनकी तस्वीरें भी देखी होंगी। लेकिन यह कहानी है संघर्ष की।
इसकी नायिका है 15 साल की सुषिता। बेनीपट्टी प्रखंड के सोइली गांव की यह
लड़की इन दिनों सोसाइटी की नजीर बन गई है।
इसकी दास्तां कुछ इस तरह है। पिता की मृत्यु के बाद गरीबी का दंश
झेलने को विवश अतिनिर्धन परिवार की सुषिता विगत पांच वर्ष से साइकिल से
प्रतिदिन दस किलोमीटर दूरी तय कर बेनीपट्टी [मधुबनी] में दूध बिक्री कर
अपने आश्रितों का भरण-पोषण कर रही है। पिता स्वारथ यादव का निधन आठ वर्ष
पूर्व हो गया।
दस लोगों के परिवार के भरण-पोषण का जिम्मा तीन बहनों के कंधे पर आ
गया। सबसे पहले सुलभ कुमार और सुलोना कुमारी ने दूध बेच कर घर चलाने की
जिम्मेदारी उठाई। फिर दोनों बहनों की शादी हो गई। इसके बाद परिवार का बोझ
सुषिता के कंधों पर आ गया। फिर क्या था सुषिता भी बड़ी बहनों के नक्शे कदम
पर चल पड़ी।
आज वह सोइली पाली गांव से प्रतिदिन 20 लीटर दूध इकट्ठा कर दो ड्रमों
में रखकर अनुमंडल मुख्यालय बेनीपट्टी साइकिल से आती है, और घर-घर दूध बेच
रही है। मां श्रीवती देवी बताती हैं कि सुषिता छह बहन व दो भाई है। पिता
की मौत के बाद दो बहनों ने तीन साल तक दूध बेच कर परिवार चलाया। अब सुषिता
पांच वर्ष से इस काम को कर रही है। उन्हें इस बात का दुख है कि बीपीएल
होते हुए भी कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है।
70 वर्षीय दादा राम शोभित यादव कहते हैं कि हम गरीब को देखने वाला कोई
नहीं है। इस लाचार व गरीब परिवार के सामने सबसे गंभीर संकट यह है कि
सुषिता की शादी के बाद परिवार का बोझ कौन उठाएगा। सुषिता अपने
छोटे-छोटेभाई व बहन का हौसला बढ़ाती है कि अब कुछ वर्ष बाद बूढ़े
दादा-दादी व मां के भरण-पोषण का जिम्मा उन्हें ही उठाना होगा।