जाकर मइया पुआ पकावे, ताकर धिया उपास

रांची। यदि आप जलावन के रूप में कोयले का
इस्तेमाल कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए। चोरी के आरोप में पकड़े भी जा सकते
हैं। हालांकि कोयले के इस झारखंड देस में लाखों लोग घरेलू उपयोग में
रोजाना कोयले का इस्तेमाल करते हैं लेकिन यह दीगर बात है कि उन पर कोई
कार्रवाई नहीं होती। यह वह राज्य है, जिसके पास 691 एमटी कोयला रिजर्व है।
देश भर में 2,111 एमटी कोयला रिजर्व के सापेक्ष झारखंड में 32.7 फीसदी
कोयला भंडार होने के बावजूद आलम यह कि यहां के निवासी ढेला बराबर कोयले के
लिए तरसें। कारण एक ही, उसकी सरेआम बिक्री की कोई व्यवस्था नहीं। अलबत्ता,
औसतन 80 एमटी सालाना कोयला उत्खनन के सापेक्ष काफी तादाद में अवैध उत्खनन
भी होता है। वैध और अवैध उत्खनन के फलस्वरूप जमीन पर आए कोयले का बड़ा भाग
तस्करी में चला जाता है। उसी चोरी के कोयले से लाखों परिवारों का चूल्हा
जलता है। मसल फिट बैठती है, ‘जाकर मइया पुआ पकावे, ताकर धिया उपास।’

दरअसल, कोयले की बिक्री डिपो के माध्यम से करने की व्यवस्था है लेकिन
वह इस झारखंड राज्य में लागू नहीं है। इस कारण वैध तरीके से घरेलू उपयोग
के लिए कोयला खरीदा ही नहीं जा सकता। एलपीजी गैस की गांवों की कौन कहे,
राजधानी रांची में भी हर परिवार तक पहुंच नहीं। एलपीजी गैस अपेक्षाकृत
महंगी भी है। अब तो गांवों में भी लकड़ियों की कमी के कारण और अपेक्षाकृत
आसान होने के चलते कोयले का चूल्हा जलाने का आम चलन हो चला है। ऐसे में
जरूरतमंद परिवार के पास चोरी का कोयला खरीदने के अलावा कोई रास्ता शेष
नहीं। किसी भी क्षेत्र में जलावन कोयले का आवंटन कोयला मंत्रालय की अनुमति
पर ही संभव है। वह अनुमति झारखंड को प्राप्त नहीं हो सकी है। खाद्य,
सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग के प्रधान सचिव बीके त्रिपाठी
पूछे जाने पर कहते हैं, वर्ष 2005, 2006 और हाल में भी कोयला मंत्रालय से
आग्रह किया गया है कि वह इस राज्य में जलावन कोयले के आवंटन की अनुमति
प्रदान करे। यह अनुमति मिलने के बाद जलावन कोयला डिपो खोलने की कार्रवाई
आरंभ कर दी जाएगी। फिर हर कोई निश्चिंत हो जाएगा।

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