रांची : कंकरीट का बढ़ता जंगल जीवन देनेवाले
जलस्रोतों को नुकसान पहुंचा रहा है. प्राकृतिक जल चक्र पूरा नहीं हो पा
रहा है. बादल नहीं बन रहे हैं. नदियों का प्रवाह रुक गया है. अधिकतर
नदियों ने बरसाती नालों का प ले लिया है. नदियों के किनारों पर कभी दिखाई
देनेवाली हरियाली गायब हो गयी है. आलम यह है कि नदियों के आसपास के
क्षेत्रों में भी भूमिगत जलस्रोत पाताल तक पहुंच गये हैं. कई जगहों पर
हजार फीट बोरिंग कराने पर भी पानी नहीं मिल रहा है. नदियों की राह में
धड़ल्ले से किये जा रहे भवन निर्माण से इनका अस्तित्व संकट में
आ गया है. इनका जल संग्रहण क्षेत्र सूख गया है. ग्राउंड वाटर लेबर रिचार्ज
नहीं हो रहा है. नदियों तक जल पहुंचानेवाले नाले और जलप्रपात भी पानी के
लिए तरस रहे हैं.क्या कहते हैं विशेषज्ञ विशेषज्ञों के अनुसार, मौजूदा स्थिति कायम रही, तो आनेवाले 20 वर्षो से भी कम समय में स्वर्णरेखा और जुमार जैसी नदियों के नामो-निशान मिट जायेंगे.
जलचक्र
पूरा नहीं होने से बारिश अनियमित हो जायेगी. धूप की तेजी बरदाश्त से बाहर
होगी. लोग पानी के लिए तरसेंगे. झारखंड की स्थिति मरुस्थल से कम नहीं
होगी.चुप है सरकारनदियों की राह में लगातार किये जा रहे निर्माण पर सरकार
खामोश है. अवैध होने के बावजूद इन्हें हटाने या रोकने की कोई कोशिश नहीं
की जाती. भूमिगत जल का स्तर ऊपर उठाने के लिए भी सरकार या प्रशासन की ओर
से किया जा रहा प्रयास नगण्य है. वाटर हार्वेस्टिंग बहुमंजिली भवनों में
अनिवार्य जर किया गया है. पर इसका निर्माण नहीं करनेवालों के लिए कोई
चेकिंग प्वाइंट नहीं है. डीप बोरिंग रोकने पर भी झारखंड में अब तक कोई
निर्णय नहीं लिया गया है.
जलस्रोतों को नुकसान पहुंचा रहा है. प्राकृतिक जल चक्र पूरा नहीं हो पा
रहा है. बादल नहीं बन रहे हैं. नदियों का प्रवाह रुक गया है. अधिकतर
नदियों ने बरसाती नालों का प ले लिया है. नदियों के किनारों पर कभी दिखाई
देनेवाली हरियाली गायब हो गयी है. आलम यह है कि नदियों के आसपास के
क्षेत्रों में भी भूमिगत जलस्रोत पाताल तक पहुंच गये हैं. कई जगहों पर
हजार फीट बोरिंग कराने पर भी पानी नहीं मिल रहा है. नदियों की राह में
धड़ल्ले से किये जा रहे भवन निर्माण से इनका अस्तित्व संकट में
आ गया है. इनका जल संग्रहण क्षेत्र सूख गया है. ग्राउंड वाटर लेबर रिचार्ज
नहीं हो रहा है. नदियों तक जल पहुंचानेवाले नाले और जलप्रपात भी पानी के
लिए तरस रहे हैं.क्या कहते हैं विशेषज्ञ विशेषज्ञों के अनुसार, मौजूदा स्थिति कायम रही, तो आनेवाले 20 वर्षो से भी कम समय में स्वर्णरेखा और जुमार जैसी नदियों के नामो-निशान मिट जायेंगे.
जलचक्र
पूरा नहीं होने से बारिश अनियमित हो जायेगी. धूप की तेजी बरदाश्त से बाहर
होगी. लोग पानी के लिए तरसेंगे. झारखंड की स्थिति मरुस्थल से कम नहीं
होगी.चुप है सरकारनदियों की राह में लगातार किये जा रहे निर्माण पर सरकार
खामोश है. अवैध होने के बावजूद इन्हें हटाने या रोकने की कोई कोशिश नहीं
की जाती. भूमिगत जल का स्तर ऊपर उठाने के लिए भी सरकार या प्रशासन की ओर
से किया जा रहा प्रयास नगण्य है. वाटर हार्वेस्टिंग बहुमंजिली भवनों में
अनिवार्य जर किया गया है. पर इसका निर्माण नहीं करनेवालों के लिए कोई
चेकिंग प्वाइंट नहीं है. डीप बोरिंग रोकने पर भी झारखंड में अब तक कोई
निर्णय नहीं लिया गया है.